COP 28 में क्लाइमेट फाइनेंस पर बन रही है बात
दुबई में 28वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कई देश क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर वादे कर रहे हैं.
दुबई में 28वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में कई देश क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर वादे कर रहे हैं. मेजबान देश संयुक्त अरब अमीरात ने 270 अरब डॉलर ग्रीन फाइनेंस का वादा किया है.दुबई में चल रहे 28 वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP 28) में क्लाइमेट फाइनेंस की खूब बात हो रही है. ऐसे फंड का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को कम करने वाली परियोजनाओं में किया जाता है. सम्मेलन में कई देश इस फंड का वादा कर रहे हैं.
बैठक के पांचवें दिन 4 दिसंबर को मेजबान देश संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने 270 अरब डॉलर फंड का वादा किया. इसे यूएई वर्ष 2030 तक अपने बैंकों के जरिए उपलब्ध कराएगी. इस फंड के साथ आपदा के समय लोन की किस्त देने में मोहलत का भी वादा शामिल है.
द यूरोपियन बैंक फॉर रिकंस्ट्रक्शन एंड डेवलपमेंट (पुनर्निर्माण और विकास के लिए यूरोपीय बैंक) ने कहा कि वह कुछ गरीब देशों के साथ नए ऋण सौदों में जलवायु लचीला लोन का हिस्सा शामिल करेगा. इसके अलावा, डेनिश निवेश फर्म कोपेनहेगन इंफ्रास्ट्रक्चर पार्टनर्स ने उभरते बाजारों में नवीकरणीय परियोजनाओं के लिए 3 अरब डॉलर जुटाने की योजना की घोषणा की.
सम्मेलन में तेल उत्पादक खाड़ी राज्यों ने 3 हजार करोड़ डॉलर के क्लाइमेट फाइनेंस का वादा किया है. फ्रांस और जापान ने कहा कि वे जलवायु और विकास के लिए अफ्रीकी विकास बैंक के कदम का समर्थन करेंगे. इसके लिए ये देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के विशेष अधिकारों का उपयोग करेंगे.
अबू धाबी अमीरात ने क्षेत्र में वित्तपोषण विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए एक जलवायु अनुसंधान और सलाहकार केंद्र शुरू करने के लिए ब्लैकरॉक और एचएसबीसी सहित निजी क्षेत्र के भागीदारों के साथ मिलकर काम किया.
COP28 के अध्यक्ष अहमद अल-जबर ने कहा, "जलवायु संकट का पैमाना हर उद्योग से तत्काल समाधान की मांग करता है. वित्त हमारी महत्वाकांक्षाओं को उपायों में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है."
क्लाइमेट फाइनेंस पर भारत का रुख
क्लाइमेट फाइनेंस को लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने COP 28 के दूसरे दिन दुबई में बोलते हुए कहा कि जी-20 में इसे लेकर सहमति बनी है कि क्लाइमेट एक्शन के लिए 2030 तक कई ट्रिलियन डॉलर क्लाइमेट फाइनेंस की जरूरत है. उन्होंने कहा कि ऐसा क्लाइमेट फाइनेंस जो सहजता से उपलब्ध हो और एफोर्डेबल हो यानी सबके सामर्थ्य में हो.
प्रधानमंत्री मोदी ने आशा जताते हुए कहा, "हम उम्मीद करते हैं कॉप समिट से क्लाइमेट फाइनेंस से जुड़े अन्य विषयों पर भी ठोस परिणाम निकलेंगे,”
क्लाइमेट फाइनेंस एक ऐसा फंड होता है जो जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए चल रहे प्रयासों को लोन के माध्यम से वित्तीय सहायता करता है. ऐसे फंड को ग्रीन फाइनेंस भी कहते हैं. इस समय दुनिया में ऊर्जा परिवर्तन, जलवायु अनुकूलन और आपदा राहत के लिए पैसों की बेहद जरूरत है.
सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि उभरते बाजारों और विकासशील देशों के उत्सर्जन पर अंकुश लगाने और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए प्रति वर्ष 2,400 अरब डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी.
इस रिपोर्ट के सह लेखक और जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था ग्रांथम रिसर्च के अध्यक्ष निकोलस स्टर्न ने कहा, "दुनिया पेरिस समझौते के लक्ष्यों को साकार करने की राह पर नहीं है. इस विफलता का कारण निवेश की कमी है, खासकर चीन के बाहर उभरते बाजार और विकासशील देशों में.”
टैक्स से पैसा जुटाने का सुझाव
कमजोर देश जो पहले से ही जलवायु आपदाओं से प्रभावित हैं, नवगठित आपदा कोष के माध्यम से अरबों डॉलर और मांग रहे हैं. फिलहाल जो वादे किए गए हैं उससे यह फंड केवल 70 करोड़ डॉलर के आसपास है.
