
नयी दिल्ली,19 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने मुल्लापेरियार बांध की सुरक्षा की निगरानी कर रही नवगठित समिति को तमिलनाडु सरकार द्वारा उठाये गए मरम्मत एवं रखरखाव संबंधी मुद्दों की जांच करने और रिपोर्ट दाखिल करने का बुधवार को निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा 3 जनवरी को पुनर्गठित समिति के अध्यक्ष एक सप्ताह में तमिलनाडु और केरल के अधिकारियों की बैठक बुलाएं और तमिलनाडु द्वारा उठाए गए मुद्दों को सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाने का प्रयास करें।
पीठ ने कहा कि यदि पेड़ों की कटाई और बांध की मरम्मत सहित अन्य मुद्दों का सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान नहीं किया गया तो उच्चतम न्यायालय इस पर निर्णय लेगा।
न्यायालय ने कहा, ‘‘तीन जनवरी 2025 को एक नयी पर्यवेक्षी समिति और उसके अध्यक्ष की नियुक्ति की गई। इसे तमिलनाडु द्वारा किये गए अनुरोध पर गौर करना चाहिए और ऐसे समाधान तलाशने चाहिए जो दोनों पक्षों द्वारा स्वीकार किए जाएं। हालांकि, किसी भी विवाद की स्थिति में समिति को निर्देश दिया जाता है कि वह इस अदालत में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करे ताकि छूटे हुए मुद्दों पर निर्णय लिया जा सके।’’
शीर्ष अदालत ने चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और कहा कि कुछ मुद्दे ‘‘बहुत बचकाने’’ स्वरूप के हैं और इन्हें दोनों राज्यों के बीच सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि बांध को कुछ भी होने की स्थिति में केरल की तबाही के बारे में ‘‘एक खास तरह का प्रचार’’ किया गया।
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष विषय से संबंधित ऐसे कई मामले लंबित हैं जिनमें राहत का अनुरोध किया गया है और एक पीठ ने तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष एक मुद्दे को सूचीबद्ध किया है।
न्यायालय ने कहा कि न्याय के हित में यह उचित होगा कि मुल्लापेरियार बांध पर सभी याचिकाओं को एक साथ संलग्न कर तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनवाई की जाए।
पीठ ने सभी लंबित मामलों को एक साथ जोड़कर प्रधान न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया ताकि मामले को उपयुक्त पीठ को सूचीबद्ध किया जा सके।
न्यायालय तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर एक मूल मुकदमे की सुनवाई कर रहा है, जिसमें बांध पर अधिकारों के संबंध में शीर्ष अदालत द्वारा पारित निर्देशों को लागू करने का अनुरोध किया गया है।
बांध की सुरक्षा को लेकर न्यायालय में कई वाद दायर किये गए और यह दोनों राज्यों के लिए एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है क्योंकि इसका पानी तमिलनाडु के पांच जिलों के लिए जीवन रेखा माना जाता है।
शीर्ष अदालत ने 2014 में तमिलनाडु के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि बांध सुरक्षित है, जबकि जल स्तर 142 फुट तक रखने की अनुमति दी और समय-समय पर इसकी सुरक्षा का आकलन करने के लिए एक पर्यवेक्षी समिति का गठन किया।
एक ओर जहां तमिलनाडु ने बांध को शुरू से ही सुरक्षित बताया है, वहीं दूसरी ओर केरल सरकार का कहना है कि यह असुरक्षित है और यदि इसमें दरार पड़ती है तो जलस्तर बढ़ने से निचले इलाकों में रहने वाले लोगों की जान को खतरा हो सकता है।
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