मुंबई, 24 नवंबर हिंदी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और फिल्म निर्देशक अमोल पालेकर ने कहा कि ‘‘वह जन्मजात विद्रोही’’ नहीं हैं बल्कि वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें जो भी बात सही लगती है वह उसके बारे में बोलने के लिए खुद को बाध्य महसूस करते हैं।
पालेकर ने हाल के वर्षों में सांस्कृतिक और राजनीतिक दोनों मामलों पर मजबूती से अपनी राय व्यक्त की है, चाहे वह कलात्मक स्वतंत्रता के महत्व पर जोर देना हो या मुंबई एवं बेंगलुरु में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (एनजीएमए) में सलाहकार समितियों को भंग करने के संस्कृति मंत्रालय के फैसले की आलोचना करना हो।
उन्होंने फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘द केरल स्टोरी’ जैसी फिल्मों को भी दुष्प्रचार बताया।
अभिनेता ने कहा, ‘‘मैं कोई जन्मजात विद्रोही नहीं हूं। मैंने कभी किसी से लड़ाई नहीं की। विद्रोही होना और विरोध करना... यह सब कहीं न कहीं विकसित हुआ है। मैं बस अपने प्रति सच्चा रहना चाहता हूं। मैं जो भी महसूस करता हूं मैं उसके बारे में अपना पक्ष रखना चाहता हूं।’’
अमोल पालेकर को फिल्म ‘छोटी सी बात’, ‘रजनीगंधा’ और ‘चितचोर’ जैसी फिल्मों में आम आदमी का किरदार निभाने के लिए जाना जाता है।
पालेकर के जीवन पर आधारित पुस्तक के विमोचन के लिए शनिवार को आयोजित समारोह में उन्होंने यह बातें कहीं। उनकी किताब ‘व्यूफाइंडर’ (अंग्रेजी में शीर्षक) और मराठी में ‘ऐवाज’ नामक पुस्तक का विमोचन फिल्म निर्माता गोविंद निहलानी और अभिनेता नाना पाटेकर की उपस्थिति में किया गया।
पाटेकर ने पालेकर को अपना गुरु और बड़ा भाई बताया तथा उस समय को याद किया जब अभिनेता-फिल्म निर्माता ने उन्हें 1990 की संगीतमय ड्रामा "थोड़ासा रूमानी हो जाएं" में निर्देशित किया था।
पाटेकर ने बताया "कई बार अनुरोध करने के बाद उन्होंने मुझे उस फ़िल्म में कास्ट किया। उस समय 'परिंदा' रिलीज़ हुई थी और कई लोगों को पसंद आई थी। 'थोडासा रूमानी...' में भूमिका एक मृदुभाषी व्यक्ति की थी और अमोल ने मुझसे कहा, 'आपका कठोर व्यक्तित्व इस भूमिका के लिए उपयुक्त नहीं होगा और इसलिए मैं आपको इस भूमिका में नहीं ले सकता।’’
पाटेकर ने कहा, "मैं उनसे15. 20 दिन तक लगातार मिला और उनसे कहा, 'मैं एक अभिनेता हूं, मैं कोई भी भूमिका कर सकता हूं।' आखिरकार, उन्होंने मुझे कास्ट कर लिया। 'थोड़ा सा रूमानी...' मेरे करियर की एक महत्वपूर्ण फिल्म है और मैं इसके लिए उनका आभारी हूं।"
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