नयी दिल्ली, चार अगस्त उच्चतम न्यायालय ने बिहार के अररिया जिले में कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार का शिकार हुई युवती का मजिस्ट्रेट की अदालत में बयान दर्ज कराने आये दो सामाजिक कार्यकर्ताओं को हिरासत में भेजने के आदेश को सरासर अनुचित हुये दोनों को तुरंत रिहा करने का मंगलवार को आदेश दिया। ये दोनों कार्यकर्ता इस समय जेल में बंद हैं।
न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि इन दोनों कार्यकर्ताओं को हिरासत में भेजने का आदेश सरासर अनुचित था ।
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पीठ ने दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं को दस दस हजार रुपए के निजी मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। पीठ ने अररिया की जेल में बंद दोनों सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने का भी निर्देश दिया।
पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेन्स के माध्यम से सुनवाई करते हुये उनकी याचिकाओं पर बिहार सरकार और अन्य को नोटिस जारी किये।
याचिकाकर्ता-कल्याण बडोला और तन्वी नायर-को मजिस्ट्रेट ने अदालत की अवमानना कानून और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के तहत न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाये। अगले आदेश तक, हम याचिकाकर्ताओं (बडोला और नायर) को दस-दस हजार रुपए के निजी मुचलके पर तत्काल रिहा करने का आदेश देते हैं।’’
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, 22 वर्षीय महिला के साथ छह जुलाई को सामूहिक बलात्कार किया गया था और इस घटना के बाद उसने हममें से एक को मदद के लिये बुलाया था। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, महिला निरक्षर है ओर उनके घरों में खाना पकाने का काम करती थी।
याचिका में कहा गया है कि 10 जुलाई को मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने के लिये इस महिला को बुलाया गया था और उसने याचिकाकर्ताओं से उसके साथ अदालत चलने का अनुरोध किया था। याचिकाकर्ता अररिया में एक गैर सरकारी संगठन के साथ जुड़े हैं।
याचिका के अनुसार इस महिला को जब बयान पढ़कर सुनाया जा रहा था तो उसने कुछ शंका व्यक्त की और अनुरोध किया कि इन दोनों को इसे पढ़कर सुनाने की अनुमति दी जाये।
याचिका में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट ने इसे अदालत की आलोचना समझ लिया और कोई भी स्पष्टीकरण सुनने से इंकार करते हुये तीनों को पुलिस हिरासत में भेज दिया जबकि उन्होंने किसी भी मौके पर अदालत के प्रति अनादर व्यक्त नहीं किया था।
याचिका के अनुसार इस महिला को 17 जुलाई को जमानत दे दी गयी लेकिन अदालत ने उन दोनों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
याचिका में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी की वजह से बिहार में अदालतों में काम नहीं हो पा रहा है और 17 जुलाई के आदेश के खिलाफ सत्र अदालत में उनकी याचिकायें लंबित हैं।
अनूप
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