नयी दिल्ली, दो मई अगले साल होने वाले मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कम से कम 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य तय किया है और इसे ही केंद्र में रखते हुए उसने अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के बीच अपनी मौजूदगी और बढ़ाने की रुपरेखा तैयार की है।
पार्टी नेताओं के मुताबिक इस लक्ष्य को साधने के लिए भाजपा इन वर्गों के लोगों से जुड़े मुद्दे तो उठा ही रही है, उनकी समस्याओं का समाधान भी निकाल रही है।
विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भाजपा की प्रदेश इकाई ने जनजातीय नेताओं और स्वाधीनता सेनानियों की याद में कई कार्यक्रमों व आयोजनों की रुपरेखा तैयार की है।
पिछले साल सितंबर महीने में वरिष्ठ भाजपा नेता अमित शाह ने गोंड राजवंश के आदिवासी नायक शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस के मौके पर ‘‘जनजातीय अभियान’’ की शुरुआत की थी।
भाजपा-नीत राज्य सरकार ने पिछले साल पहला ‘‘जनजातीय गौरव दिवस’’ भी मनाया था। केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता सेनानी और महान आदिवासी नेता बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की थी। आदिवासी समाज उन्हें अपना भगवान मानता है।
दरअसल, यह सारी कवायद मध्य प्रदेश के करीब डेढ़ करोड आदिवासी आबादी को साधाने के लिए शुरु की गई है। मध्य प्रदेश की आबादी में 17 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 20 प्रतिशत अनुसूचित जाति है। राज्य विधानसभा की कुल 230 सीटों में 47 आदिवासी सीटें और 35 आरक्षित सीटें हैं।
भाजपा संगठन में मध्य प्रदेश मामलों के केंद्रीय प्रभारी मुरलीधर राव ने पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियों का ब्योरा साझा करते हुए बताया कि एक एप के जरिए संगठनात्मक जानकारी अपडेट की जाती है।
राव ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों की संलिप्तता बढ़ाने के लिए भाजपा निरंतर उनके बीच काम कर रही है और उन्हें सम्मानजनक स्थान भी दे रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय के नेताओं और हस्तियों की अनदेखी का मुद्दा उठाकर भाजपा उनके योगदानों को रेखांकित कर ही है। साथ ही समाज से जुड़े भावनात्मक मुद्दों का समाधान भी निकाल रही है।
दलितों और आदिवासियों के बीच पार्टी की ओर से चलाए जा रहे कार्यक्रमों के बारे में चर्चा करते हुए राव ने कहा, ‘‘भारतीय राजनीति में आप जब एक बड़ी ताकत बन जाते हैं तो आपको समाज को साथ लेकर चलना होता है और उस समाज का प्रतिनिधित्व पार्टी में दिखना भी चाहिए।’’
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 47 में से 37 आदिवासी सीटों पर कब्जा जमाया था और लगातार तीसरी बार मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल की थी। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 31 सीटों पर जीत मिली थी जबकि भाजपा 16 सीटों पर सिमट गई थी।
इस चुनाव में भाजपा को 41.02 प्रतिशत वोट के साथ 109 सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट के साथ 114 सीटें मिली थी।
ज्ञात हो कि वर्ष 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को बड़े कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था और वहां कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी। हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस का एक धड़ा बाद में भाजपा में शामिल हो गया और फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी।
ब्रजेन्द्र
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