नयी दिल्ली, एक अप्रैल दुर्लभ बीमारियों के लिए नीति के संबंध में सरकार की नयी मसौदा रिपोर्ट में वैकल्पिक कोष बनाने और एक बार उपचार कराने वाले जरूरतमंद रोगियों के लिए सहायता 15 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये करने का प्रस्ताव रखा गया है।
दुर्लभ बीमारियों के लिए नीति की नयी मसौदा रिपोर्ट को स्वास्थ्य मंत्रालय ने 31 मार्च को जारी किया और इसमें उपचार की प्रकृति के आधार पर दुर्लभ बीमारियों की तीन श्रेणियां चिह्नित की गयी हैं।
इनमें एक बार के उपचार वाले रोग, लंबे समय तक और अपेक्षाकृत कम उपचार लागत वाली बीमारियां और साथ ही ऐसे रोग शामिल हैं जिनका उपचार तो उपलब्ध है लेकिन अत्यधिक खर्च और लंबे समय तक उपचार के कारण रोगियों के चयन को लेकर चुनौतियां होती हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में तकरीबन 5 करोड़ से 10 करोड़ लोग दुर्लभ बीमारियों या व्याधियों से ग्रस्त हैं और इनमें करीब 80 फीसदी रोगी बच्चे हैं। इनमें से अधिकतर बच्चे तो इन जानलेवा बीमारियों के कारण अत्यधिक मृत्यु दर की वजह से वयस्क अवस्था तक नहीं पहुंच पाते।
नीति में प्रस्ताव है कि लोगों द्वारा स्वैच्छिक दान और कॉर्पोरेट चंदे के माध्यम से दुर्लभ बीमारियों के लिए एक वैकल्पिक कोष बनाया जाए।
इसमें दुर्लभ बीमारियों के लिए एक बार उपचार की जरूरत वाले रोगियों को दी जाने वाली सहायता राशि 15 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये करने का प्रस्ताव भी है।
मसौदे के अनुसार, ‘‘राष्ट्रीय आरोग्य योजना के तहत यह सहायता प्रदान की जाएगी।’’
इसमें कहा गया है कि सहायता के लाभार्थियों में केवल बीपीएल परिवार नहीं होंगे बल्कि प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत पात्र करीब 40 फीसदी आबादी को इसका लाभ पहुंचाया जाएगा।
सरकार ने दुर्लभ बीमारियों से ग्रस्त रोगियों की सहायता के लिए आठ उत्कृष्टता केंद्र चिह्नित किये हैं।
इनमें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नयी दिल्ली, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ, सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स, हैदराबाद, किंग एडवर्ड मेडिकल अस्पताल, मुंबई और स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान संस्थान, कोलकाता शामिल हैं।
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