2024 धरती पर अब तक का सबसे गर्म साल साबित हो सकता है और इसी साल कोयले की खपत सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ने की तैयारी कर रही है.इस साल दुनिया के सबसे गर्म साल बनने की संभावना के बीच, कोयले की खपत रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की नई रिपोर्ट "कोयला 2024" में बताया गया है कि इस साल दुनिया भर में कोयले की मांग 8.77 अरब टन तक पहुंचने की संभावना है. यह लगातार तीसरा साल होगा जब कोयले की खपत ने रिकॉर्ड बनाया है, जबकि इसे कम करने की जोरदार अपील की जा रही है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से होने वाले खतरनाक प्रभावों को रोकने के लिए इन्हें तेजी से घटाना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो धरती और मानवता पर इसके गंभीर परिणाम होंगे.
चीन में कोयले की खपत सबसे ज्यादा
दुनिया में सबसे ज्यादा कोयला चीन में जलाया जाता है. यहां की बिजली की बढ़ती मांग इसका बड़ा कारण है. 2024 में चीन की कोयले की खपत 4.9 अरब टन तक पहुंचने की संभावना है. यह भी एक नया रिकॉर्ड होगा. हालांकि चीन सौर और पवन ऊर्जा में बड़े निवेश कर रहा है, लेकिन उसकी ऊर्जा जरूरतों में कोयला अभी भी प्रमुख भूमिका निभा रहा है.
आईईए के ऊर्जा बाजार निदेशक केइसुके सदामोरी ने कहा, "मौसम से जुड़े कारक, खासकर चीन में, कोयले की मांग पर बड़ा असर डालेंगे. बिजली की मांग कितनी तेजी से बढ़ती है, यह भी बहुत अहम होगा."
भारत और इंडोनेशिया भी कोयले की खपत बढ़ाने में योगदान दे रहे हैं. 2024 में भारत की कोयले की मांग 5 फीसदी बढ़कर 1.3 अरब टन हो सकती है. वहीं, इंडोनेशिया ने कोयले का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ा दिया है. चीन और भारत के साथ मिलकर इस साल वैश्विक उत्पादन 9 अरब टन से अधिक हो जाएगा.
विकसित देशों में कोयले की खपत घटी
इसके उलट, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित क्षेत्रों में कोयले की खपत कम हो रही है. हालांकि, गिरावट की रफ्तार धीमी हो गई है. 2024 में अमेरिका और यूरोप में कोयले की मांग क्रमशः 5 फीसदी और 12 फीसदी कम होने की उम्मीद है. पिछले साल यह गिरावट 17 फीसदी और 23 फीसदी थी. 2023 में जर्मनी में कार्बन उत्सर्जन 70 सालों में सबसे कम रहा था.
इस धीमी गिरावट के पीछे राजनीतिक अस्थिरता को बड़ा कारण माना जा रहा है. अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने से जलवायु नीतियों पर असर पड़ सकता है. ट्रंप पहले भी जलवायु परिवर्तन को "धोखा" बता चुके हैं, जिससे वैश्विक प्रयासों पर खतरा मंडरा रहा है.2023 में भी ऊर्जा क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन ने रिकॉर्ड बनाया था.
आईईए ने बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के कारण डेटा सेंटरों की बिजली की खपत बढ़ रही है. इनमें ज्यादातर बिजली कोयले से चलने वाले संयंत्रों से आती है, खासकर चीन जैसे देशों में. यह चलन कोयले की खपत कम करने के प्रयासों को और मुश्किल बना सकता है.
कोयले की मांग में गिरावट कब आएगी?
हालांकि 2024 के लिए स्थिति गंभीर है, लेकिन आईईए का अनुमान है कि 2027 तक वैश्विक कोयला खपत अपने चरम पर पहुंच जाएगी. यह भविष्यवाणी इस बात पर निर्भर करती है कि नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार और बिजली की मांग स्थिर हो सके.
सदामोरी ने कहा, "स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों का तेजी से उपयोग बिजली क्षेत्र को बदल रहा है. लेकिन 2027 तक कोयला खपत को चरम पर लाने के लिए लगातार प्रयास जरूरी हैं."
कोयले की बढ़ती खपत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु की सुरक्षा के लिए किए जा रहे वादों के उलट है. पिछले साल दुबई में हुए कॉप28 सम्मेलन में देशों ने जीवाश्म ईंधन से दूर जाने का वादा किया था. लेकिन इस साल अजरबैजान में हुए कॉप29 सम्मेलन में खास प्रगति नहीं हुई.
जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि इन वादों को नहीं निभाने से जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयास खतरे में पड़ सकते हैं. यूरोपीय संघ के जलवायु मॉनिटर ने इस महीने की शुरुआत में कहा कि 2024 लगभग निश्चित रूप से अब तक का सबसे गर्म साल होगा.
वीके/एए (डीपीए, एएफपी)