Same-Sex Marriage: समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता, केंद्र का सुनवाई में राज्यों को पक्ष बनाए जाने का आग्रह
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. केंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए।
नयी दिल्ली, 19 अप्रैल: केंद्र सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए. शीर्ष अदालत में दायर हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसने 18 अप्रैल को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर इन याचिकाओं में उठाए गए. ‘मौलिक मुद्दों’ पर उनकी टिप्पणियां और राय आमंत्रित की. केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से आग्रह किया कि राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को सुनवाई में पक्ष बनाया जाए. यह भी पढ़ें: Same-Sex Marriage: समलैंगिक विवाह मामले में केंद्र सरकार का SC में हलफनामा, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को पक्ष बनाने की मांग
इस पीठ में न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति एस आर भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल हैं. पीठ ने समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई की.
केंद्र की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है, “इसलिए, विनम्रतापूर्वक अनुरोध किया जाता है कि सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को मौजूदा कार्यवाही में पक्षकार बनाया जाए, उनके संबंधित रुख को रिकॉर्ड में लिया जाए तथा भारत संघ को राज्यों के साथ परामर्श प्रक्रिया को समाप्त करने, उनके विचार/आशंकाएं प्राप्त करने, उन्हें संकलित करने तथा इस अदालत के समक्ष रिकॉर्ड पर रखने की अनुमति दी जाए, और उसके बाद ही वर्तमान मुद्दे पर कोई निर्णय लिया जाए.”
हलफनामे में कहा गया है, “यह सूचित किया जाता है कि भारत संघ ने 18 अप्रैल 2023 को सभी राज्यों को पत्र जारी कर याचिकाओं में उठाए गए मौलिक मुद्दों पर उनकी टिप्पणियां और विचार आमंत्रित किए हैं.” इसमें कहा गया है कि याचिकाओं पर सुनवाई और फैसले का देश पर महत्वपूर्ण प्रभाव होगा, क्योंकि आम लोग और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 25 नवंबर को दो समलैंगिक जोड़ों द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था. इन याचिकाओं में दोनों जोड़ों ने शादी के अपने अधिकार को लागू करने और संबंधित अधिकारियों को विशेष विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को पंजीकृत करने का निर्देश देने की अपील की थी.
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