देश की खबरें | चंद्रशेखर राव नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार करेंगे

हैदराबाद, छह अगस्त तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि राज्यों के प्रति केंद्र के ‘भेदभावपूर्ण’ रुख के खिलाफ वह सात अगस्त को होने वाली नीति आयोग की शासी परिषद की सातवीं बैठक का बहिष्कार करेंगे।

मोदी को लिखे अपने पत्र में राव ने कहा कि भारत एक मजबूत राष्ट्र के रूप में तभी विकसित हो सकता है, जब राज्य विकसित हों। उन्होंने कहा कि मजबूत और आर्थिक रूप से जीवंत राज्य ही भारत को एक मजबूत देश बना सकते हैं।

राव ने पत्र में बैठक का बहिष्कार करने के कई कारण बताते हुए कहा, ‘‘इन तथ्यों को देखते हुए, मुझे सात अगस्त, 2022 को होने वाली नीति आयोग की शासी परिषद की सातवीं बैठक में भाग लेना उपयोगी नहीं लगता। मैं भारत को एक मजबूत और विकसित देश बनाने के हमारे सामूहिक प्रयास में राज्यों के साथ भेदभाव करने और उन्हें समान भागीदार के रूप में नहीं मानने के केंद्र सरकार के वर्तमान रुख के खिलाफ इस बैठक से दूर रहूंगा।’’

राव ने आरोप लगाया कि हाल की कुछ ‘‘अप्रिय घटनाओं’’ ने इस अहसास को जन्म दिया है कि केंद्र द्वारा ‘‘जानबूझकर की गई कुछ कार्रवाइयों’’ से संघीय ढांचे को व्यवस्थित रूप से नष्ट किया जा रहा है। उन्होंने पत्र में कहा कि ये ‘‘निराशाजनक’’ घटनाक्रम तेलंगाना जैसे राज्यों के लिए बहुत हतोत्साहित करने वाले हैं।

राव ने पत्र में प्रधानमंत्री मोदी को याद दिलाया कि शुरुआत में नीति आयोग ने विकास के मुद्दों पर सिफारिशें देने के लिए मुख्यमंत्रियों के एक समूह का गठन किया था, लेकिन इसे दरकिनार कर दिया गया और इसके विपरीत केंद्र राज्य-की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए योजनाओं का सूक्ष्म प्रबंधन कर रहा है, जिसे राज्यों पर छोड़ना ठीक रहता। राव ने कहा, ‘‘यह सिर्फ ऐसी योजनाओं के मामले में ही नहीं है, बल्कि केंद्र ने नीति आयोग की सिफारिशों पर भी आंखें बंद कर ली हैं।’’

उन्होंने आरोप लगाया कि नीति आयोग ने ‘मिशन काकतीय’ को 5,000 करोड़ रुपये और ‘मिशन भगीरथ’ को 19,205 रुपये की केंद्रीय सहायता देने की सिफारिशें की थीं, लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने उनकी अनदेखी की और योजनाओं के लिए कोई धन जारी नहीं किया। हालांकि, राज्य सरकार ने दोनों परियोजनाओं को अपने दम पर पूरा किया है।

राव ने कहा, ‘‘ये उदाहरण यह कहने के लिए पर्याप्त हैं कि नीति आयोग की संस्था निरर्थक हो गई है।’’ उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र ने तेलंगाना की उपलब्धियों के लिए श्रेय का दावा किया है, क्योंकि यह उन राज्यों में से एक है जो केंद्रीय योजना जल जीवन मिशन के बैनर तले हर घर को पीने का पानी उपलब्ध कराता है।

उन्होंने राज्य के सार्वजनिक उपक्रमों के उधार को राज्य सरकार के उधार के रूप में शामिल करने के लिए केंद्र की आलोचना करते हुए कहा कि यह न केवल अचानक किया गया, बल्कि पूर्व प्रभाव से लागू किया गया, जिससे राज्यों की प्रगति थम गई।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मैं इस बात की पुष्टि कर सकता हूं कि नीति आयोग ने सहकारी संघवाद के उद्देश्य से शुरुआत की, यह मानते हुए कि मजबूत राज्य एक मजबूत राष्ट्र बनाते हैं। लेकिन, सात साल के कामकाज के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि इसका (सहकारी संघवाद) अधिक उल्लंघन होते देखा गया है। केंद्र के कार्यों से पता चलता है कि यह पहल रास्ता भटक गई है क्योंकि राज्यों को राष्ट्रीय विकास एजेंडे में समान भागीदार के रूप में शामिल नहीं किया गया है।’’

राव के अनुसार, पहले जब योजना आयोग था, उस वक्त वार्षिक योजना पर राज्यों के साथ विस्तृत संवाद सत्र हुआ करता था। अब न तो कोई योजना है और न ही राज्यों और नीति आयोग की कोई भागीदारी है और इसकी बैठकों का कोई रचनात्मक उद्देश्य नहीं है।

राव ने कहा कि चूंकि कोई योजना नहीं है और सहकारी संघवाद की भावना नहीं है, ऐसे में देश रुपये के गिरते मूल्य, मुद्रास्फीति, आसमान छूती कीमतों और बढ़ती बेरोजगारी के साथ-साथ कम आर्थिक विकास की अभूतपूर्व समस्याओं के साथ सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र समस्याओं के सामने ‘मूकदर्शक’ बना हुआ है और लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहा है।

राव के अनुसार, उच्च पदों पर बैठे कुछ नेताओं के बयान अंतरराष्ट्रीय आलोचना को आमंत्रित करने के अलावा सांप्रदायिक सद्भाव और राष्ट्र के सामाजिक ताने-बाने को बाधित कर रहे हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि अप्रत्यक्ष कर के रूप में उपकर लगाने की केंद्र की प्रवृत्ति राज्यों को कर राजस्व में उनके वैध हिस्से से वंचित कर रही है और राज्य के हितों को ध्यान में रखे बिना केंद्र के ऐसे ‘‘एकतरफा और गैर-जिम्मेदार’’ रवैये ने देश को विकास पथ से दूर कर दिया है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह 140 करोड़ भारतीयों के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।’’

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