पारिस्थितिकी विनाश लाने पर तुली है सरकार: जयराम रमेश ने ‘ग्रेट निकोबार’ परियोजना पर कहा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ‘ग्रेट निकोबार’ द्वीप अवसंरचना परियोजना को लेकर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि परियोजना को दी गई पर्यावरणीय मंजूरियों की पुनः समीक्षा करने के लिए गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति की संरचना ही पक्षपातपूर्ण है और उसने कोई सार्थक पुनर्मूल्यांकन नहीं किया.
नयी दिल्ली, 29 सितंबर : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ‘ग्रेट निकोबार’ द्वीप अवसंरचना परियोजना को लेकर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर आरोप लगाया है कि परियोजना को दी गई पर्यावरणीय मंजूरियों की पुनः समीक्षा करने के लिए गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति की संरचना ही पक्षपातपूर्ण है और उसने कोई सार्थक पुनर्मूल्यांकन नहीं किया. रमेश ने इस बात पर भी ‘‘गंभीर चिंता’’ व्यक्त की कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा उसके समक्ष प्रस्तुत याचिकाओं पर विचार-विमर्श किए जाने के बावजूद ‘इच्छा की अभिव्यक्ति’ (ईओआई) आमंत्रित की जा रही है. यादव को लिखे अपने पत्र में रमेश ने परियोजना को दी गई पर्यावरणीय मंजूरियों की पुनः समीक्षा करने के लिए गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) की विश्वसनीयता, संरचना और निष्कर्षों पर भी सवाल उठाया.
पूर्व पर्यावरण मंत्री ने कहा, ‘‘यह भी गंभीर चिंता का विषय है कि जब एनजीटी अपने समक्ष प्रस्तुत याचिकाओं पर विचार-विमर्श कर रहा है, तो एएनआईआईडीसीओ (अंडमान और निकोबार द्वीप समूह एकीकृत विकास निगम लिमिटेड) ने पहले ही ‘इच्छा की अभिव्यक्ति’ आमंत्रित कर ली है जो जैव विविधता से संपन्न लगभग 65 वर्ग किलोमीटर के जंगलों को साफ करने की दिशा में कदम है. मेरा मानना है कि भारत सरकार हमारे देश में पारिस्थितिकी और मानवीय आपदा लाने पर तुली है.’’ रमेश ने उन मीडिया रिपोर्ट का जिक्र किया जिनमें कहा गया है कि मंत्रालय ने एनजीटी की पूर्वी क्षेत्र पीठ के समक्ष एक जवाबी हलफनामा दायर किया है जिसमें उसने कहा है कि ग्रेट निकोबार बुनियादी ढांचा परियोजना के लिए दी गई मंजूरी में द्वीप तटीय विनियमन क्षेत्र (आईसीआरजेड) अधिसूचना, 2019 का उल्लंघन नहीं किया गया है और परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी देने पर फिर से विचार करने के एनजीटी के आदेशों का अनुपालन किया गया है. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण में ग्रेट निकोबार द्वीप विकास परियोजना पर दायर जवाबी हलफनामे के बारे में समाचार रिपोर्ट पढ़ी, जिस पर हमारे बीच पहले भी विस्तृत चर्चा हो चुकी है.’’ यह भी पढ़ें : जन समस्याओं का संवेदनशीलता व शीघ्रता से निपटान किया जाए: योगी आदित्यनाथ
रमेश ने कहा, ‘‘सबसे पहले तो मैं इस बात से हैरान हूं कि पर्यावरण और सीआरजेड (तटीय विनियमन क्षेत्र) मंजूरी की समीक्षा करने के लिए एनजीटी के निर्देश के अनुपालन के तहत पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति (एचपीसी) ने किसी भी स्वतंत्र संस्थान या विशेषज्ञ को शामिल नहीं किया, जबकि एनजीटी ने उसे ऐसा करने की छूट दी थी.’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह वाकई आश्चर्यजनक है कि एच.पी.सी. के सदस्यों में (1) परियोजना की परिकल्पना करने वाला नीति आयोग, (2) परियोजना प्रस्तावक अंडमान -निकोबार द्वीप एकीकृत विकास निगम (एएनआईआईडीसीओ), (3) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति का एक प्रतिनिधि जिसने सबसे पहले मंजूरी की सिफारिश की और (4) मंजूरी देने वाला पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय शामिल है. क्या मुझे एचपीसी की विश्वसनीयता और ईमानदारी के बारे में कुछ और कहने की आवश्यकता है?’’
उन्होंने कहा, ‘‘पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एनजीटी के निर्देश को स्पष्ट रूप से कमजोर कर दिया था और एचपीसी को बहुत सीमित विचारार्थ विषय दिए. जहां तक मुझे याद है, एनजीटी ने केवल ‘उदाहरण के तौर पर’ केवल तीन ‘ऐसी कमियां बताई हैं जिनका उत्तर नहीं दिया गया.’ विचारार्थ विषय एनजीटी द्वारा उसके आदेश में उद्धृत इन तीन उदाहरणों तक ही सीमित थे, जिनके कारण एचपीसी का गठन हुआ.’’ उन्होंने कहा कि उच्चस्तरीय समिति अपनी संरचना के कारण पक्षपाती है तथा उसने कोई सार्थक एवं व्यापक पुन: समीक्षा नहीं की, जैसा कि उसे करने का निर्देश दिया गया था. रमेश ने कहा, ‘‘एचपीसी की रिपोर्ट को गुप्त रखा गया है.’’ उन्होंने कहा कि ‘‘मुझे यह समझ में नहीं आता कि जब मंजूरी देने की मूल प्रक्रिया को ही ‘विशेषाधिकार प्राप्त और गोपनीय’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया था’’ तो समीक्षा को इस प्रकार कैसे गोपनीय रखा जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘पर्यटन को बढ़ावा देने पर केंद्रित एक टाउनशिप, एक वाणिज्यिक बंदरगाह और एक बिजली संयंत्र को अचानक ऐसी ‘‘रणनीतिक परियोजना’’ कैसे घोषित किया जा सकता है, जिस पर कोई सार्वजनिक बहस नहीं हो सकती?’’ रमेश ने 28 सितंबर को लिखे पत्र में कहा, ‘‘जैसा कि आप अच्छी तरह जानते हैं कि तटीय क्षेत्रों को जोन में वर्गीकृत करना उनकी पारिस्थितिक संवेदनशीलता पर आधारित है. कुछ जोन में निर्माण गतिविधियां प्रतिबंधित हैं. एनजीटी के अप्रैल 2023 के आदेश के अनुसार, कुल परियोजना क्षेत्र का सात वर्ग किलोमीटर से थोड़ा अधिक क्षेत्र ऐसे निषिद्ध क्षेत्र में आता है. अब पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के जवाबी हलफनामे में इस बात से इनकार किया गया है कि ऐसा है. नाटकीय रूप से अपने रुख से पलटने का आधार क्या है और प्रस्तुत किए जा रहे नए तथ्यों पर क्या भरोसा किया जा सकता है?’’ रमेश और यादव के बीच इस परियोजना पर पत्रों के माध्यम से पहले भी कई बार बातचीत हुई है.