Cheetah: कार से तेज दौड़ने में सक्षम लेकिन शिकार के लिए संघर्ष करता
क्या आपको पता है कि चीता महज तीन सेकंड में 100 मीटर की दौड़ लगा सकता है जो अधिकतर कारों से कहीं तेज है लेकिन वह आधा मिनट से ज्यादा अपनी यह रफ्तार कायम नहीं रख सकता. यह रफ्तार कितनी ज्यादा है इसे इस बात से समझ सकते हैं कि दुनिया के सबसे तेज धावक और ओलंपिक चैम्पियन उसेन बोल्ट का 100 मीटर की स्पर्धा में विश्व रिकॉर्ड 9.89 सेकंड है.
नयी दिल्ली, 17 सितंबर : क्या आपको पता है कि चीता महज तीन सेकंड में 100 मीटर की दौड़ लगा सकता है जो अधिकतर कारों से कहीं तेज है लेकिन वह आधा मिनट से ज्यादा अपनी यह रफ्तार कायम नहीं रख सकता. यह रफ्तार कितनी ज्यादा है इसे इस बात से समझ सकते हैं कि दुनिया के सबसे तेज धावक और ओलंपिक चैम्पियन उसेन बोल्ट का 100 मीटर की स्पर्धा में विश्व रिकॉर्ड 9.89 सेकंड है. गौरतलब है कि भारत में सात दशक बाद चीतों ने फिर से दस्तक दी है और विशेष विमान से नामीबिया से लाए गए आठ चीते अब मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान की शोभा बढ़ाएंगे. दिल्ली के वन्यजीव पत्रकार और लेखक कबीर संजय का कहना है कि चीते को उसकी शानदार गति के लिए जाना जाता है लेकिन उसमें इस गति को ज्यादा देर तक बरकरार रखने की ताकत नहीं होती है.
उन्होंने कहा, ‘‘चीता तेज धावक है, न कि मैराथन दौड़ने वाला. चूंकि वह लंबे समय तक अपनी गति बरकरार नहीं रख सकता तो उसे 30 सेकंड या उससे कम समय में शिकार को पकड़ना होता है. अगर वह तेजी से शिकार नहीं कर पाता है तो वह हार मान लेता है और इस तरह उसके शिकार की सफलता दर 40 से 50 फीसदी है.’’ कबीर ने कहा कि अगर चीता शिकार कर भी लेता है तो वह आम तौर पर थक जाता है और उसे कुछ समय तक आराम करना होता है. यही वजह है कि तेंदुए, लकड़बग्घे और जंगली कुत्ते जैसे मांसाहारी जीव अक्सर उसके शिकार को लूट लेते हैं. उन्होंने अपनी किताब ‘चीता : भारतीय जंगलों का गुम शहजादा’ में कहा है कि यहां तक कि गिद्ध भी उनके शिकार को छीन सकते हैं और चीते के पास ऐसी श्रेणी के अन्य जानवरों की तुलना में कम ताकत होती है. वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि चीते दुबले, लचीले शरीर वाले होते हैं और उनकी रीढ़ की हड्डी नरम होती है जो किसी गुच्छे या कुंडली की तरह फैल सकती है. उन्होंने कहा कि उसका सिर छोटा होता है जो हवा के प्रतिरोध को कम करता है और लंबी, पतली टांगें होती है जो उन्हें बड़े-बड़े कदम बढ़ाने में मदद करती हैं. यह भी पढ़ें : Delhi: रहस्यमय हालात में प्रॉपर्टी डीलर की मौत, पोस्टमार्टम के लिए भेजा शव
नामीबिया स्थित गैर लाभकारी ‘चीता कंजर्वेशन फंड’ (सीसीएफ) ने कहा कि चीते के पैर के तलवे सख्त और अन्य मांसाहारी जंतुओं की तुलना में कम गोल होते हैं. इसने कहा कि उनके पैर के तलवे किसी टायर की तरह काम करते हैं जो उन्हें तेज, तीखे मोड़ों पर घर्षण प्रदान करते हैं. यह संगठन देश में चीतों को फिर से लाने के लिए भारत सरकार के साथ समन्वय कर रहा है. सीसीएफ के अनुसार, चीते की लंबी मांसपेशीय पूंछ एक पतवार की तरह स्थिर करने का काम करती है और उनके शरीर के वजन को संतुलित रखती है. शिकार की गतिविधि के अनुसार अपनी पूंछ घुमाते हुए उन्हें तेज गति से उनका पीछा करने के दौरान अचानक तीखे मोड़ लेने में मदद मिलती है. इसने कहा कि इस प्रजाति के शरीर पर आंख से लेकर मुंह तक विशिष्ट काली धारियां होती हैं और ये धारियां उन्हें सूर्य की चकाचौंध से बचाती है. संगठन का कहना है कि ऐसा माना जाता है कि चीता राइफल के स्कोप की तरह काम करता है, जिससे उन्हें लंबी दूरी पर भी अपने शिकार पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है.
दिल्ली चिड़ियाघर के रेंज अधिकारी सौरभ वशिष्ठ ने कहा कि चीते दिन के दौरान सक्रिय रहते हैं और वे सुबह तथा दोपहर में देर तक शिकार करते हैं. उन्होंने कहा कि चीता अकसर जंगली प्रजातियों का शिकार करता है और घरेलू जानवरों का शिकार करने से बचता है, हालांकि बीमार या घायल और बूढ़ा या युवा या गैर अनुभवी चीता घरेलू मवेशियों को भी शिकार बना सकता है. उन्होंने कहा कि अकेला वयस्क चीता हर दो से पांच दिन में शिकार करता है और उसे हर तीन से चार दिन में पानी पीने की जरूरत होती है. वशिष्ठ ने बताया कि मादा चीता एकांत जीवन व्यतीत करती हैं और वे केवल संभोग के लिए जोड़ी बनाती हैं तथा फिर अपने शावकों को पालते हुए उनके साथ रहती हैं. उन्होंने कहा कि नर चीता आम तौर पर अकेला होता है लेकिन उसके भाई अकसर साथ रहते हैं और साथ मिलकर शिकार करते हैं.
चीता अपना ज्यादातर वक्त सोते हुए बिताता है और दिन में अत्यधिक गर्मी के दौरान बहुत कम सक्रिय रहता है. शेर, बाघ, तेंदुए और जगुआर के मुकाबले चीते दहाड़ते नहीं हैं. मादा चीते की गर्भावस्था महज 93 दिन की होती है और वह छह शावकों को जन्म दे सकती हैं. वशिष्ठ ने कहा कि जंगल में चीते का औसत जीवन काल 10-12 वर्ष का होता है और पिंजरे में वे 17 से 20 साल तक रह सकते हैं. शावकों की मृत्यु दर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य जैसे संरक्षित क्षेत्रों में अधिक है जहां गैर संरक्षित क्षेत्रों के मुकाबले बड़े शिकारियों की निकटता अधिक होती है.