Russia-Ukraine War: यूक्रेन में जारी युद्ध के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का हो सकता है तख्तापलट?

यूक्रेन में जारी युद्ध और रूस पर लगाये जा रहे प्रतिबंधों के बीच कई सवाल पूछे जा रहे हैं। राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कब तक सत्ता में बने रह सकते हैं? हालिया अटकलों के अनुसार, क्या उनका तख्तापलट किया जाएगा? और क्या पुतिन द्वारा शुरू की गई केंद्रीकृत शासन प्रणाली उनके बाद भी जारी रह सकती है?

राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Photo Credits: Twitter)

Russia-Ukraine War: यूक्रेन में जारी युद्ध और रूस पर लगाये जा रहे प्रतिबंधों के बीच कई सवाल पूछे जा रहे हैं. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन कब तक सत्ता में बने रह सकते हैं? हालिया अटकलों के अनुसार, क्या उनका तख्तापलट किया जाएगा? और क्या पुतिन द्वारा शुरू की गई केंद्रीकृत शासन प्रणाली उनके बाद भी जारी रह सकती है? हमें रूसी संविधान में इन सवालों के जवाब मिल सकते हैं। पुतिन के शासन काल में अपनी प्रासंगिकता खोने वाला यह दस्तावेज बताता है कि भले ही पुतिन के संक्षिप्त अवधि तक सत्ता में बने रहने की संभावना हो, लेकिन रूस के लंबे समय तक अस्थिरता का सामना करना का खतरा है.

राष्ट्रपति पद पर पुतिन की पकड़ की कहानी रूस के कुलीन वर्ग पर उनके अनौपचारिक प्रभाव की ओर इशारा करती है, जिसकी बुनियाद खुफिया एजेंसी में उनके प्रशिक्षण पर आधारित है. हालांकि, इससे पुतिन को शीर्ष पर रखने में औपचारिक संवैधानिक नियमों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. कहानी लगभग 30 साल पहले सोवियत संघ के ढहते किलों के खंडहर के बीच शुरू होती है. रूस के,1993 की सर्दियों में गृहयुद्ध में तकरीबन उतरने के बीच तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने संविधान के कार्यकारी मसौदे में कई अहम बदलाव किए थे. यह भी पढ़े: http://Russia Ukraine War: यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने दिया बड़ा बयान कहा- बढ़ते हमले वार्ता की गुंजाइश समाप्त कर सकते हैं

उन्होंने व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने वाले प्रावधानों से तो कोई छेड़छाड़ नहीं की थी, लेकिन मसौदे में कुछ ऐसे नियम शामिल किए थे, जिससे एक बेहद शक्तिशाली राष्ट्रपति पद की नींव तैयार हुई, जो औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों तरह की राजनीति पर हावी हो सकता था. इस ‘शाही-राष्ट्रपति’ संवैधानिक ढांचे ने तब से रूस के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर किया है.

येल्तसिन और उनके पश्चिमी समर्थक,1990 के दशक में, इन शक्तियों को बेहद अहम मानते थे. ‍वे इसे एक ‘लोकतांत्रिक हथियार’ के तौर पर देखते थे, जो मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए अहम मुश्किल फैसले लेने में मददगार साबित हो सकता है. येल्तसिन ने इन संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल नव-उदारवादी आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने और चेचन्या में एक क्रूर युद्ध छेड़ने के लिए किया. लेकिन, पश्चिमी देशों और उनके कुछ सलाहकारों के दबाव के चलते येल्तसिन ने क्षेत्रीय गवर्नरों को भी सत्ता का विकेंद्रीकरण किया और एक बहुलवादी मीडिया का सामना किया.

राष्ट्रपति की शक्तियों पर लागू इन्हीं सीमाओं और संविधान में प्रदत्त अधिकारों व लोकतांत्रिक गारंटी के चलते ज्यादातर पर्यवेक्षकों ने रूस को एक युवा लोकतंत्र घोषित किया. साल 2000 में व्लादिमीर पुतिन के राष्ट्रपति बनने पर यह सब बदल गया। ‘कानून का शासन के सर्वोच्च होने’ की घोषणा करते हुए पुतिन ने केंद्रीय विधि संस्थानों को राष्ट्रपति के प्रभुत्व वाली संवैधानिक प्रणाली को लागू कराने का अधिकार दिया. इससे पुतिन को रूस के कुलीन वर्ग और क्षेत्रीय गवर्नरों पर व्यक्तिगत रूप से नियंत्रण बनाने में मदद मिली. वह टेलीविजन मीडिया पर भी एकाधिकार कायम करने में सक्षम हुए, जिससे उन्हें रूसी जनता के बीच प्रसारित होने वाली राजनीतिक सूचना को नियंत्रित करने में सहायता मिली.

तब से लेकर अब तक पुतिन अपनी व्यक्तिगत शक्तियों को बनाए रखने के लिए संवैधानिक व्यवस्था पर निर्भर रहे हैं। 2011 के चुनावों में धांधली के आरोपों के बाद पुतिन ने विपक्ष के बढ़ते विरोध को कुचलने के लिए अभियोजकों और अदालतों पर अपने नियंत्रण का इस्तेमाल किया. उन्होंने 2020 में रूसी राजनीति पर व्यक्तिगत नियंत्रण को और मजबूत बनाने के लिए संविधान के प्रमुख प्रावधानों में बदलाव किये. राष्ट्रपति की ये शक्तियां आज भी उनके व्यक्तिगत प्रभाव का एक महत्वपूर्ण पहलू हैं.

रूसी शासन में संवैधानिक कानून की यह केंद्रीय भूमिका हमें रूस के भविष्य के बारे में बहुत कुछ इशारा करती हैं.

राष्ट्रपति कार्यालय को दी गई विशाल शक्तियां संक्षिप्त अवधि में तो रूस में स्थिरता सुनिश्चित करेंगी, जिससे पुतिन को अपने वफादार सहयोगियों को बनाए रखने और किसी भी असंतोष को दूर करने में मदद मिलेगी. लेकिन, लंबी अवधि में ये राजनीतिक शक्तियां रूस में अस्थिरता को बढ़ावा देंगी.

इस तरह की प्रणाली में सत्ता के व्यक्तिगत बनने ने पहले से ही संस्थानों (जैसे रूसी सेना) को कमजोर कर दिया है और खराब फैसलों (जैसे यूक्रेन पर आक्रमण करने का निर्णय) का सबब बनी है.आने वाले समय ये समस्याएं और बढ़ेंगी.

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