नयी दिल्ली, 15 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि जनहित में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) और अपीलीय न्यायाधिकरण एनसीएलएटी तक पहुंचने के दरवाजे पूरी तरह से खुले होने चाहिए ताकि प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के सार्वजनिक हित के ऊंचे उद्देश्य को हासिल किया जा सके।
शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर अपने फैसले में यह टिप्पणी की। न्यायाधिकरण के आदेश मे कहा गया था कि सूचना देने वाले का प्रतिस्पर्धा आयोग के पास जाने का कोई औचित्य नहीं है।
सूचना देने वाले ने ऑनलाइन कैब सेवा प्रदाता उबर और ओला पर गैर-प्रतिस्पर्धी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया था।
न्यायाधीश आर एफ नरीमन, न्यायाधीश के एम जोसेफ और न्यायाधीश कृष्ण मुरारी की पीठ ने सीसीआई और अपीलीय न्यायाधिकरकण के एक जैसी राय पर गौर किया। आदेश में याचिका को खारिज कर दिया गया था। इसमें पाया गया था कि उबर तथा ओला साठगांठ को बढ़ावा नहीं देते या फिर चालकों के बीच किसी तरह की गैर-प्रतिस्पर्धी गतिविधियां जैसी बात नहीं है। पीठ ने कहा कि इन निष्कर्षो में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।
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हालांकि पीठ ने सूचना प्रदाता के प्रतिस्पर्धा आयोग में जाने के औचित्य से जुड़े आदेश को खारिज कर दिया।
पीठ ने कहा, ‘‘....सीसीआई और अपीलीय न्यायाधिकरण यानी एनसीएलएटी के पास जाने के दरवाजे, को सार्वजनिक हित में व्यापक रूप से खुला रखा जाना चाहिए, ताकि अधिनियम के उच्च सार्वजनिक उद्देश्य का संरक्षण किया जा सके।’’
शीर्ष अदालत के समक्ष उबर और ओला का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों ने कहा कि सीसीआई और अपीलीय न्यायाधिकरणों के एक जैसे निष्कर्षों को गुण के आधार पर बरकरार रखा जाना चाहिए क्योंकि साठगांठ के रूप में गैर-प्रतिस्पर्धी गतिविधियों का कोई सवाल ही नहीं है।
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