ताजा खबरें | मतभेदों को दूर करते हुए ऐसी नीतियां बनाएं जो वैश्विक मंच पर भारत को आगे ले जाये: धनखड़

Get latest articles and stories on Latest News at LatestLY. राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को उच्च सदन के सदस्यों से सभी मतभेदों को दूर करते हुए मिलकर ऐसी नीतियां बनाने का आह्वान किया जो वैश्विक मंच पर भारत को आगे ले जाये।

नयी दिल्ली, तीन फरवरी राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को उच्च सदन के सदस्यों से सभी मतभेदों को दूर करते हुए मिलकर ऐसी नीतियां बनाने का आह्वान किया जो वैश्विक मंच पर भारत को आगे ले जाये।

धनखड़ ने सदन की कार्यवाही आरंभ होने पर एक बयान में यह भी कहा कि जीवंत और क्रियाशील संसद लोकतंत्र की जीवनरेखा है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस पवित्र सदन में, बहुलवादी, गतिशील और आकांक्षी समाज की आवाज़ें हैं, खासकर हमारे युवाओं की, जो हमारे देश की असीम ऊर्जा और सपनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। युवाओं को शिक्षा, अवसर और जिम्मेदारी की भावना से सशक्त बनाकर, हम एक अधिक समावेशी और टिकाऊ भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।’’

सभापति ने कहा कि राज्यसभा का 267वां सत्र भारत की संवैधानिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जो 26 नवम्बर, 1949 को हमारे संविधान को अपनाने की शताब्दी के अंतिम चौथाई भाग में प्रवेश करने के क्रम में आयोजित किया गया पहला सत्र है।

उन्होंने कहा कि यह उन दूरदर्शी संस्थापकों के प्रति गहन कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर है, जिनकी बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता ने हमें एक ऐसा संविधान प्रदान किया, जिसने हमारे गणतंत्र की नियति को उल्लेखनीय रूप से आकार दिया है।

उन्होंने कहा, ‘‘हमने 75 वर्षों की इस यात्रा में, अपने शाश्वत ज्ञान और विरासत को बनाये रखते हुए आधुनिकता को अपनाया है। हमारे सामूहिक सपनों और आकांक्षाओं ने डिजिटल नवाचार और सतत विकास से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण एवं बुनियादी ढांचे तक प्रगति को सक्षम बनाया है।’’

उपराष्ट्रपति ने कहा कि विरासत के साथ विकास के मंत्र से प्रेरित होकर, 2047 तक विकसित भारत की ओर बढ़ना हमारे सामूहिक प्रयासों का आधार बनना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘इस सदन के सदस्यों के रूप में, यह हमारा दायित्व है कि हम इस आह्वान को अटूट संकल्प के साथ पूरा करें।’’

उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं।

धनखड़ ने कहा कि सदन के वरिष्ठ सदस्यों के रूप में संवैधानिक मूल्यों के संरक्षक और प्रगतिशील विचारों के पथप्रदर्शक के रूप में कार्य करना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘‘हमारा आचरण अनुकरणीय होना चाहिए, हमारे विचार-विमर्श बुद्धिमत्तापूर्ण और रचनात्मक होने चाहिए और हमारे कार्य उन 1.4 अरब नागरिकों के कल्याण से प्रेरित होने चाहिए, जो हम पर विश्वास करते हैं।’’

महाकुंभ को भारत के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सार का एक शानदार उत्सव करार देते हुए धनखड़ ने कहा कि ‘‘यह विविधता में एकता, सामूहिक कल्याण तथा सत्य, सहिष्णुता और सद्भाव के प्रति स्थायी प्रतिबद्धता की हमारी यात्रा का प्रतीक है।’’

उन्होंने सदस्यों से यह सुनिश्चित करने को कहा कि प्रत्येक नागरिक का कल्याण उनके प्रयासों के केन्द्र में रहे।

उन्होंने कहा, ‘‘हम इस सदन की पवित्रता और गरिमा को बनाए रखने का संकल्प लें। हमारी बहस और निर्णय राष्ट्र की सेवा की महान आकांक्षाओं से प्रेरित हों। आइए हम सभी मतभेदों को दूर करते हुए मिलकर ऐसी नीतियां बनाएं जो वैश्विक मंच पर भारत को आगे ले जाये।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि हम इस सत्र में शामिल हो रहे हैं, आइए हम कुछ उद्देश्यों के साथ विचार-विमर्श करें, सम्मान के साथ सहयोग करें, और दूरदर्शिता के साथ कानून बनाएं - हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि हम एक अरब लोगों की आशाओं और सपनों को लेकर चल रहे हैं।’’

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