नयी दिल्ली, 13 मई उच्चतम न्यायालय ने धन शोधन मामले में गिरफ्तारी के बाद अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हटाने का अनुरोध करने वाली याचिका सोमवार को यह कहते हुए खारिज कर दी कि याचिकाकर्ता के पास उन्हें हटाने की मांग करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में इस्तीफा देना औचित्य का मामला है, लेकिन केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
पीठ ने याचिकाकर्ता कांत भाटी के अधिवक्ता से कहा, ‘‘कानूनी अधिकार क्या है? औचित्य पर आप निश्चित रूप से कुछ कह सकते हैं, लेकिन कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह उपराज्यपाल पर निर्भर है कि अगर वह चाहें तो कार्रवाई करें। हम इस (याचिका) पर सुनवाई नहीं करना चाहते।’’
पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 10 अप्रैल के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए कहा, ‘‘जब मामले (गिरफ्तारी के खिलाफ केजरीवाल की याचिका) पर सुनवाई हो रही थी, तो हमने उनसे यही सवाल किया था। आखिरकार, यह औचित्य का मामला है और कोई कानूनी अधिकार नहीं है।’’
इसमें बताया गया कि इस मुद्दे पर कई याचिकाएं उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई हैं।
उच्च न्यायालय ने केजरीवाल को हटाने की मांग को लेकर बार-बार दायर की जा रही याचिकाओं पर 10 अप्रैल को नाराजगी जताई थी।
अदालत ने कहा कि एक बार जब उसने इस मुद्दे को निस्तारित कर दिया है और यह कार्यपालिका के क्षेत्र में आता है, तो ‘‘बार-बार वाद’’ दायर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि यह जेम्स बॉण्ड की फिल्म नहीं है जिसके ‘सीक्वल’ होंगे।
इसने अदालत को ‘‘राजनीतिक मामले’’ में शामिल करने की कोशिश के लिए, केजरीवाल को पद से हटाने का अनुरोध करने वाले याचिकाकर्ता पूर्व आप विधायक संदीप कुमार की आलोचना की और कहा कि उन पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा।
अदालत ने 28 मार्च को केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के अनुरोध वाली एक जनहित याचिका खारिज करते हुए कहा था कि याचिकाकर्ता ऐसी कोई कानूनी बाध्यता दिखाने में विफल रहा है जो गिरफ्तार मुख्यमंत्री को पद संभालने से रोकती हो। अदालत ने कहा था कि ऐसे मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप की भी कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि इस मुद्दे को देखना राज्य के अन्य अंगों का काम है।
अदालत ने चार अप्रैल को इस मुद्दे पर दूसरी जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था और याचिकाकर्ता को उपराज्यपाल से संपर्क करने की छूट दी थी।
पिछले हफ्ते उच्चतम न्यायालय ने केजरीवाल को कथित आबकारी नीति ‘‘घोटाले’’ से जुड़े मामले में अंतरिम जमानत दे दी थी, ताकि वह लोकसभा चुनाव में प्रचार कर सकें, लेकिन वह 21 दिन की अंतरिम जमानत अवधि के दौरान तब तक किसी भी सरकारी फाइल पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे, जब तक उपराज्यपाल की मंजूरी प्राप्त करने के लिए ऐसा करना आवश्यक न हो।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल को जारी समन को चुनौती देने वाली उनकी याचिका पर गिरफ्तारी से सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था जिसके कुछ देर बाद ही 21 मार्च को ईडी ने केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया था।
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