यूरोपीय संघ से पुराने कपड़ों का निर्यात 2020 से तीन गुना हो चुका है. लेकिन जानकार कहते हैं कि विदेशों में इन कपड़ों का भविष्य "बड़ा अनिश्चित" है.यूरोपीय जीवनशैली से पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में अपने अध्ययन के दौरान, सस्टेनेबिलिटी के जानकार लार्स मोर्टेन्सन ने पाया कि सरकारें तीन बड़ी समस्याओं से जूझ रही थीं- हमारी रिहाइशें, हमारा भोजन और हमारा आवागमन.
लेकिन दशकों से उनके जेहन में एक चौथी समस्या घर नहीं कर रही थी- और वो थी- हमारे पहने कपड़ों की. यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी से जुड़े मोर्टेन्सन कहते हैं कि कपड़ा उद्योग को बारीकी से रेगुलेट नहीं किया गया है. "अधिकांश कपड़ा उत्पादन यूरोप से बाहर होता है, जिसका मतलब अधिकांश असर यूरोप के बाहर ही पड़ता है."
फार्मों में मारे जा रहे हैं करोड़ों मिंक
यूरोपीय संघ अब फैशन उद्योग को पर्यावरणीय तौर पर साफ रखने पर जोर देने लगा है- उसके तय किए पैमाने, खुदरा विक्रेताओं को दुनिया के दूसरे हिस्सों में प्रदूषित सप्लाई चेनों को दुरुस्त करने पर मजबूर कर सकते हैं.
2030 तक, यूरोपीय संघ अपने बाजार में टिकाऊ और मरम्मत और रिसाइकिल होने लायक कपड़े ही बेचना चाहता है. लेबलों को भी और स्पष्ट करना होगा. ज्यादा से ज्यादा कपड़े रिसाइकिल फाइबर से बनाने होंगे. पिछले साल घोषित रणनीति में यूरोपीय आयोग ने कहा, "फास्ट फैशन, अब फैशन से बाहर हो चुका है."
लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में उभार और अफ्रीका और एशिया के बंदरगाहों में अवांछित कपड़ों से लदे जहाजों की भरमार को देखते हुए जानकारों को डर है कि कपड़ा उद्योग में दरअसल उल्टी गंगा बह रही है.
विश्व नेताओं का दावा है कि वे धरती के तापमान में डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक का स्तर बनाए रखने की कोशिश करेंगे. लेकिन पर्यावरण संगठन वर्ल्ड रिसोर्सेस इन्स्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये तभी मुमकिन है जबकि कपड़ा उद्योग से 2030 तक उत्सर्जन में 45 फीसदी कमी की जाए. लेकिन हो रहा है उल्टा- कपड़ा उद्योग से करीब 55 फीसदी ज्यादा उत्सर्जन निकलने की आशंका है.
बहुत कम होती है रिसाइक्लिंग
धरती को हर साल गर्म करने वाली दो फीसदी गैसें वैश्विक कपड़ा उद्योग से निकलती हैं. इनमें से अधिकांश गैस उत्सर्जन, उत्पादन से होता है. सिंथेटिक फाइबर बनाने के लिए फॉसिल ईंधनों का इस्तेमाल किया जाता है और जमीन और पानी की किल्लत के बावजूद कपास जैसे पौधे उगाए जाते हैं.
एच एंड एम और जारा जैसे बहुत से विशाल रिटेलरों ने, सस्ते कपड़ों के बड़े पैमाने पर उत्पादन और हफ्तावार नये स्टाइल उतारने की रणनीति पर अपना बिजनेस मॉडल खड़ा किया है. शाइन जैसे अपेक्षाकृत नये रिटेलर हर रोज नये स्टाइल उतारकर मुकाबले को और तीखा बना रहे हैं.
कैसा है फैशन का आपके मानसिक स्वास्थ्य पर असर
ग्राहकों और निवेशकों के दबाव में कुछ कंपनियां, ऐसा कलेक्शन लेकर उतर आई हैं जिसे वे सस्टेनेबल कहकर बेचती हैं और अपने बिजनेस को पर्यावरणीय लिहाज से सही दिखाने के लिए लक्ष्य भी तय रखती हैं. उदाहरण के लिए, फास्ट फैशन की विशाल कंपनी एच एंड एम ने 2030 तक उत्सर्जन में 56 फीसदी कटौती करने और 2040 तक नेट-जीरो पर पहुंचने की योजना बनाई है. स्पेन की खुदरा कंपनी जारा की मालिक इंडिटेक्स का लक्ष्य भी कमोबेश वही है.
लेकिन बढ़ती बिक्री के बीच पर्यावरणीय नुकसान को कम करना मुश्किल काम है. पहनने के बाद- और बाजदफा कभी उसके बिना भी- ज्यादातर कपड़े कचराघरों या इनसिनरेटरों में फिंकवा दिए जाते हैं. कचरे को कम करने क लिए काम कर रही चैरिटी संस्था, एलन मैकआर्थर फाउंडेशन के डाटा के मुताबिक कपड़ा बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सिर्फ 13 फीसदी सामग्री ही किसी रूप में रिसाइकिल होती है. एक प्रतिशत से भी कम सामग्री नया कपड़ा बनाने में इस्तेमाल होती है.
वर्ल्ड रिसोर्सेस इन्स्टीट्यूट में सस्टेनेबल बिजनेस के प्रमुख इलियन मेत्जगर कहते हैं कि समस्या दरअसल खपत या उपभोग की है, जिस पर कोई बात नहीं करना चाहता. "बहुत कम कंपनियां हैं जो ये मानने को तैयार होंगी कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए ज्यादा से ज्यादा माल हमेशा हमेशा नहीं बेचती रह सकतीं."
