चुराचांदपुर (मणिपुर), 10 जुलाई मणिपुर में जारी हिंसा के कारण आवश्यक वस्तुओं और दवाओं की कमी ने पूर्वोत्तर राज्य के निवासियों में हताशा और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है।
केंद्र के आह्वान पर कुकी समुदाय ने राष्ट्रीय राजमार्ग दो से नाकाबंदी हटा दी है, लेकिन मेइती समुदाय ने नाकाबंदी नहीं हटाई है, जिसके कारण राज्य के सबसे बड़े चुराचांदपुर जिले में वस्तुओं की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। राष्ट्रीय राजमार्ग दो इम्फाल घाटी में रह रहे लोगों के लिए ‘‘जीवनरेखा’’ की तरह काम करता है। चुराचांदपुर में कुकी समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं।
चुराचांदपुर में करीब चार लाख लोग रहते हैं और इसके अलावा 10,000 विस्थापित लोग जिले में बनाए गए राहत शिविरों में रह रहे हैं।
चिकित्सकों, खासकर सर्जन की अत्यधिक कमी हो गई है, जिसके गंभीर परिणाम हो रहे हैं, क्योंकि डायलिसिस, कैंसर के लिए दवाएं और एड्स की दवाइयों समेत आवश्यक चिकित्सकीय उपचार जरूरतमंद लोगों को नहीं मिल पा रहे।
चुराचांदपुर जिला अस्पताल के चिकित्सकीय अधीक्षक डॉ. तिंगलोनलेई ने कहा, ‘‘हमें इस स्थिति में चिकित्सकों की वास्तव में आवश्यकता है। हमें अब भी और अधिक वरिष्ठ चिकित्सकों, वरिष्ठ सर्जन और कार्डियोथोरेसिक सर्जन की जरूरत है और यदि सरकार हमें गोलियां लगने और घायल होने से अत्यधिक खून बहने के जटिल मामलों से निपटने के लिए एक हृदय शल्यचिकित्सक, एक हृदय रोग विशेषज्ञ उपलब्ध करा सके तो हम वाकई बहुत आभारी होंगे।’’
गृह मंत्री अमित शाह के मई में हिंसा प्रभावित राज्य का दौरा करने के बाद केंद्र ने चिकित्सकों के छह दल मणिपुर भेजे थे।
डॉ. तिंगलोनलेई ने कहा, ‘‘हम पिछले महीने एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान), गुवाहाटी से दो चिकित्सकों को चुराचांदपुर भेजे जाने के लिए आभारी हैं, लेकिन हमें गंभीर बीमारियों के लिए विशेषज्ञों की जरूरत है।"
उन्होंने कहा कि अस्पताल में दवाओं और सर्जिकल वस्तुओं की भी जरूरत है।
चुराचांदपुर-बिष्णुपुर क्षेत्र में रोजाना होने वाली गोलीबारी की छिटपुट घटनाओं से स्थिति और भी जटिल हो गई है। डॉ. तिंगलोनलेई ने बताया कि गोलियों से लगी चोटों का पता लगाने में मदद करने वाली एकमात्र मशीन इस समय खराब है, जिससे पहले से ही गंभीर हालात और खराब हो गए हैं।
तेंगनौपाल और चंदेल जिलों में भी स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति खराब है क्योंकि घाटी क्षेत्रों में एशियाई राजमार्ग पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति बाधित हुई हैं।
मोरे कस्बे में ‘महिला मानवाधिकार समूह’ की अध्यक्ष चोंग हाओकिप ने कहा, ‘‘हमारे अस्पताल में दवाएं खत्म हो गई हैं। विशेषज्ञों की बात तो छोड़िए, वायरल बुखार के उपचार के लिए भी चिकित्सक उपलब्ध नहीं हैं। हर चीज की कीमत दोगुनी से भी ज्यादा हो गई है। हम अपने बच्चों की खातिर अधिक कीमत चुकाने को भी तैयार हैं, लेकिन कई चीजें बाजार में उपलब्ध नहीं हैं।’’
मेइती समुदाय की बहुलता वाले गांव क्वाथा के निवासियों ने भी इसी तरह की चिंताएं व्यक्त कीं। छह कुकी बहुल गांवों और तीन नगा बहुल गांवों के बीच बसे क्वाथा के लोग शांति के लिए प्रार्थना कर रहे है।
गांव की एक गृहिणी टी रत्ना ने कहा, ‘‘हम कुकी समुदाय के लोगों से घिरे हैं। उन्होंने अब तक हम पर हमला नहीं किया है। हम भोजन और दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं। हम शांति चाहते हैं। अब तक, असम राइफल्स घरेलू वस्तुओं और दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित कर रही है।’’
स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के अलावा स्थानीय आबादी चीजों की तेजी से बढ़ी कीमतों से भी जूझ रही है।
चुराचांदपुर बाजार में जाम नाम की एक महिला ने कहा, ‘‘हम अंडे की एक ट्रे के लिए 250 रुपये से अधिक का भुगतान कर रहे हैं। मई के बाद से कीमतें दोगुनी हो गई हैं। इसी तरह, सरसों के पत्तों की कीमत 20-25 रुपये से बढ़कर 50 रुपये हो गई है। सभी घरेलू वस्तुओं की कीमतें दोगुनी से अधिक हो गई हैं।’’
सेना के वाहनों और वस्तुओं की आपूर्ति के आवागमन पर नजर रख रहे महिला नागरिक समाज समूह ‘मीरा पैबी’ ने आरोप लगाया कि असम राइफल्स निष्पक्ष तरीके से काम नहीं कर रही।
दूसरी ओर, असम राइफल्स ने कहा कि उसने दोनों पक्षों के लोगों की जान बचाई है।
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