नयी दिल्ली, 19 सितंबर: लोकसभा में मंगलवार को पेश किये गये महिला आरक्षण विधेयक को मूर्त रूप लेने से पहले कई अवरोध पार करने होंगे जिनमें सभी राजनीतिक दलों का समर्थन पाने के साथ जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया जल्द पूरी करना शामिल हैं. महिला आरक्षण से संबंधित ‘संविधान (128वां संशोधन) विधेयक’ के प्रावधानों में स्पष्ट है कि इसके कानून बनने के बाद होने वाली जनगणना के आंकड़ों को पूरा करने के बाद परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने या निर्वाचन क्षेत्रों का पुन: सीमांकन होने के बाद ही यह प्रभाव में आएगा. Parliament Special Session: महिला आरक्षण बिल के बाद मोदी सरकार का है कुछ बड़ा प्लान... क्या ऐतिहासिक निर्णय होना है बाकी?
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि संसद के दोनों सदनों द्वारा विधेयक को पारित किये जाने के बाद इसे कानून का रूप देने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं की मंजूरी जरूरी होगी.
राज्य विधानसभाओं की मंजूरी आवश्यक है क्योंकि इससे राज्यों के अधिकार प्रभावित होते हैं.
संविधान में अनुच्छेद 334 के बाद जोड़ने के लिए प्रस्तावित नए अनुच्छेद 334 ए के अनुसार, ‘‘संविधान (128वां संशोधन), विधेयक 2023 के प्रारंभ होने के बाद की गई पहली जनगणना के संगत आंकड़े प्रकाशित होने के बाद इस उद्देश्य के लिए परिसीमन की कवायद शुरू होने के पश्चात विधेयक प्रभाव में आएगा.’’
संविधान के अनुच्छेद 82 (2002 में यथासंशोधित) के अनुसार 2026 के बाद की गयी पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया की जा सकती है. इस लिहाज से 2026 के बाद पहली जनगणना 2031 में होगी जिसके बाद परिसीमन किया जाएगा.
सरकार ने 2021 में जनगणना की प्रक्रिया पर कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रोक लगा दी थी. 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण को वास्तविक रूप देने के लिए सरकार को इस प्रक्रिया को तेजी से पूरा कराना होगा.
साल 2011 में जनगणना फरवरी-मार्च में की गयी थी और अनंतिम आंकड़े उस साल 31 मार्च को जारी किये गये थे. विशेषज्ञों ने यह बात भी कही है कि महिलाएं प्रतिनिधि तो चुनी जा सकती हैं लेकिन वास्तविक अधिकार उनके पतियों के पास रह सकते हैं जैसा कि पंचायत स्तर पर देखा गया.
जानीमानी वकील शिल्पी जैन ने कहा कि अगर आरक्षण के माध्यम से निर्वाचित महिला जन प्रतिनिधि उन्हीं परिवारों से हुईं जिनके पुरुष सदस्य राजनीति में हैं तो महिलाओं के उत्थान का विधेयक का उद्देश्य पूरा नहीं होगा.
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