जमा होता कचरे का ढेर
फरवरी में आई, यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक औसत यूरोपीय व्यक्ति हर साल 15 किलोग्राम कपड़े का इस्तेमाल करता है जिसमें पर्दे और औद्योगिक फैब्रिक भी शामिल है. और एक चौथाई कपड़ा बाहर भेजा जाता है, ज्यादातर अफ्रीका और एशिया में. कपड़े स्वैच्छिक रूप से, जमा किए जाते हैं, और फिर दोबारा बेच दिए जाते हैं.
पिछले दो दशकों में, यूरोप से पुराने कपड़ों का निर्यात तीन गुना बढ़कर करीब 17 लाख टन हो चुका है. लेकिन ईईए ने पाया कि उनका अंजाम क्या होता है, ये पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है. रिपोर्ट के सह लेखक मोर्टेनसन कहते हैं, "हमें पता ही नहीं कि उन कपड़ों का होता क्या है."
यूरोप का 46 फीसदी पुराना कपड़ा अफ्रीका को जाता है. वहां सस्ते, सेंकड हैंड कपड़ों का बाजार है. लेकिन एक बड़ा और अज्ञात हिस्सा कचरा ठिकानों में, सड़को पर या नदियों में फेंक दिया जाता है. यूरोप से सबसे ज्यादा तादाद में पुराने कपड़े हासिल करने वाले अफ्रीकी देश घाना में एक अध्ययन के मुताबिक 40 फीसदी कपड़ा कचरे के ढेर में जा मिलता है. राजधानी अकरा में कारोबारी कहते हैं कि कुछ कपड़ों की हालत इतनी जर्जर होती है कि दोबारा पहने ही नहीं जा सकते.
यूरोप का 41 फीसदी अवांछित कपड़ा एशिया को जाता है. वहां कपड़े की छंटाई और आगे की प्रोसेसिंग हो जाती है. पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में ज्यादा माल आता है. ये देश बाकी दुनिया के लिए शिपिंग ठिकाने की तरह काम करते हैं.
अक्सर फैब्रिक को डाउनसाइकिल किया जाता है. यानी बेकार कपड़ों से औद्योगिक लत्ता बन जाता है या इमारतों के इन्सुलेशन में काम आता है. जिन कपड़ों का इस्तेमाल नहीं हो पाता उन्हें अक्सर जला दिया जाता है, कभी फैक्ट्री में ही या कचरा ठिकानों में फिंकवा दिया जाता है.
मांग में कटौती
उत्पादन की रफ्तार में कमी के संकेत नहीं दिखते. ऐसे में बाहर भेजे जाने वाले कपड़े की मात्रा में बढ़ोत्तरी होना तय है- लिहाजा कचरे से निपटने के लिए आगे और जूझना होगा.
आज, यूरोपीय संघ का करीब एक तिहाई बेकार कपड़ा, दोबारा इस्तेमाल और रिसाइकिल में काम आता है. लेकिन 2025 से, सदस्य देशों को ये सारा का सारा जमा करना होगा. इस सिस्टम को रिटेलर भी आंशिक रूप से आर्थिक मदद देंगे.
लेकिन अपनी रिसाइक्लिंग क्षमता को बढ़ाने के लिए एक जोरदार धक्के के बिना, यूरोप अपने जमा किए तमाम कपड़े को प्रोसेस करने में सक्षम नहीं होगा. वे देश भी ऐसा नहीं कर पाएंगे जहां ये कपड़ा निर्यात होगा. मोर्टेन्सन कहते हैं, "बेकार कपड़े की सबसे स्वाभाविक नियति इनसिनरेशन यानी जला दिए जाने की ही है."
इसे दुरुस्त करने के लिए कुछ कोशिशें चल रही हैं. अधिकतर संपन्न देशों के समूह, ओईसीडी से बाहर उन देशों को, यूरोपीय संघ अपना माल न भेजने पर रोक लगाने की योजना बना रहा है, जो सस्टेनेबल ढंग से उसका इस्तेमाल नहीं कर सकते. कचरा निर्यात करने वाली कंपनियों को ये सुनिश्चित करना होगा कि उनके भेजे माल का इस्तेमाल पर्यावरणीय लिहाज से सुरक्षित ढंग से होता है या नहीं.
यूरोपीय संघ की ये रणनीति, फैशन उद्योग के अंतर्निहित मुद्दे से भी निपटने की कोशिश करेगीः बहुत सारे जर्जर बेकार कपड़ों का मुद्दा. यूरोपीय संघ कपड़ों की मरम्मत को आसान बनाना चाहता है, उन्हें लंबी अवधि तक के इस्तेमाल लायक बनाना चाहता है, और बेहतर लेबलिंग की मदद से ग्रीनवॉशिंग (पर्यावरणीय-हरित मापदंडों के अनुपालन का भ्रामक और फर्जी दावा) से लड़ना चाहता है. पर्यावरण फुटप्रिंट में कटौती की छोटीमोटी कोशिशों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करने और उसी दौरान गैर-सस्टेनेबल तरीकों से मुनाफा कमाने की, फैशन ब्रांडों की रणनीति की, पर्यावरण आंदोलनों ने आलोचना की है.
जीरो वेस्ट यूरोप नाम के एक आंदोलन से जुड़ी थेरेसा म्युरजन कहती हैं कि अगर कोई बिजनेस मॉडल ओवरप्रोडक्शन यानी ज्यादा उत्पादन पर आधारित है तो "जैविक कपास से टीशर्टों का एक ब्रांड बना देने से सही मायनों में कुछ हासिल नहीं होता. सबसे ज्यादा सस्टेनेबल तरीका तो यही है कि कुछ खरीदो ही मत."