देश की खबरें | दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपभोक्ता मामलों में गैर-वकीलों के पेश होने के चलन की निंदा की
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नयी दिल्ली, 24 दिसंबर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपभोक्ता अदालतों में प्राधिकार पत्रों के आधार पर वादियों की ओर से गैर-वकीलों और अभिकर्ताओं के पेश होने के चलन पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि इस तरह की प्रथा न केवल अधिवक्ता की भूमिका को परिभाषित करने वाली कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों को कमजोर करती है, बल्कि ‘वकालतनामा’ की अवधारणा को भी कमजोर करती है, जिससे पेशेवर विशेषाधिकार और गोपनीयता के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा होती हैं, क्योंकि ऐसे व्यक्ति अधिवक्ता अधिनियम, 1961 द्वारा बाध्य नहीं होते हैं।
अदालत ने ऐसे ही एक प्राधिकार पत्र का हवाला देते हुए कहा, ‘‘यह अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के साथ मौलिक रूप से असंगत है, क्योंकि संबंधित अधिनियम विशेष रूप से नामांकित अधिवक्ताओं को यह कार्य सौंपता है। इस तरह की प्रथा न केवल अधिवक्ता की भूमिका को परिभाषित करने वाली कानूनी और नैतिक जिम्मेदारियों को, बल्कि वकालतनामा की अवधारणा को भी कमजोर करती है।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में अधिवक्ता ने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने, पत्राचार करने और (उपभोक्ता) आयोग के समक्ष मामलों पर बहस करने जैसी मुख्य व्यावसायिक जिम्मेदारियां प्रभावी रूप से एक गैर-अधिवक्ता को सौंप दी थीं।
न्यायाधीश ने 23 दिसंबर को पारित एक आदेश में दिल्ली की सभी उपभोक्ता अदालतों को निर्देश दिया कि वे सुनिश्चित करें कि पक्षों का प्रतिनिधित्व अधिवक्ताओं या अभिकर्ताओं/प्रतिनिधियों/गैर-अधिवक्ताओं द्वारा नियमों के अनुसार सख्ती से किया जाए।
अदालत ने आगे कहा कि वकीलों द्वारा जारी किए गए प्राधिकार पत्रों के आधार पर गैर-अधिवक्ताओं या अभिकर्ताओं को पेश होने की अनुमति देने की प्रथा को ‘‘तत्काल प्रभाव से अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’’
अदालत दिल्ली बार काउंसिल के साथ पंजीकृत कई अधिवक्ताओं द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गैर-अधिवक्ताओं या अभिकर्ताओं/प्रतिनिधियों या सामाजिक संगठनों द्वारा उपभोक्ता अदालतों के समक्ष पक्षों के प्रतिनिधित्व के संबंध में एक ‘‘प्रणालीगत मुद्दा’’ उठाया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उपभोक्ता अदालतों में बिना उचित प्राधिकार के गैर-वकीलों के पेश होने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जो उपभोक्ता संरक्षण (अभिकर्ताओं या प्रतिनिधियों या गैर-वकीलों या स्वैच्छिक संगठनों को उपभोक्ता फोरम के समक्ष पेश होने की अनुमति देने के विनियमन की प्रक्रिया) विनियम, 2014 के ढांचे का उल्लंघन है।
अदालत ने उपराज्यपाल, दिल्ली सरकार, भारतीय विधिज्ञ परिषद (बीसीआई) और दिल्ली विधिज्ञ परिषद (बीसीडी) को नोटिस जारी करके याचिका पर जवाब देने को कहा है।
उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार की ओर से अतिरिक्त स्थायी वकील अनुज अग्रवाल पेश हुए, जबकि बीसीडी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता टी सिंहदेव ने किया।
अदालत ने राज्य उपभोक्ता आयोग और जिला उपभोक्ता फोरम को उन लंबित मामलों का ब्योरा देने का निर्देश दिया, जिनमें गैर-वकील पक्षकारों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
बीसीआई और बीसीडी को इस मुद्दे पर जवाबी हलफनामा दाखिल करके अपना जवाब देने का निर्देश दिया गया।
अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए अगले साल 18 मार्च की तारीख तय की है।
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