देश की खबरें | वैवाहिक बलात्कार भारत में एक निर्मम अपराध है : दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा
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नयी दिल्ली, सात जनवरी दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि वैवाहिक बलात्कार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत एक निर्मम अपराध के दायरे में पहले से है।
दिल्ली सरकार की वकील ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में रखने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई कर रही अदालत से कहा कि अदालतों को किसी नये अपराध को विधान का रूप देने की कोई शक्ति नहीं है तथा दावा किया कि विवाहित महिलाओं और अविवाहित महिलाओं को प्रत्येक कानून के तहत अलग-अलग रखा गया है।
दिल्ली सरकार की वकील नंदिता राव ने कहा, ‘‘वैवाहिक बलात्कार भारत में एक निर्मम अपराध है। विवाहित महिलाएं और अविवाहित महिलाएं प्रत्यक कानून के तहत अलग-अलग हैं।’’
राव ने यह भी कहा कि यहां तक कि एक याचिकाकर्ता के मामले में, जिन्होंने बार-बार वैवाहिक बलात्कार होने का दावा किया है, प्राथमिकी आवश्यक कार्रवाई के लिए आईपीसी की धारा 498ए के तहत दर्ज समझी गई है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए किसी विवाहित महिला के पति या उसके रिश्तेदार द्वारा उससे निर्ममता बरते जाने से संबद्ध है, जहां निर्ममता का मतलब जानबूझ कर किया गया कोई ऐसा व्यवहार है जो इस तरह की प्रकृति की हो, जो महिला को आत्महत्या की ओर ले जाती हो या गंभीर चोट या जीवन, शरीर के अंग स्वास्थ्य (मानसिक या शारीरिक) को खतरा पैदा करती हो।
न्यायमूर्ति राजव शकधर और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ गैर सरकारी संगठन आरआईटी फाउंडेशन, ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वुमंस एसोसिएशन, एक पुरुष और एक महिला की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें भारतीय कानून के तहत पति को दी गई छूट खत्म करने का अनुरोध किया गया है।
याचिकाकर्ता महिला का प्रतिनधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्वेस ने दलील दी कि दुनिया भर की अदालतों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना है।
उन्होंने कहा कि नेपाल उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि हिंदू धर्म ने ‘पत्नी के बलात्कार के जघन्य कृत्य’ से छूट नहीं दिया है।
उन्होंने इस विचार पर भी आपत्ति जताई कि वैवाहिक बलात्कार एक पश्चिमी अवधारणा है। उन्होंने एक अमेरिकी रिपोर्ट का जिक्र किया जिसमें कुछ भारतीय राज्यों में विवाहित दंपती के बीच यौन हिंसा की मौजूदगी का संकेत दिया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘‘वैवाहिक बलात्कार यौन हिंसा का सबसे बड़ा स्वरूप है, जो हमारे घरों में हुआ करती है। विवाह नाम की संस्था में चाहे कितने बार भी बलात्कार क्यों ना हो उसे दर्ज नहीं किया जाता है? यह आंकड़ा दर्ज नहीं किया जाता, ना ही उसका विश्लेषण किया जाता है। ’’उन्होंने कहा कि ना तो परिवार और ना ही पुलिस मदद को आगे आती है।
मामले की सुनवाई 10 जनवरी को जारी रहेगी।
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