विदेश की खबरें | पर्यावरण प्रस्ताव: भारत ने पक्ष में किया वोट, लेकिन साथ ही व्यक्त की कुछ चिंताएं
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on world at LatestLY हिन्दी. भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है, जो स्वच्छ, स्वस्थ और चिरस्थायी पर्यावरण को मानवाधिकार के रूप में मान्यता देता है। हलांकि, भारत ने इसके एक पैराग्राफ से खुद को अलग कर लिया और प्रस्ताव की प्रक्रिया तथा सार पर चिंताएं व्यक्त कीं।
संयुक्त राष्ट्र, 29 जुलाई भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के उस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है, जो स्वच्छ, स्वस्थ और चिरस्थायी पर्यावरण को मानवाधिकार के रूप में मान्यता देता है। हलांकि, भारत ने इसके एक पैराग्राफ से खुद को अलग कर लिया और प्रस्ताव की प्रक्रिया तथा सार पर चिंताएं व्यक्त कीं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 193 सदस्यों देशों में से 161 के मतों के साथ बृहस्पतिवार को प्रस्ताव को पारित किया। वहीं, बेलारूस, कंबोडिया, चीन, इथियोपिया, ईरान, किर्गिस्तान, रूस और सीरिया मतदान के समय मौजूद नहीं थे।
भारत ने प्रस्ताव के पक्ष में मत दिया, लेकिन साथ ही इसकी प्रक्रिया और इसके सार पर चिंताएं व्यक्त कीं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में काउंसलर आशीष शर्मा ने मत पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि प्रस्ताव ‘‘ स्वच्छ, स्वस्थ और चिरस्थायी पर्यावरण के अधिकार को एक मानवाधिकार के रूप में मान्यता देता है ’’ और ‘‘ पुष्टि करता है कि स्वच्छ, स्वस्थ और चिरस्थायी पर्यावरण को मानवाधिकार के रूप में मान्यता देने के लिए अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण कानून के सिद्धांतों के तहत बहुपक्षीय पर्यावरण समझौतों के पूर्ण क्रियान्वयन की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भारत बेहतर पर्यावरण के लिए किसी भी प्रयास का समर्थन करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है। इसी संदर्भ में भारत ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है।’’
शर्मा ने कहा, ‘‘ हालांकि, हमारी चिंताएं अब भी कायम हैं इसलिए, हम प्रस्ताव के परिचालन संबंधी पैराग्राफ-1 से खुद को अलग करने को बाध्य हैं।’’
प्रस्ताव के परिचालन संबंधी पैराग्राफ-1 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ‘‘ एक मानवाधिकार के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ और चिरस्थायी पर्यावरण के अधिकार को मान्यता देती है।’’
उन्होंने अनुरोध किया कि इस बयान को बैठक में आधिकारिक रिकॉर्ड में शामिल किया जाए।
उन्होंने जोर देकर कहा कि यूएनजीए का प्रस्ताव कोई बाध्यकारी दायित्व निर्धारित नहीं करता और सदस्य देशों को केवल सम्मेलनों तथा संधियों के माध्यम से इसे पूरा करने के लिए बाध्य बनाता है।
शर्मा ने कहा, ‘‘ ‘स्वच्छ’, ‘स्वस्थ’ और ‘ चिरस्थायी’ शब्दों की कोई स्पष्ट समझ एवं ऐसी परि नहीं है, जिस पर सभी सहमत हों। वर्तमान में, सभी ने अपनी समझ से इनकी परिएं गढ़ रखी हैं और इस प्रकार वर्तमान प्रस्ताव में घोषित मान्यता का उद्देश्य इससे कमजोर पड़ता है।’’
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