नयी दिल्ली, 22 मई दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार द्वारा संचालित एम्स के एक रैन बसेरे का तत्काल निरीक्षण करने का आदेश दिया, जहां 22 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। साथ ही दिल्ली के मुख्य सचिव को हालात का जायजा लेने और बिना किसी देरी के सुधारात्मक कदम उठाने का भी निर्देश दिया।
उच्च न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) की ओर से संचालित रैन बसेरा के एम्स परिसर में होने के बाद भी संक्रमितों को दिल्ली सरकार के लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल और राजीव गांधी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में क्यों स्थानांतरित किया गया?
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई के दौरान कहा कि कोविड-19 की जांच में संक्रमित पाए गए 22 लोग एम्स परिसर के रैन बसेरे में रह रहे थे तो हमें यह समझ नहीं आ रहा कि इन्हें एम्स के कोविड-19 केंद्र में क्यों नहीं ले जाया गया और उन्हें दूर स्थित अस्पतालों में क्यों स्थानांतरित किया गया।
पीठ ने कहा, '' एम्स में ही इन मरीजों को इलाज की सुविधा नहीं दिए जाने के पहलू पर, हमने मुख्य सचिव, स्वास्थ्य, दिल्ली सरकार, डीयूएसआईबी के संबंधित निदेशक और एम्स के प्राधिकृत अधिकारी को अपने-अपने शपथपत्र दाखिल करने को कहा है।''
सामाजिक कार्यकर्ता रचना मलिक ने पीठ को सूचित किया कि रैन बसेरे में शुद्ध पानी और शौचालय की पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं है।
हालांकि, डीयूएसआईबी के वकील ने इस पर कहा कि रैन बसेरे में अलग से शौचालय की बेहतर व्यवस्था है और इनकी नियमित तौर पर देखभाल की जाती है।
विरोधाभाषी बयान सामने आने के बाद पीठ ने निर्देश दिया कि तत्काल रैने बसेरे का निरीक्षण किया जाए और इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी की जाए तथा रैन बसेरे में रहने वालों के बयान भी दर्ज किए जाएं। मामले में 27 मई को अगली सुनवाई होगी।
उच्च न्यायालय दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। एक जनहित याचिका करण सेठ की ओर से दाखिल की गई थी, जिसमें एम्स में अन्य राज्यों से इलाज कराने आने वाले मरीजों की परेशानियों को दूर करने की मांग की गई थी। इसमें कहा गया है कि कोविड-19 प्रकोप के बाद एम्स में अन्य बीमारियों से ग्रसित मरीजों का इलाज नहीं किया जा रहा है।
वहीं, दूसरी जनहित याचिका में रचना मलिक ने एम्स के रैन बसेरे में सुविधाओं की कमी का जिक्र किया था।
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