2021 में जम्मू कश्मीर में कम हिंसा हुई, राजनीतिक गतिविधियां में आई कमी, जानें कश्मीर के लिए कैसा रहा पिछला साल
कश्मीर में विरोध प्रदर्शन रोज की बात होती थी, लेकिन पिछले साल ये करीब-करीब नदारद हो गए. भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने फरवरी में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष-विराम पर सहमति जताई और सीमावर्ती क्षेत्रों में गोलीबारी बंद हो गई. इधर सुरक्षा बलों ने कश्मीर में आतंकवादियों के कई आला नेताओं को मार गिराया .
श्रीनगर, 3 जनवरी : जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) प्रशासन ने 2021 में केंद्रशासित प्रदेश के हालात पर अपनी लगाम कसकर पकड़े रखी और बहुत कम राजनीतिक गतिविधियों (Political Activities in Kashmir) की अनुमति दी गयी, लेकिन जम्मू क्षेत्र को और अधिक सीटें देने के परिसीमन आयोग के मसौदा प्रस्ताव पर माहौल थोड़ा गरम हो गया. Pulwama Encounter: सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में टॉप JeM कमांडर यासिर ढेर, विदेशी आतंकी फुरकान भी मारा गया
कश्मीर में विरोध प्रदर्शन रोज की बात होती थी, लेकिन पिछले साल ये करीब-करीब नदारद हो गए और असैन्य प्रशासन ने किसी बड़ी सभा की अनुमति नहीं दी. इसके साथ ही भारी संख्या में पुलिस और अर्द्धसैनिक बल तैनात रहते हैं ताकि अचानक से कोई प्रदर्शन शुरू ना हो जाएं.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि असंतुष्टों के खिलाफ ‘विधिविरुद्ध क्रियाकलाप रोकथाम अधिनियम’ (यूएपीए) और जन सुरक्षा कानून का व्यापक इस्तेमाल करने से शांति आई है. कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने वर्षांत की मीडिया ब्रीफिंग में अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी को सुपुर्दे खाक करने के दौरान अच्छे प्रबंधन को अपनी बड़ी उपलब्धि गिनाया. उप राज्यपाल मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाला प्रशासन केंद्रशासित प्रदेश के हालात पर लगाम अच्छी तरह कसता नजर आ रहा है जहां उसने सितंबर में गिलानी की मृत्यु के बाद के हालात को सही से संभाल लिया.
गिलानी की लोकप्रियता को देखते हुए आशंका थी कि उनकी मृत्यु के बाद उनके समर्थक सड़कों पर उतर सकते हैं. हालांकि अधिकारियों ने थोड़े दिन के लिए कुछ रास्ते बंद कर दिए और करीब एक सप्ताह तक इंटरनेट सेवाएं रोक दीं ताकि प्रदर्शन नहीं हो सकें.
भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने फरवरी में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर संघर्ष-विराम पर सहमति जताई और सीमावर्ती क्षेत्रों में गोलीबारी बंद हो गई. इधर सुरक्षा बलों ने कश्मीर में आतंकवादियों के कई आला नेताओं को मार गिराया और लोग मानते हैं कि जम्मू कश्मीर में हालात एक तरह से शांतिपूर्ण हैं. हालांकि अक्टूबर में हालात फिर बदल गये जब आतंकवादियों ने निहत्थे नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. इनमें अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी शामिल थे.
आतंकवादियों ने करीब एक दर्जन लोगों को मार दिया, जिसके बाद सुरक्षा बलों ने अपना धरपकड़ अभियान तेज कर दिया, लेकिन इस दौरान मुठभेड़ों की वास्तविकता पर सवाल उठने लगे. ऐसी ही एक मुठभेड़ नवंबर में हैदरपुरा में हुई, जिसमें मारे गए तीन स्थानीय लोगों में से दो के आतंकवाद से नहीं जुड़े होने की बात उठने के बाद पूरे घटनाक्रम पर लोगों का ध्यान गया.
अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद से पहली बार पुलिस को मारे गए लोगों के शव लौटाने पड़े, जिन्हें उसने आतंकवादियों का सहायक बताया था. कोविड महामारी के मद्देनजर पुलिस ने आतंकवादियों के शवों को उत्तर कश्मीर के सुदूर इलाकों में दफन करना शुरू कर दिया था और मृतकों के केवल करीबी रिश्तेदारों को अंतिम संस्कार में शामिल होने दिया गया.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 के प्रावधान समाप्त होने के दो साल से अधिक समय बाद अंतत: जम्मू का दौरा किया. उन्होंने केंद्रशासित प्रदेश की अपनी चार दिन की यात्रा में अनेक क्षेत्रों का दौरा किया. केंद्रशासित प्रदेश में मारे गए एक मुस्लिम पुलिस अधिकारी के आवास पर उनका दौरा और इस साल आतंकवादियों की गोली से मारे गए पुलिस कर्मियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं तथा आम नागरिकों के परिवारों से उनका मिलने जाना राष्ट्रवादी ताकतों को यह स्पष्ट संदेश था कि सरकार उनका मनोबल कमजोर नहीं होने देगी.
अमित शाह ने एक-एक रात सीमा सुरक्षा बल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के शिविर में बिताकर अर्द्धसैनिक बलों के जवानों का मनोबल बढ़ाने का प्रयास किया. उन्होंने सीआरपीएफ के 40 जवानों को भी श्रद्धांजलि दी जो 2019 में पुलवामा में आत्मघाती बम हमले में मारे गये थे.अमित शाह की यात्रा का मकसद सुरक्षा परिदृश्य की समीक्षा करना और खामियों को पाटना था, लेकिन प्रदेश के राजनीतिक लोगों का मानना है कि सुरक्षा स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है.
केंद्रशासित प्रदेश में दो साल तक पाबंदियों के बाद इस वर्ष की अंतिम तिमाही में राजनीतिक गतिविधियां थोड़ी तेज होती दिखीं और नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपल्स कॉन्फ्रेंस और नई बनी अपनी पार्टी जैसे मुख्यधारा के राजनीतिक दलों ने पूरे केंद्रशासित प्रदेश में रैलियां और कार्यकर्ता सम्मेलन आयोजित किए.
पीडीपी ने भी जम्मू में ऐसे आयोजन किए लेकिन घाटी में उसे इस तरह के आयोजन करने के लिए कई बार अधिकारियों से अनुमति नहीं मिली. राजनीतिक दलों के लोगों का मानना है कि राजनीतिक गतिविधियों पर लगी पाबंदी में सरकार ने यह सोचकर ढील दी कि वह असंतोष को लंबे समय तक दबाकर नहीं रख सकती.
जानेमाने कम्युनिस्ट नेता एम वाई तारिगामी ने कहा, ‘‘किसान आंदोलन की वजह से सरकार थोड़ी झुकी, लेकिन एक जीवंत लोकतंत्र में स्थिति जैसी होनी चाहिए, वैसी अब भी नहीं है.’’ नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी डार ने कहा कि पाबंदिया हटने की वजहों में जिला विकास परिषद के चुनावों के नतीजे भी हैं. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में असहमति महत्वपूर्ण होती है, लेकिन जम्मू कश्मीर में इसे अपराध बना दिया गया है.
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