नयी दिल्ली, एक अगस्त राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने प्रश्नकाल को संसदीय लोकतंत्र का दिल बताते हुए मंगलवार को अफसोस जताया कि कुछ सदस्य अपने तारांकित सवालों के सूचीबद्ध होने के बाद भी पूरक प्रश्न पूछने के लिए उचित समय पर सदन में मौजूद नहीं रहते हैं।
सभापति ने उच्च सदन में प्रश्नकाल के दौरान यह टिप्पणी उस समय की जब विपक्ष के ज्यादातर सदस्य सदन में मौजूद नहीं थे। विपक्षी सदस्यों ने मणिपुर में हिंसा मुद्दे को लेकर सदन से बहिर्गमन किया था।
विपक्ष के सदस्य प्रश्नकाल शुरू होने के बाद कुछ समय तक नारेबाजी करते रहे और बाद में उन्होंने सदन से वाकआउट किया।
सभापति धनखड़ ने कहा कि प्रश्नकाल संसदीय लोकतंत्र का दिल होता है जिसमें सरकार से सवाल पूछने और कार्यपालिका की जवाबदेही तय करने का दुर्लभ मौका मिलता है। उन्होंने प्रश्न पूछने वाले सदस्यों के सदन में मौजूद नहीं होने को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि कुछ सदस्य सवाल पूछते हैं और वे भाग्यशाली होते हैं कि उनके सवाल चुन लिए जाते हैं तथा तारांकित सवालों की सूची में उनके सवाल शामिल हो जाते हैं।
सभापति ने अफसोस जताया कि लेकिन इसके बाद भी कई बार सदस्य सवाल पूछने के मौके का फायदा नहीं उठाते। उन्होंने कहा कि ऐेसे सदस्यों को आत्मचिंतन करने की जरूरत है कि क्या वे अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं और क्या वे आम लोगों के कल्याण के बारे में सही तरीके से विचार कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान की शपथ लेकर अगर हम लोगों की उम्मीदों और आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरते हैं तो क्या हम अपने कर्तव्य का सही तरीके से पालन कर रहे हैं।’’ उन्होंने इस क्रम में धीरज प्रसाद साहू, राघव चड्ढा, शक्तिसिंह गोहिल, वी शिवदासन, इमरान प्रतापगढ़ी, हरभजन सिंह जैसे विपक्षी सदस्यों का भी नाम लिया। इन सदस्यों के नाम तारांकित प्रश्न सूचीबद्ध थे लेकिन वे उस समय सदन में उपस्थित नहीं थे।
सभापति ने सदस्यों से वे प्रश्नकाल को उपयोगी बनाने की अपील की ताकि आम लोगों के जीवन में परिवर्तन आ सके। उन्होंने सदन में मौजूद सदस्यों से कहा कि वे सदन के बाहर विपक्ष के सदस्यों से इस बारे में बात कर उन्हें समझाये कि प्रश्नकाल बहुत महत्वपूर्ण होता है और इससे समाज के आम आदमी की समस्याओं को लेकर सरकार से प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
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