... अमित कुमार दास ...
नयी दिल्ली, 12 अगस्त भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों का लंदन ओलंपिक (2012) से शुरू हुआ पदक जीतने का सिलसिला 12 साल के बाद पेरिस ओलंपिक में थम गया, जो इस खेल के प्रशंसकों के लिए किसी निराशा की तरह था।
लक्ष्य सेन ने पुरुष एकल के सेमीफाइनल में पहुंच कर पदक की उम्मीद जगाई थी लेकिन सेमीफाइनल और कांस्य पदक के मुकाबले में अच्छी स्थिति में होने के बावजूद उनकी हार चिंताजनक रही।
रियो (2016) और तोक्यो (2021) में पदक जीतने वाली पीवी सिंधू से पेरिस में हैट्रिक की उम्मीद थी तो वहीं सात्विकसाइराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की पुरुष युगल जोड़ी को पदक का सबसे बड़ा दावेदार माना गया था। इन खिलाड़ियों के साथ पुरुष एकल में एच एस प्रणय और महिला युगल में अश्विनी पोनप्पा और तनीषा क्रास्टो की जोड़ी भी दबाव में बिखर गयी।
ओलंपिक के पेरिस चक्र के दौरान सरकार की तरफ से बैडमिंटन को भी काफी समर्थन मिला, जिसमें 13 राष्ट्रीय शिविर और 81 विदेशी अनुकूलन दौरे शामिल थे। इनका खर्च टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टॉप्स) के तहत किया गया।
भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के मिशन ओलंपिक सेल ने बैडमिंटन के लिए 72.03 करोड़ रुपये आवंटित किए, जो भारत की ओलंपिक तैयारियों के लिए 16 खेल में खर्च किए गए लगभग 470 करोड़ रुपये में से दूसरी सबसे बड़ी राशि है।
इस बड़े निवेश के बावजूद, पेरिस में नतीजे उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहे, जिससे ओलंपिक प्रतियोगिता में कड़े मुकाबले और मजबूत मानसिकता की अहमियत और बढ़ जाती है।
मानसिकता की यह अहमियत लक्ष्य सेन के मैचों में देखी गयी। सेमीफाइनल में विक्टर एक्सेलसेन और फिर कांस्य पदक के मैच में चीनी ताइपे के ली जी जिया के खिलाफ मजबूत स्थिति को वह भुनाने में नाकाम रहे।
इस दौरान सिंधू को 3.13 करोड़ रुपये की मदद मिली लेकिन वह प्री-क्वार्टर फाइनल से आगे बढ़ने में नाकाम रही।
लक्ष्य के लगातार दो मैचों में हार से उनके कोच और ऑल इंग्लैंड के पूर्व चैम्पियन प्रकाश पादुकोण काफी खफा दिखे।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं थोड़ा निराश हूं क्योंकि वह इसे पूरा नहीं कर सका। मुझे निराशा है कि हम बैडमिंटन में एक भी पदक नहीं जीत सके। सरकार, साइ और टॉप्स ने अपना काम किया है। अब समय आ गया है कि खिलाड़ी भी कुछ जिम्मेदारी उठायें।’’
विश्व के पूर्व नंबर एक खिलाड़ी सात्विक और चिराग की जोड़ी की अप्रत्याशित हार सबसे चौंकाने वाली थी क्योंकि उन्हें स्वर्ण पदक का दावेदार माना जा रहा था।
सरकार ने खिलाड़ियों को बड़े पैमाने पर समर्थन दिया था, जिसमें जर्मनी और फ्रांस में सिंधू और लक्ष्य के प्रशिक्षण के लिए क्रमशः 26.60 लाख रुपये और 9.33 लाख रुपये मंजूर किए गए थे।
पिछले दो ओलंपिक की रजत और कांस्य विजेता सिंधू के पास खेलों से पहले प्रशिक्षण के दौरान सारब्रकन में 12 सदस्यीय सहायक टीम थी, लेकिन वह चीन की ही बिंगजियाओ से आगे निकलने में असफल रहीं।
सात्विक और चिराग ने इस साल बीडब्ल्यूएफ के चार विश्व टूर फाइनल में दो खिताब जीते थे और 2023 एशियाई खेलों, 2022 राष्ट्रमंडल खेलों और 2023 एशिया चैंपियनशिप जैसे प्रमुख आयोजनों में कई पदक जीते थे।
सरकार ने पेरिस चक्र के लिए इस भारतीय जोड़ी पर कुल 5.62 करोड़ रुपये खर्च किए, लेकिन क्वार्टर फाइनल में मलेशिया के आरोन चिया और सोह वूई यिक ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इस हार के बाद डेनमार्क के उनके कोच माथियास बो ने कोचिंग छोड़ने की घोषणा कर दी।
विश्व चैंपियनशिप (2023) और एशियाई खेलों में कांस्य पदक विजेता प्रणय को प्रशिक्षण के लिए 1.8 करोड़ रुपये मिले, लेकिन खेलों से पहले चिकनगुनिया ने उनके अभ्यास को बाधित किया। उन्हें प्री-क्वार्टर फाइनल में लक्ष्य से हार का सामना करना पड़ा।
अश्विनी और तनीषा को 1.5-1.5 करोड़ रुपये का समर्थन मिला लेकिन यह जोड़ी ग्रुप चरण में कोई भी मैच जीतने में विफल रही।
लक्ष्य ने आखिरी के दो मैचों में असफलता के बावजूद जज्बा और शानदार कौशल का प्रदर्शन किया और चौथे स्थान पर रहे। इंडोनेशिया के जोनाथन क्रिस्टी और चीनी ताइपे के चाउ टीएन चेन पर उनकी जीत सराहनीय थी। मजबूत स्थिति में होने के बावजूद चैंपियन एक्सेलसेन और जी जिया से उनकी हार ने कुछ बड़ी कमजोरियों को उजागर किया।
लॉस एंजिल्स में 2028 में होने वाले अगले ओलंपिक में यह देखना होगा कि 29 साल की सिंधू अपनी फिटनेस बरकरार रखती है या नहीं।
सात्विक और चिराग की जोड़ी के साथ ही लक्ष्य पेरिस से मिली सीख का इस्तेमाल कर मजबूत वापसी करना चाहेंगे।
प्रियांशु राजावत और तृषा जॉली एवं गायत्री गोपीचंद की महिला युगल जैसी उभरती प्रतिभाओं को देखते हुए भारत की बैडमिंटन संभावनाएं अगले चार वर्षों के लिए आशाजनक बनी हुई हैं।
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