जलवायु परिवर्तन से पुरातत्विक खोजों का फायदा भी और नुकसान भी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

आइस ममी से लेकर शिशु मैमथ तक, जलवायु परिवर्तन की बदौलत एक से एक नायाब पुरातात्विक खोजें सामने आई हैं. लेकिन, इसी वजह से बहुत सारी बेशकीमती खोजों के हमेशा के लिए गुम हो जाने का खतरा भी पैदा हो गया है.किसी भी सकारात्मक चीज के साथ जलवायु परिवर्तन का जुड़ाव हो, यह मुश्किल है. लेकिन लगता है कि पुरातत्व विज्ञान एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने, पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी तुषार भूमि) के सिकुड़ने और नदियों और झीलों के सूखने से फायदा हो रहा लगता है. हाल के वर्षों में, बर्फ में जमी चीजों की पुरातात्विक खोजों का एक सिलसिला रहा है. पुरातात्विक महत्व की ये चीजें सदियों से बर्फ के नीचे दबा होने से उत्सुक निगाहों, बर्बादी या लूटपाट से बची रहीं.

वैसे बहुत सारी खोजें, बर्फ के पिघलने से सामने आई हैं. लेकिन पिछले दशकों में हवा और पानी के तापमान में बढ़ोत्तरी भी नाटकीय रूप से पुरातत्व के क्षेत्र पर अपना प्रभाव छोड़ रही है. ठंडी, गीली जलवायु में सदियों से महफूज रही चीजों पर अब जलवायु परिवर्तन के चलते गायब होने का खतरा मंडराने लगा है.

बर्फ के नीचे दबा खजाना

कभी न खत्म होने वाली और ना गलने वाली बर्फ बदकिस्मती से वैसी नहीं रही, लेकिन उसने बहुत सी सनसनीखेज और नायाब चीजें भावी पीढ़ी के लिए अपनी तह में सुरक्षित रखी थीं जैसे कि 1991 में मिला "हिम मानव ओत्जी.” वह इतनी बढ़िया हालत में संरक्षित था कि शोधकर्ता गहन अध्ययन कर यह जान पाने में सफल रहे कि इटली और ऑस्ट्रिया के बीच आल्प्स में करीब 5300 साल पहले, कैसे वह और दूसरे प्राणी रहा करते थे.

ऊंचाई वाले स्थानों पर खुदाई करने वाले पुरातत्वविदों को, अतीत की त्रासदियों के ठोस प्रमाण अक्सर ही मिल रहे हैं. हाल में, पेरु और पोलैंड के शोधकर्ताओं ने, जुआनिटा नाम की, इंका सभ्यता की एक ममी का पुनर्निमित चेहरा पेश किया, वो करीब 14 साल की एक लड़की थी जिसे 500 से भी ज्यादा साल पहले देवताओं के लिए कुर्बान कर दिया गया था. कोपाचोका नाम के एक रक्त-रंजित रिवायत के तहत इंका लोग कुदरती आफतों से दैवीय हिफाजत हासिल करने के लिए बलि देते थे.

दक्षिणी पेरु में 6000 मीटर (19,685 फुट) से भी ज्यादा की ऊंचाई वाले अमपाटो ज्वालामुखी पर "जुआनिटा" बर्फ में जमे हुए बंडल के रूप में मिली थी. बर्फ के पिघलने और जमीन के धंसाव से, उसकी देह और ऊंची जगह से ज्वालामुखी के मुंह में जा गिरी थी.

जमे हुए टाइम कैप्सूल

आल्प्स और स्कैनडिनेविया में लोगों को अक्सर ही रोमन या मध्यकाल के हथियार, परिधान और स्लेज मिल जा रहे हैं. इन पुरातात्विक सामग्रियों के इतनी अच्छी स्थिति में संरक्षित होने की वजह से शोधकर्ता हमारे पूर्वजों की जिंदगी के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं.

कई चीजें वहां निकल रही हैं जहां पर्माफ्रॉस्ट सबसे ज्यादा तेजी से सिकुड़ रहे हैं. अंटार्कटिक में, रडार की तस्वीरों से बर्फ के नीचे एक प्राचीन नदी के लैंडस्केप का पता चला है. अलास्का में, हजारों प्राचीन बस्तियां उजागर हुई हैं. साइबेरिया में शोधकर्ताओं ने 30 लाख साल से भी ज्यादा पुरानी ममियों के अवशेष खोज निकाले हैं. कनाडा में शिशु मैमथ का पूरी तरह संरक्षित ममी मिला है.

