ताजा खबरें | कुछ सदस्यों के अपमानजनक आचरण से ‘तुरंत’ पद से इस्तीफा देने का विचार आया: धनखड़

नयी दिल्ली, 10 फरवरी राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि जब उच्च सदन के सदस्य जयंत चौधरी अपने दादा चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की घोषणा पर सदन को संबोधित कर रहे थे उस वक्त कांग्रेस सदस्यों के ‘अपमानजनक’ आचरण से इतने दुखी हुए कि एक ‘किसानपुत्र’ होने के नाते उनके मन में अपने पद से तुरंत त्यागपत्र देने का विचार आया।

उच्च सदन में अर्थव्यवस्था पर लाए गए श्वेत पत्र पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का जवाब समाप्त होने के तुरंत बाद धनखड़ ने सदन में कुछ सदस्यों के आचरण पर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए यह बात कही।

उन्होंने दुखी और आहत मन से कहा, ‘‘आज का दिन मेरे लिए अत्यंत पीड़ा का रहा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह सदन पूरे देश का प्रतीक है। इस सदन में जो भी आचरण होता है, उसका चिंतन व अध्ययन होता है। लोगों के मन में प्रसन्नता होती है तो लोगों के मन में दुख भी होता है।’’

धनखड़ ने कहा कि ईमानदारी के प्रतीक, उत्कृष्ट आचरण के धनी, किसान और गरीबों के हितकारी चौधरी चरण सिंह को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देना स्वाभाविक रूप से सभी के लिए एक उत्सव का विषय होना चाहिए था।

उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मेरा आज इस आसन पर विराजमान होना मेरे लिए दुखदाई रहा। आज मैं मान कर चलता हूं कि सदन का हर सदस्य भारत के इस महान सपूत को भारत रत्न दिए जाने पर गर्व महसूस करता है।’’

उन्होंने कहा कि चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी को उनके लिखित अनुरोध पर कुछ समय सदन में देना स्वाभाविक था क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री किसी परिवार तक सीमित नहीं थे।

उन्होंने कहा, ‘‘जब यह मुद्दा उठा और जो आचरण मैंने देखा, वह अप्रत्याशित, अपमानजनक, पीड़ादायक और गरिमा के विपरीत था। कुछ लोगों का आचरण इतना छोटा था कि मैं शर्मसार हो गया। मेरे मन में कई विचार आए। कृषक पुत्र होने के नाते मेरे मन में एक विचार तुरंत पद त्याग का भी आया।’’

सभापति का इशारा जयंत चौधरी को बोलने का अवसर देने पर नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से आपत्ति जताने और कुछ विपक्षी सदस्यों की ओर से हंगामा किए जाने की ओर था।

खरगे ने कहा था कि जिन भी शख्सियतों को भारत रत्न देने की घोषणा की गई है उस पर कोई विवाद नहीं है और वह सभी को सलाम करते हैं लेकिन किस नियम के अधीन जयंत चौधरी को बोलने का मौका दिया गया।

उन्होंने कहा कि विपक्ष के सदस्य नियमों के अधीन भी मुद्दा उठाना चाहते हैं तो उन्हें ‘चुप’ करा दिया जाता है।

धनखड ने अपने जवान बेटे के निधन की पीड़ा साझा करते हुए कहा कि आज उन्हें अधिक पीड़ा हुई जब जयंत चौधरी बोल रहे थे और कांग्रेस के सदस्य अपमानजनक आचरण कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के जयराम रमेश ने क्या कहा वह सब सुन रहे थे।

उन्होंने कहा, ‘‘यह हरकत नजरअंदाज नहीं कर सकते। मैंने देखी है यह पीड़ा महसूस की है।’’

धनखड़ ने सदस्यों से अनुरोध किया कि राजनीतिक बहस में चाहे वह जितने हथियार निकाले लेकिन जहां व्यक्तियों के सम्मान की बात आती है सभी को बहुत संवेदनशील होना चाहिए।

उन्होंने आज के घटनाक्रम पर कहा, ‘‘यह बात सदन तक सीमित नहीं रहेगी, यह बात करोड़ों लोगों तक जाएगी। ऐसा नहीं होना चाहिए था। बहुत मैं बहुत ही संयमित होकर और सदन की प्रतिष्ठा को दृष्टिगत रखकर आहत दिल से यह बात कह रहा हूं।’’

उन्होंने कहा कि जब जयंत चौधरी को जब बोलने नहीं दिया गया और उसके साथ ‘अभद्र व्यवहार किया गया तो उस वक्त उनके परिवार, किसानों-मजदूरों और गांवों में क्या संदेश गया होगा।

सभापति ने कहा, ‘‘मान कर चलिए इसका बहुत व्यापक असर होगा। खुशी का असर बहुत कम होता है दुख बहुत लंबे समय तक पीड़ा देता है। वह दो मिनट बोल लेते बात खत्म हो जाती।’’

धनखड़ ने कहा कि वह नेता प्रतिपक्ष खरगे का बहुत आदर करते हैं क्योंकि उनका एक लंबा व सादगी भरा राजनीतिक जीवन रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘पर मैं खून के घूंट पीता रहता हूं कि आसान की गरिमा को वह ध्यान नहीं रखते। मैं इस चीज को हमेशा दूसरी दृष्टि से देखता हूं पर इसकी भी एक हद है। आप जगदीश धनखड़ के साथ कुछ भी कीजिए आपका विवेक है। आसन को चुनौती देना... जोर से बोलकर चुनौती देना... यह किसी को भी शोभा नहीं देता... खास तौर से प्रतिपक्ष के नेता को।’’

उन्होंने कहा कि वह सभी से हाथ जोड़कर सभी से माफी मांगते हैं कि सदन की ‘इस गिरावट’ पर वह अंकुश नहीं लग पाए।

सभापति ने कहा कि सदन को मंथन करना चाहिए कि सदन की गिरावट किस हद तक आ गई है।

उन्होंने सदस्यों से अनुरोध किया यह गिरावट और ना हो इसके लिए सदन के बाहर या भीतर सभी को मंथन करना चाहिए।

बेहद भावुक दिख रहे सभापति से सत्ता पक्ष के कुछ सदस्य उनसे कुछ आग्रह करते दिखे लेकिन इसे नजरअंदाज करते हुए उन्होंने उपसभापति हरिवंश को इशारे से आसन की ओर बुलाया और खुद अपने कक्ष में चले गए।

ब्रजेन्द्र

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