लीलावती अस्पताल के ट्रस्टी की शिकायत बकाया भुगतान से बचने का प्रयास: उच्च न्यायालय
बंबई उच्च न्यायालय ने लीलावती अस्पताल के एक ट्रस्टी द्वारा बैंक के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत के मामले में कहा कि यह बकाया भुगतान से बचने का प्रयास था. ट्रस्टी की शिकायत में आरोप लगाया गया कि बैंक द्वारा उत्पीड़न के कारण उनके पिता और अस्पताल के संस्थापक की मृत्यु हो गई.
मुंबई, 24 सितंबर : बंबई उच्च न्यायालय ने लीलावती अस्पताल के एक ट्रस्टी द्वारा बैंक के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत के मामले में कहा कि यह बकाया भुगतान से बचने का प्रयास था. ट्रस्टी की शिकायत में आरोप लगाया गया कि बैंक द्वारा उत्पीड़न के कारण उनके पिता और अस्पताल के संस्थापक की मृत्यु हो गई. न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति मंजूषा देशपांडे की पीठ ने कहा कि राज्य अल्पसंख्यक आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराना ‘‘अपनी जिम्मेदारियों से बचने का प्रयास मात्र था.’’ अदालत ने यह फैसला 18 सितंबर को सुनाया. अदालत ने इस वर्ष जुलाई में एचडीएफसी बैंक और उसके प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) को आयोग द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द कर दिया जिसमें उन्हें एक अगस्त को आयोग के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया था.
आयोग ने लीलावती अस्पताल का संचालन करने वाले लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट के स्थायी ट्रस्टी राजेश मेहता द्वारा दायर शिकायत पर सुनवाई की थी. इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि बैंक के वरिष्ठ प्रबंधन और वसूली विभाग द्वारा उन्हें और उनके पिता किशोर मेहता को गंभीर उत्पीड़न और मानसिक यातना दी गई.शिकायतकर्ता ने दावा किया कि बैंक ने अस्पताल ट्रस्ट के कुछ पूर्व ट्रस्टी के साथ मिलीभगत की और इस उत्पीड़न के कारण 20 मई, 2024 को किशोर मेहता की मौत हो गई. उन्होंने आरोप लगाया कि वरिष्ठ प्रबंधन ने किशोर मेहता पर गिरफ्तारी की तलवार लटका रखी थी, जिसके परिणामस्वरूप उनकी असामयिक मृत्यु हो गई. मेहता पिता-पुत्र अल्पसंख्यक जैन समुदाय से हैं. बैंक ने उच्च न्यायालय में अपनी याचिका में नोटिस को चुनौती दी और आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि आयोग के समक्ष शिकायत केवल उसके द्वारा शुरू की गई वसूली कार्यवाही से बचने के लिए दायर की गई थी. यह भी पढ़ें : हेमंत सोरेन को भाजपा ने षड्यंत्र के तहत जेल भेजा ताकि कल्याणकारी योजनाएं बाधित हों : कल्पना सोरेन
अदालत ने इस दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि राजेश मेहता द्वारा दायर की गई शिकायत ‘‘एचडीएफसी बैंक द्वारा अपने उधारकर्ताओं के खिलाफ अपनाई गई प्रक्रिया को पटरी से उतारने और एक देनदार के रूप में कार्रवाई का सामना करने से बचने के प्रयास के अलावा कुछ नहीं थी, जो संयुक्त रूप से और व्यक्तिगत रूप से 14 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थे.’’ पीठ ने कहा, ‘‘ वह (राजेश मेहता) जैन समुदाय का सदस्य होने के नाम पर आयोग का दरवाजा खटखटाकर आदेश पारित नहीं करा सकते.’’ अदालत ने कहा कि यदि शिकायतकर्ता पर बकाया राशि की वसूली का दायित्व आता है, तो वह इससे बचने के लिए अल्पसंख्यक समुदाय का सदस्य होने का लाभ नहीं उठा सकता. अदालत ने यह भी कहा कि आयोग ने बैंक को नोटिस जारी करके अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया. अदालत ने एचडीएफसी बैंक के प्रबंध निदेशक और सीईओ को जारी कारण बताओ नोटिस को रद्द करते हुए कहा कि ऐसा ‘‘अधिकार क्षेत्र के बिना किया गया और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है.’’