भाग रहा है समय

बेशक ये खुशकिस्मत खोजे हैं लेकिन घड़ी की सुई तेजी से खिसक रही है. उन जगहों पर जहां पर्माफ्रॉस्ट आज जैविक पदार्थ का उसकी असाधारण अवस्था में संरक्षण कर रहा है, वहां चंद सालों में सिर्फ कुछ रंगीन धारियां ही बची रह जाएंगी.

पिघलते ग्लेशियर, भारी बारिशें और समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी- ये तमाम स्थितियां पुरातत्व के लिए नई चुनौतियां पेश करती हैं. भूमध्य सागर क्षेत्र में, बहुत से प्राचीन बंदरगाह नगर खतरे में हैं.

सूखे ने दिखाया इतिहास

जलवायु परिवर्तन सिर्फ बर्फ के पिघलाव और बाढ़ के लिए जिम्मेदार नहीं. उसकी वजह से विनाशकारी सूखा भी पड़ता है. पुरातत्व के लिए जो चीज आंशिक रूप से अच्छी है, वह दरअसल ईको-सिस्टम और स्थानीय निवासियों के लिए हानिकारक है. मछलियां मर रही हैं, खेत बंजर हो रहे हैं और कई इलाकों में पानी की कमी हो गई है.

मिसाल के लिए, इराक में प्रचंड सूखा पड़ा तो एक जलाशय से 3400 साल पुराना नगर अचानक उभर आया. जर्मन और तुर्क पुरातत्वविद, कांस्य युग के इस नगर की संक्षिप्त जांच ही कर पाए, उसके बाद मित्तानी साम्राज्य का शक्तिकेंद्र रहा नगर दोबारा पानी में डूब गया.

पश्चिमी स्पेन में कैसेरस शहर में, सूखे की वजह से एक जलाशय में, स्पानी स्टोनहेंज नाम से मशहूर डोल्मन ऑफ ग्वाडलपेरल- यानी ग्वाडलपेराल का खजाना दिखाई पड़ा था. मेगालिथिक पत्थरों का ये स्मारक करीब 7000 साल पहले 150 से ज्यादा खड़े पत्थरों से बनाया गया था.

अमेरिका की सूख चुकी मिसीसिपी नदी और उसके आसपास टूटे-फूटे जहाज मिले हैं. यूरोप में, डेन्यूब नदी का जलस्तर इतना गिरा कि सर्बिया में दूसरे विश्व युद्ध में नष्ट हो चुके जर्मन जंगी जहाज दिखने लगे. इतनी बड़ी संख्या में मिल रहा ये जहाजी मलबा न सिर्फ शिपिंग के लिए खतरा है, उनमें अक्सर गोला बारूद भी रहता है, जिसकी जद में पर्यावरण के अलावा और भी बहुत कुछ आ सकता है.

समस्या है बेहद गंभीर

दोहरी प्रकृति की यह स्थिति ब्राजील में देखी जा सकती है. अमेजन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पड़े सूखे की वजह से मानोस शहर में कई ऐसी चट्टानें उभर आई जिन पर चेहरे की प्राचीन, और कुछ कुछ डरावनी नक्काशियां उकेरी हुई हैं.

प्रागैतिहासिक नक्काशियां चेहरे की विभिन्न भावमुद्राएं उजागर करती है, मुस्कुराहट से लेकर डरावनी निगाह तक, ये मुद्राएं, कमोबेश आज के इमोजी जैसे हैं. पूर्व-कोलम्बियन काल में यहां के मूलनिवासियों ने करीब 2000 साल पहले ये आकृतियां गढ़ी होंगी.

ब्राजीली इतिहासकार और देश के राष्ट्रीय ऐतिहासिक और कलात्मक विरासतसंस्थान में सदस्य बिएट्रीज कारनेरो कहते हैं कि ये नक्काशियां इन लोगों को समझने के लिहाज से बेशकीमती हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "बदकिस्मती से सूखे की वजह से वे दोबारा दिखाई पड़ी हैं."

ये भयानक सूखा, अमेजन क्षेत्र की कई नदियों के लिए विकराल समस्याएं खड़ी कर रहा है. नक्काशिया जहां मिली थी, उस रियो नेग्रो नदी का जलस्तर गर्मियों में बहुत ज्यादा गिर जाता है. पिछले सप्ताह, 121 साल में पहली बार नदी में सबसे कम बहाव दर्ज किया गया. वहां के पुरातत्वविदों के मुताबिक, ये संरक्षण का खतरा है, वैसे सबसे अधिक चिंता की बात तो ये है कि सूखे से स्थानीय लोगों की रोजीरोटी छिन रही है.