बारबाडोस की प्रधानमंत्री मिया मोटले ने कहा, "जब तक हमारे पास आपदा के समय तत्काल निर्णय लेने अधिकार नहीं है, हम वही भुगतेंगे जो हर माता-पिता को झेलना पड़ता है - रोमांचक उम्मीदें और उन्हें पूरा करने में असमर्थ होना."
उन्होंने कहा कि वादों के इतर देशों को दान और निजी निवेशों के जरिए आगे आना चाहिए. जलवायु वित्त पोषण को बढ़ावा देने के लिए टैक्स लगाने जैसे तरीकों पर विचार करना चाहिए.
उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि वित्तीय सेवाओं पर वैश्विक 0.1% कर लगाने से से 42 करोड़ डॉलर जुटाए जा सकते हैं, जबकि 2022 में वैश्विक तेल और गैस मुनाफे पर 5% कर से लगभग 20 हजार करोड़ डॉलर प्राप्त होंगे.
COP 28 के दौरान जर्मनी सहित विश्व के आठ देश बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, नॉर्वे, स्पेन, स्वीडन और यूनाइटेड किंग्डम ने अल्प विकसित देशों के कोष (एलडीसीएफ) और विशेष जलवायु परिवर्तन कोष (एससीसीएफ) के तहत नई घोषणा की. एलडीसीएफ और एससीसीएफ के लिए कुल 17.42 करोड़ डॉलर की नई प्रतिज्ञाओं की घोषणा की.
इस फंड को ग्लोबल एनवायरनमेंट फेसिलिटी के तहत उपलब्ध किया जाएगा. दुबई में COP28 में की गई प्रतिबद्धताएं पिछले साल शर्म अल-शेख में COP 27 के दौरान एलडीसीएफ और एससीसीएफ के वादे से काफी अधिक हैं.
कार्बन क्रेडिट पर पहल
क्लाइमेट फाइनेंस के अलावा कार्बन क्रेडिट पर भी COP 28 में कई पहल सामने आए. कोयला, तेल और गैस से होने वाले उत्सर्जन को कम करने को लेकर देशों में सहमति नहीं बन पा रही है. हालांकि, जीवाश्म ईंधन से छुटकारा दिलाने के एक नए प्रयास में अब कार्बन क्रेडिट की मदद ली जा रही है.
COP 28 सम्मेलन के दौरान फिलीपींस की ऊर्जा कंपनी एक्सईएन और सिंगापुर के मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा समर्थित कोल टू क्लीन क्रेडिट इनिशिएटिव (सीसीसीआई) ने कहा कि इसका उद्देश्य साउथ लूजॉन थर्मल को बंद करने के लिए कार्बन क्रेडिट का उपयोग करना है. ऊर्जा निगम (एसएलटीईसी) संयंत्र को एक दशक पहले ही रिटायर का बंद किया जाएगा.
फाउंडेशन के अध्यक्ष राजीव शाह ने कहा, "कोयला संयंत्रों को रिटायर करने, उत्सर्जन से बचने और नौकरियां पैदा करने के लिए, हमें संपत्ति मालिकों और समुदायों के लिए सही प्रोत्साहन बनाने और अतिरिक्त वित्त जुटाने की जरूरत है."
कैसे काम करता है कार्बन क्रेडिट
कार्बन उत्सर्जन में कटौती की वजह से जो क्रेडिट प्राप्त होता है उसे खुले कार्बन बाजार में बेचा जा सकता है. इन पैसों के उपयोग से कोयला खदान पर आश्रित लोगों को रोजगार दिया जा सकता है. इन तरीकों को एनर्जी ट्रांजिशन मैकेनिज्म या एक्सीलेटर या ऊर्जा बदलाव की प्रक्रिया में तेजी लाना कहते हैं.
इस योजना से जुड़े विश्व बैंक में कार्बन फाइनेंस के पूर्व प्रमुख विक्रम विज ने कहा कि सीसीसीआई फिलीपींस में समय से पहले बंद होने से उत्पन्न कार्बन कटौती से क्रेडिट का उपयोग करके एनर्जी ट्रांजिशन मैकेनिज्म जैसी योजनाओं के साथ काम करेगा.
रॉकफेलर फाउंडेशन और अन्य समूहों द्वारा डिजाइन किए गए एनर्जी ट्रांजिशन एक्सीलेटर का लक्ष्य उच्च गुणवत्ता वाले कार्बन क्रेडिट से प्राप्त धन का उपयोग करके कोयले का इस्तेमाल कम करना है. अनुमान के मुताबिक इससे 2035 तक 200 अरब डॉलर से अधिक धन इकट्ठा हो सकता है.
एमएम/वीके (रॉयटर्स, एएफपी)