Sudarshan TV 'Bindas Bol' Programme: सुप्रीम कोर्ट ने सुदर्शन टीवी के 'बिंदास बोल' कार्यक्रम पर प्रसारण से पहले रोक लगाने सेस किया इनकार

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सुदर्शन टीवी के 'बिंदास बोल' कार्यक्रम पर प्रसारण-पूर्व प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया। इस कार्यक्रम के नए प्रोमो में दावा किया गया है कि चैनल 'सरकारी सेवा में मुसलमानों को अधिक संख्या में शामिल करने की साजिश का बड़ा खुलासा' करेगा।

सुप्रीम कोर्ट (File Photo)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सुदर्शन टीवी (Sudarshan TV) के 'बिंदास बोल' कार्यक्रम (Bindas Bol Programme) पर प्रसारण-पूर्व प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया.  इस कार्यक्रम के नए प्रोमो में दावा किया गया है कि चैनल 'सरकारी सेवा में मुसलमानों को अधिक संख्या में शामिल करने की साजिश का बड़ा खुलासा' करेगा, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की एक पीठ ने कहा कि विचारों के प्रसारण या प्रकाशन पर पूर्व प्रतिबंध लगाने से पहले चौकस होना होगा.

पीठ ने कहा कि इस स्तर पर हमने 49 सेकंड के असत्यापित प्रतिलेखन के आधार पर प्रसारण-पूर्व निषेध लागू करने से परहेज किया है। न्यायालय को प्रकाशन या विचारों के प्रसारण पर पूर्व प्रतिबंध लगाने में चौकस होना चाहिए. पीठ ने कहा कि हम गौर करते हैं कि वैधानिक प्रावधानों के तहत सक्षम प्राधिकारियों को कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए शक्तियां दी गयी हैं.इनमें सामाजिक सौहार्द और सभी समुदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए आपराधिक कानून के प्रावधान शामिल हैं. यह भी पढ़े | NEET-JEE Exams 2020 Row: सीएम ममता बनर्जी ने कहा- पीएम मोदी को ‘मन की बात’ में छात्रों से नीट और जेईई की परीक्षा के बारे में सुझाव लेना चाहिए.

न्यायालय ने केंद्र, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन और सुदर्शन न्यूज़ को फ़िरोज़ इक़बाल खान नामक एक वकील द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। यह याचिका आज रात आठ बजे प्रसारित होने वाले कार्यक्रम से संबंधित है. पीठ ने विभिन्न पक्षों को 15 सितंबर तक नोटिस का जवाब देने को कहा हैं.

पीठ ने कहा कि सूचीबद्धता की अगली तारीख पर अदालत संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित एक संकल्‍प की दिशा में मदद के लिए न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) नियुक्त करने पर विचार करेगी.न्यायालय ने कहा कि प्रथम दृष्टया, याचिका संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण के संबंध में महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाती है. पीठ ने कहा, "स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के अनुरूप, न्यायालय को स्व-विनियमन के मानकों की स्थापना पर बहस को बढ़ावा देने की आवश्यकता होगी."

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