नयी दिल्ली, 22 फरवरी उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को राज्य के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के खिलाफ कदाचार एवं भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच ‘‘रोकने’’ का मंगलवार को निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एसके कॉल और न्यायमूर्ति एमएम सुंद्रेश की एक खंडपीठ ने कहा कि मामले के घालमेल की स्थिति से ‘‘ पुलिस व्यवस्था में लोगों का विश्वास अनावश्यक रूप से डगमगा सकता है।’’
महाराष्ट्र के वकील ने शीर्ष अदालत से जांच ‘‘रोकने’’ के निर्देश को रिकॉर्ड में दर्ज नहीं करने का अनुरोध किया, तो पीठ ने मामले में उनका आश्वासन मांगा।
पीठ ने कहा, ‘‘ हमने अब मामले को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है, जांच पूरी होने से समस्या हो सकती है। वरिष्ठ अधिवक्ता श्री दारियस खंबाटा ने जांच फिलहाल रोकने का आश्वासन दिया है। हम उनका आश्वासन रिकॉर्ड में दर्ज करते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने पक्षकारों से मामले के संबंध में लिखित सार दाखिल करने को कहा और मामले की आगे की सुनवाई के लिए नौ मार्च की तारीख तय की।
अदालत ने मामले में घालमेल की स्थिति को लेकर चिंता व्यक्त की और कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण परिदृश्य है।
पीठ ने कहा, ‘‘ इससे अनावश्यक रूप से पुलिस व्यवस्था में लोगों का विश्वास डगमगा सकता है। कानून की प्रक्रिया को एक तरीके से चलाया जाना चाहिए।’’
केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक प्रतिवेदन दाखिल किया, जिसमें कहा गया कि सभी मामलों की जांच केन्द्रीय जांच एजेंसी से कराना सभी के हित में है।
मेहता ने कहा, ‘‘ एक बार जांच शुरू होने के बाद...उसे बीच में रोकना उचित नहीं है। राज्य को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे प्रक्रिया जटिल हो जाए।’’
शीर्ष अदालत ने पहले मुंबई पुलिस को सिंह के खिलाफ जांच करने की अनुमति दी थी, लेकिन कदाचार एवं भ्रष्टाचार के आरोपों में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी पर आरोपपत्र दाखिल करने से रोक दिया था।
महाराष्ट्र पुलिस ने पूर्व में शीर्ष अदालत से कहा था कि सिंह को कानून के तहत 'व्हिसलब्लोअर' नहीं माना जा सकता, क्योंकि उन्होंने अपने स्थानांतरण के बाद ही पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख से जुड़े कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने का फैसला किया।
शीर्ष अदालत ने 22 नवंबर, 2021 को सिंह को एक बड़ी राहत देते हुए महाराष्ट्र पुलिस को उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों में उन्हें गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया था और आश्चर्य जताया था कि यदि पुलिस अधिकारियों और जबरन वसूली करने वालों के खिलाफ मामला दर्ज कराने को लेकर उन्हें निशाना बनाया जा रहा है, तो ‘‘आम आदमी के साथ क्या हो सकता है।’’
पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने और राज्य की किसी दंडात्मक कार्रवाई के खिलाफ दायर सिंह की याचिका को खारिज करने का आग्रह करते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने शीर्ष अदालत में एक जवाबी हलफनामा दाखिल कर कहा था कि पूर्व शीर्ष पुलिस अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामलों में चल रही जांच में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
मुंबई और ठाणे में कथित जबरन वसूली के कम से कम पांच मामलों में आरोपी बताए जाने के बाद सिंह को दिसंबर, 2021 में निलंबित कर दिया गया था।
इससे पहले, बंबई उच्च न्यायालय ने सिंह की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने उनके खिलाफ शुरू की गई महाराष्ट्र सरकार की जांच रद्द किए जाने का आग्रह किया था। अदालत ने कहा था कि वह केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण से संपर्क कर सकते हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह सेवा से जुड़ा मामला है। अदालत ने उनके इस दावे को खारिज कर दिया कि सरकार की कार्रवाई देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के उनके आरोपों का परिणाम है।
मार्च 2021 में 'एंटीलिया बम मामले' के बाद सिंह को मुंबई के पुलिस आयुक्त पद से हटा दिए जाने के पश्चात, उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे एक पत्र में देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। सिंह ने अपनी याचिका में यह भी आरोप लगाया था कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) पांडे ने उन्हें बताया कि पूछताछ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) नेता देशमुख के खिलाफ उनके आरोपों का नतीजा है।
उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर 'एंटीलिया' के पास विस्फोटकों से भरी एक एसयूवी मिलने और बाद में व्यवसायी मनसुख हिरन की संदिग्ध मौत के मामले में मुंबई पुलिस के अधिकारी सचिन वाजे को गिरफ्तार किए जाने के बाद सिंह को होमगार्ड में स्थानांतरित कर दिया गया था।
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)