38 साल तक सत्ता में रहने के बाद पद छोड़ेंगे कंबोडिया के प्रधानमंत्री
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

दुनिया में सबसे ज्यादा वक्त तक सरकार में बने रहने वाले नेताओं में से एक हुन सेन ने बुधवार को कहा कि वह त्यागपत्र देकर सत्ता अपने बड़े बेटे को देंगे. लगभग चार दशकों तक चला उनका कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है.1985 में सत्ता में आने के बाद हुन सेन अपने खिलाफ उठने वाली आवाजों को दबाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. फिर चाहे वह विपक्षी दलों पर प्रतिबंध रहा हो या फिर विरोधियों को भागने पर मजबूर करना, उन्होने बोलने की आजादी को खत्म कर दिया. उनके दल कंबोडियन पीपल्स पार्टी (सीपीपी) ने रविवार को चुनावों में जबरदस्त जीत हासिल की लेकिन सामने कोई विपक्ष था ही नहीं. 82 फीसदी वोट के साथ पार्टी फिर सत्ता में होगी और नेता का पद हुन सेन के बड़े बेटे की झोली में होगा. आलोचक इसकी तुलना उत्तरी कोरिया से कर रहे हैं.

बेमतलब चुनाव

सरकारी टीवी पर एक विशेष प्रसारण में 70 बरस के प्रधानमंत्री ने कहा, "मैं लोगों से अपील करता हूं कि वह इस बात को समझें कि अब मैं पीएम नहीं बना रहूंगा." चुनावों में हुन सेन की पार्टी को टक्कर देने वाले एकमात्र नेता, कैंडेललाइट पार्टी के उम्मीदवार को चुनाव अधिकारियों ने वोटिंग से पहले अयोग्य घोषित कर दिया था. हुन सेन के 45 साल के बेटे हुन मैने को अब 22 अगस्त को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा.

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रविवार को हुई वोटिंग में 84.6 फीसदी वोट पड़ने को सीपीपी ने देश में लोकतंत्र की परिपक्वता का सुबूत बताया लेकिन अमेरिका और यूरोपियन यूनियन समेत पश्चिमी देशों ने इसकी आलोचना की और चुनावों को अनुचित कहा है. इन चुनावों में प्रचार के दौरान हुन मैने ने बढ़ चढ़ कर हिस्सेदारी की और सत्ता सौंपने का यह काम पिछले डेढ़ साल से चल रहा है. इसका मतलब यह नहीं है कि हुन सेन राजनीति छोड़कर कहीं चले जाएंगे. उन्होंने साफ किया है कि वो पद छोड़ेंगे लेकिन इससे उनका दखल खत्म नहीं होगा. बुधवार को टेलीविजन पर दिए बयान में उन्होने यह कहा कि वह सेनेट के अध्यक्ष बनेंगे और राजा की गैरमौजूदगी में राज्यप्रमुख का पद संभालेंगे.

हुन सेन का कार्यकाल

अपने कार्यकाल के दौरान हुन सेन ने चीन के साथ नजदीकियां बढ़ाईं. नतीजा यह रहा कि चीन ने कंबोडिया में भारी निवेश और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाएं लगाईं. इसमें नौसैनिक अड्डा भी शामिल है जिस पर अमेरिका को आपत्तियां हैं. चीन ने रविवार को हुए चुनाव का स्वागत किया. खुद राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने निजी संदेश में हुन सेन को बधाई दी.

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हालांकि चीन से आए बेशुमार पैसे ने बहुत सारी दिक्कतें भी पैदा की हैं जैसे अचानक खुले कसीनो और ऑनलाइन धोखाधड़ी के बढ़ते मामले. हुन सेन के कार्यकाल में पर्यावरण को भयंकर नुकसान भी पहुंचा है. इसके साथ ही मानवाधिकार समूह कहते रहे हैं कि हुन सेन न्यायिक प्रणाली का दुरुपयोग करके विपक्षी आवाजों को दबाते रहे हैं.

एसबी/एनआर (एएफपी)