देश की खबरें | दिल्ली दंगे: दुकानों में तोड़फोड़ के तीन आरोपियों को जमानत, अदालत ने लगाई पुलिस को फटकार
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. दिल्ली की एक अदालत ने फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के संबंधित एक मामले में तीन लोगों को जमानत देते हुए कहा कि कई दुकानों में तोड़फोड़ करने से वाले सैंकड़ों लोगों की भीड़ में से पुलिस अभी तक केवल इनकी ही पहचान कर पाई है।
नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर दिल्ली की एक अदालत ने फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के संबंधित एक मामले में तीन लोगों को जमानत देते हुए कहा कि कई दुकानों में तोड़फोड़ करने से वाले सैंकड़ों लोगों की भीड़ में से पुलिस अभी तक केवल इनकी ही पहचान कर पाई है।
अदालत ने कहा कि पुलिस ने इस सवाल पर कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया कि घटना के बाद बीट कांस्टेबल का बयान दर्ज कराने में 40 दिन का समय क्यों लगा। बीट कांस्टेबल ने इस मामले में शाह आलम, राशिद सैफी और मोहम्मद शादाब की आरोपी के तौर पर पहचान की थी।
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न्यायालय ने कहा कि यहां तक कि जांच अधिकारी ने आरोप पत्र दाखिल किये जाने के काफी समय बाद हाल ही में चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किये।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने दंगों के दौरान दयालपुर इलाके में एक दुकान में कथित लूट, तोड़फोड़ और आगजनी के मामले में आलम, सैफी और शादाब को 20 हजार रुपये के मुचलके और इतनी ही जमानत राशि पर जमानत दे दी।
अदालत ने कहा कि न तो प्राथमिकी में उनका नाम है और न ही शिकायतकर्ता ओम सिंह ने उनपर कोई विशेष आरोप लगाए।
न्यायालय ने कहा कि घटना के दिन अपराध स्थल पर उनकी मौजूदगी को लेकर न तो कोई सीसीटीवी फुटेज और न ही कोई वायरल वीडियो पेश किया गया।
न्यायालय ने कहा, ''बीट कांस्टेबल द्वारा आवेदनकर्ताओं (आलम, सैफी और शादाब) की पहचान किये जाने से बमुश्किल कोई निष्कर्ष निकाला जा सकता है क्योंकि अदालत यह समझ नहीं पा रही है कि जब बीट कांस्टेबल ने 24 फरवरी 2020 को आवेदनकर्ताओं को स्पष्ट रूप से दंगा करते देख लिया था, तो उन्होंने उनका नाम लेने 5 अप्रैल 2020 तक का इंतेजार क्यों किय।''
अदालत ने कहा, ''घटना की तिथि और जांच अधिकारी द्वारा बीट कांस्टेबल पवन का बयान दर्ज कराने में लगभग 40 दिन का अंतराल है। इस बारे में जांच अधिकारी द्वारा कोई स्पष्टीकरण भी नहीं दिया गया...इससे गवाह की विश्वनीयता पर संदेह पैदा होता है।''
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