अदालत ने राज्य में कोविड-19 की जांच को लेकर गुजरात सरकार से सवाल किये
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अहमदाबाद, 24 मई गुजरात उच्च न्यायालय ने कोविड-19 की जांच करने के लिये निजी प्रयोगशालाओं को इजाजत नहीं देने के राज्य सरकार के फैसले पर सवाल करते हुए कहा कि क्या इसका उद्देश्य प्रदेश में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों के आंकड़े को ‘कृत्रिम तरीके से नियंत्रित’ करना है।

अदालत ने राज्य को अधिकतम जांच किट खरीदने को कहा है, ताकि निजी एवं सरकारी अस्पताल सरकारी दर पर कोरोना वायरस की जांच कर सकें।

न्यायमूर्ति जे बी पर्दीवाला और न्यायमूर्ति आई जे वोरा की खंडपीठ ने शुक्रवार को अपने आदेश में यह भी कहा, ‘‘यह दलील कि अधिक संख्या में जांच करने से 70 प्रतिशत आबादी की कोविड-19 जांच रिपोर्ट पॉजिटिव आ जाएगी, यह डर की भावना पैदा करेगी।’’

अदालत ने सरकार को प्रचार के जरिये लोगों के बीच दहशत दूर करने और घर में पृथक रहना सुनिश्चित करने को कहा।

कोविड-19 के रोगी को अस्पताल से छुट्टी देने से पहले उसकी जांच अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। जबकि तीन या इससे अधिक दिन संक्रमण के मामूली, हल्के या कोई लक्षण नहीं दिखने वाले रोगियों की जांच नहीं किये जाने के लिये आईसीएमआर के दिशानिर्देश में कोई वैज्ञानिक आंकड़ा, या अनुसंधान या कारण नहीं बताया गया है।

अदालत ने कोविड-19 जांच के लिये निजी प्रयोगशालाओं को इजाजत नहीं देने को लेकर गुजरात सरकार से सवाल करते हुए कहा कि इससे यह मुद्दा उठता है क्या सरकार राज्य में संक्रमण के मामलों की संख्या के आंकड़े ‘कृत्रिम तरीके से नियंत्रित’ करने की कोशिश कर रही है।

पीठ ने कहा कि इससे यह सवाल पैदा होता है कि क्या ये 12 निजी प्रयोगशालाएं और 19 सरकारी प्रयोगशालाएं कोविड-19 संक्रमण की जांच करने के लिये पर्याप्त हैं।

अदालत ने कहा कि कोई भी प्रयोगशाला, जो बुनियादी ढांचे से जुड़े मानदंडों को पूरा करती हो और राष्ट्रीय प्रयोगशाला मान्यता बोर्ड (एनएबीएल) से पंजीकृत हो सकती हो, उसे ये जांच करने की इजाजत दी जानी चाहिए।

गौरतलब है कि इससे पहले राज्य सरकार ने अदालत से कहा था कि उसने सिर्फ सरकारी प्रयोगशालाओं में मुफ्त जांच कराने का फैसला किया है क्योंकि कई दृष्टांतों में निजी प्रयोगशालाएं अनावश्यक जांच कर रही हैं, जिससे रोगियों को गैर जरूरी खर्च करना पड़ रहा है।

अदालत ने कहा, ‘‘जब कभी सरकारी प्रयोगशालाओं में और अधिक जांच की गुंजाइश नहीं बचे, तब निजी प्रयोगशालाओं को जांच करने दिया जाए।’’

अदालत ने कहा, ‘‘भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) का दिशानिर्देश (एक खास समूह के रोगियों को अस्पताल से छुट्टी देने से पहले उनकी जांच नहीं करने के) उसके पूर्व के दिशानिर्देशों से बिल्कुल उलट है। ऐसा कोई वैज्ञानिक आंकड़ा या शोध या तर्क नहीं है जो दिशानिर्देशों में अचानक बदलाव का वर्णन करता हो। ’’

अदालत ने कोविड-19 महामारी से निपटने में राज्य द्वारा उठाये गये कदमों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, ‘‘आईसीएमआर की बुद्धिमत्ता पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता, इस तरह की परिस्थिति में एहतियात का पालन करने की जरूरत होती है--अस्पताल से छुट्टी से पहले जांच अनिवार्य रूप से हो।’’

अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे रोगी को यदि अस्पताल से छुट्टी दी जाती है तो उसके आवास पर एक बोर्ड लगाना चाहिए, जिसपर उसके पृथक रहने का जिक्र हो और उसकी कलाई पर पृथक रहने की आखिरी तारीख अमिट स्याही से अंकित हो।

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