जस्बे को सलाम! अफगानिस्तान में लड़कियां पुरानी कार के पुर्जों से वेंटिलेटर बनाने के काम में जुटी
देश में कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक हेरात शहर में लॉकडाउन को लागू करने के लिए स्थापित पुलिस चौकियों से बचने के लिए पीछे के रास्तों से छिपते-छिपाते हुए ये लड़कियां कार्यशाला पहुंचती हैं. रोबोटिक्स टीम की सदस्य कहती हैं कि वे जीवन बचाने के मिशन पर हैं
अफगानिस्तान (Afghanistan) में कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में से एक हेरात शहर में लॉकडाउन को लागू करने के लिए स्थापित पुलिस चौकियों से बचने के लिए पीछे के रास्तों से छिपते-छिपाते हुए ये लड़कियां कार्यशाला पहुंचती हैं. रोबोटिक्स टीम की सदस्य कहती हैं कि वे जीवन बचाने के मिशन पर हैं और पुरानी कार के पुर्जों से वेंटिलेटर बनाने की कोशिश कर रही हैं ताकि वायरस से लड़ने के लिए संघर्ष ग्रस्त देश की मदद कर सकें.
इस टीम की सदस्य सोमाया फारुकी (17) ने कहा, “अगर हम अपने उपकरण से एक भी जान बचा पाएं तो हमें गर्व होगा.” रूढ़िवादी अफगानिस्तान में उनका यह कार्य काफी उल्लेखनीय है. महज एक पीढ़ी पहले, तालिबान के शासन के दौरान लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी. फारुकी की मां को तीसरी कक्षा के बाद स्कूल नहीं जाने दिया गया था. कोरोना के खिलाफ जारी जंग में भारत-अफगानिस्तान एक साथ, राष्ट्रपति अशरफ गनी से बोले पीएम मोदी
अफगानिस्तान में 2001 में अमेरिकी आक्रमण के बाद लड़कियां स्कूल लौटने लगीं लेकिन बराबर का अधिकार पाना चुनौती बना रहा. फारुकी लेकिन अपने संकल्प पर अडिग है. वह कहती है, “हम नयी पीढ़ी हैं. हम लोगों के लिए लड़ते और काम करते हैं. लड़की हो या लड़का कोई फर्क नहीं पड़ता.”
अफगानिस्तान इस वैश्विक महामारी का सामना लगभग बिना किसी संसाधन के कर रहा है. एमआईटी की प्रोफेसर डेनियला रस ने प्रारूप विकसित करने की टीम की पहल का स्वागत किया है.
टीम की स्थापना करने वाली और लड़कियों को सशक्त बनाने के लिए चंदा जुटाने वाली प्रौद्योगिकी उद्यमी रोया महबूब ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि फारुकी की टीम मई और जून तक प्रारूप विकसित कर लेगी.
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