चंबल नदी में कैसे बढ़ती गई घड़ियालों की आबादी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

चंबल नदी में कभी घड़ियाल खत्म होने के करीब पहुंच गए थे. अब सैकड़ों की संख्या में उनके बच्चे नदी में दिख रहे हैं. यह संरक्षण की कोशिशों का असर है.चंबल नदी के किनारे एशिया के सबसे बड़े घड़ियाल अभयारण्य में घड़ियालों का कुनबा तेजी से बढ़ रहा है. बीते दिनों उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की बाह तहसील में करीब 900 छोटे घड़ियालों ने रेत से निकलकर चंबल नदी के पानी में प्रवेश किया.

चंबल नदी अभयारण्य क्षेत्र में घड़ियालों के अंडों से बच्चे निकलने का सिलसिला जारी है. वन विभाग के अधिकारी भी यह देखकर काफी खुश हैं क्योंकि संरक्षण की उनकी कोशिशें रंग दिखा रही हैं. अंडों की देखभाल की कोशिशों का नतीजा है कि इस क्षेत्र में करीब 1,000 घड़ियाल पानी में पहुंच चुके हैं.

नदी के रेत में अंडों की रखवाली मादा घड़ियाल करती है. उनसे बच्चे निकलने पर नर घड़ियाल अपनी पीठ पर बैठाकर बच्चों को पानी में पहुंचाता है. यह दृश्य बड़ा मनोरम होता है. आस-पास के ग्रामीण भी इसे देखने के लिए बड़ी संख्या में सैंक्चुरी के पास इकट्ठा हो रहे हैं.

1979 में शुरू हुआ घड़ियालों का संरक्षण

इटावा में स्थानीय पत्रकार दिनेश शाक्य बताते हैं, "इस क्षेत्र में घड़ियालों का कुनबा बढ़ना एक अच्छी खबर है क्योंकि इनकी संख्या तेजी से घटती जा रही थी. वन विभाग ने इनके संरक्षण की कोशिशें शुरू कीं, उसी का नतीजा है कि बड़ी संख्या में घड़ियाल पानी में तैरते दिख रहे हैं. अभी करीब एक हफ्ते तक हैचिंग, यानी अंडों से बच्चों का निकलना जारी रहेगा. अंडों से निकलने के बाद इन्हें रेत की गर्मी से बचाना भी बड़ा महत्वपूर्ण होता है, ताकि नन्हे घड़ियाल सुरक्षित रहें. इसीलिए इन्हें तुरंत पानी में पहुंचाने की व्यवस्था की जाती है."

आगरा में चंबल सैंक्चुरी की डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) आरुषि मिश्रा ने बताया कि 9 जून से ही बाह रेंज में घड़ियालों की हैचिंग चल रही है. पहले दिन अंडों से निकले करीब 900 बच्चे चंबल नदी तक पहुंच गए हैं. डीएफओ आरुषि ने बताया कि घड़ियाल के एक अंडे का वजन करीब 112 ग्राम होता है. इन्हें बचाना बड़ा मुश्किल होता है क्योंकि जन्म लेने वाले पांच प्रतिशत घड़ियाल शिशु ही बच पाते हैं. नन्हे घड़ियालों को पानी में बड़ी मछलियां और बगुले जैसे पक्षी अपना शिकार बना लेते हैं.

कटते जंगल और हाथी-इंसान के बीच बढ़ता संघर्ष

चंबल नदी राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से होकर बहती है. चंबल में लुप्तप्राय घड़ियालों का संरक्षण साल 1979 में शुरू हुआ था. इसके अंतर्गत चंबल के राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के क्षेत्र को नेशनल चंबल सैंक्चुरी (एनसीएस) प्रोजेक्ट घोषित किया गया था. इसके बाद से ही चंबल में घड़ियाल और डॉल्फिन की संख्या बढ़ने लगी.

शुरुआत में घड़ियालों के अंडे लखनऊ के कुकरैल प्रजनन केंद्र में जाते थे, जहां विशेषज्ञों की देखरेख में इनकी हैचिंग होती थी. हैचिंग के तरीके में आए बदलावों पर आरुषि मिश्रा बताती हैं, "पिछले 14 साल से चंबल नदी में प्राकृतिक हैचिंग हो रही है. इसके तहत मार्च के आखिर से अप्रैल तक रेत में बनाए घोंसलों में मादा घड़ियाल 35 से 60 तक अंडे देती हैं. इन अंडों को जाली लगाकर सुरक्षित रखा जाता है."

पर्यटकों का आकर्षित कर रहा है यह इलाका

साल 2008 में बाह, इटावा, भिंड और मुरैना में 100 से ज्यादा घड़ियालों की मौत होने से यह संरक्षण योजना खतरे में पड़ गई थी. उस वक्त घड़ियालों की मौत की वजह जानने के लिए विदेशों से भी विशेषज्ञ बुलाए गए थे. ऐसा माना गया कि घड़ियालों की मौत लिवर सिरोसिस की वजह से हुई थी. हालांकि, उसके बाद से घड़ियालों की संख्या साल-दर-साल बढ़ ही रही है. वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस साल की गणना के मुताबिक, अब तक घड़ियालों की कुल संख्या 2,456 हो गई है.

1970-80 के दशक में डकैतों के खौफ की वजह से कुख्यात चंबल का यह इलाका संरक्षण प्रयासों के कारण अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है. चंबल नदी के पास डॉल्फिन, घड़ियाल, कछुए और विलुप्त श्रेणी में शामिल कई पक्षियों का संरक्षण हो रहा है. इन जीवों की संख्या यहां तेजी से बढ़ रही है.

दिनेश शाक्य बताते हैं कि इटावा में सफारी पार्क (लायन सफारी) बनने से यह पूरा इलाका एक पर्यटन क्षेत्र की तरह विकसित हो गया है. उनके मुताबिक, पर्यटकों को चंबल के बीहड़ भी देखने को मिलते हैं और ये जीव-जंतु भी. इटावा के लायन सफारी में एशियाई शेर हैं. हालांकि, कई बार शेरों के मरने की वजह से यह काफी चर्चा में भी रहा है लेकिन अब शेरों के मरने की घटनाएं कम हो गई हैं.

डॉल्फिन सैंक्चुरी बनाने का भी प्रस्ताव

इटावा में चंबल सैंक्चुरी के 20 किलोमीटर के इलाके में बड़ी संख्या में डॉल्फिन भी पाई जाती हैं. यहां डॉल्फिनों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. डीएफओ आरुषि मिश्रा के मुताबिक, यहां करीब 80 डॉल्फिन हैं और इनके संरक्षण के लिए डॉल्फिन सैंक्चुरी का भी प्रस्ताव शासन को भेजा गया है. नेशनल चंबल सैंक्चुरी के बाह और इटावा रेंज में 171 डॉल्फिन रिकॉर्ड की गई हैं. एक दशक पहले इनकी संख्या महज 78 थी.

गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन को साल 2010 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया था. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत हर साल 5 अक्टूबर का दिन डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है. 2012 में राज्य की अलग-अलग नदियों में डॉल्फिनों की गिनती हुई थी और उस वक्त इनकी संख्या 671 थी. इनमें से 78 डॉल्फिन चंबल नदी में थीं.