विदेश की खबरें | भारतीय मूल के चिकित्सक दम्पत्ति ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कानूनी जंग की शुरू

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. भारतीय मूल के एक चिकित्सक दम्पत्ति ने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बीच चिकित्सकों एवं स्वास्थ्यसेवा कर्मियों की पीपीई से जुड़ी सुरक्षा संबंधी चिंताओं के निपटारे से इनकार करने को लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ न्यायिक समीक्षा की कार्यवाही आरंभ की है।

लंदन, 11 जून भारतीय मूल के एक चिकित्सक दम्पत्ति ने कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बीच चिकित्सकों एवं स्वास्थ्यसेवा कर्मियों की पीपीई से जुड़ी सुरक्षा संबंधी चिंताओं के निपटारे से इनकार करने को लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ न्यायिक समीक्षा की कार्यवाही आरंभ की है।

डॉ. निशांत जोशी और उनकी गर्भवती पत्नी डॉ. मीनल विज ने ब्रिटेन के स्वास्थ्य एवं सामाजिक देखभाल विभाग और जन स्वास्थ्य विभाग से सवालों का जवाब मांगते हुए अप्रैल में कानूनी कार्रवाई शुरू की थी।

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उन्होंने बुधवार को इस मामले में लंदन के हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया क्योंकि उनका मानना है कि वे ‘‘अब और इंतजार नहीं कर सकते’’।

दम्पत्ति ने बयान में कहा, ‘‘हम यह नहीं करना चाहते थे। हम वैश्विक महामारी से निपट रहे चिकित्सक है। हम लोगों का जीवन बचाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘ लेकिन हमारे द्वारा उठाए मामलों के निपटारे से सरकार ने इनकार कर दिया, जिसके कारण हमें यह कदम उठाना पड़ा।’’

दम्पत्ति का प्रतिनिधित्व कर रही कानूनी कंपनी ‘बिंडमान्स’ ने कहा कि न्यायिक समीक्षा के लिए दी गई याचिका में व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) के संबंध में सरकार के दिशा-निर्देश और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय दिशा-निर्देशों के बीच ‘‘अंतर’’ को रेखांकित किया गया है।

डॉ. जोशी और उनकी पत्नी डॉ विज ने अप्रैल में ब्रिटेन के स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल विभाग तथा लोक स्वास्थ्य विभाग से जवाब मांगा था ।

सरकार की तरफ से उचित जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने लंदन में उच्च न्यायालय में मामला ले जाने का फैसला किया ।

दम्पत्ति ने उन दिशा- निर्देशों को चुनौती दी है जिसके तहत स्वास्थ्यकर्मियों और देखभाल के कार्य में जुटे कर्मियों को पीपीई किट का इस्तेमाल कम करने और कुछ पीपीई किट का फिर से इस्तेमाल करने को कहा गया है ।

दंपति की दलील है कि ये दिशा-निर्देश विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशा-निर्देशों के खिलाफ है और इससे स्वास्थ्यकर्मियों की जान खतरे में है। इससे कार्यक्षेत्र पर जान की सुरक्षा और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है ।

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