कोलकाता, 19 अगस्त : कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव (West Bengal Legislative Assembly Elections) के बाद हुयी हिंसा पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सुझावों को स्वीकार करते हुए अपराध और हत्या जैसे जघन्य अपराधों की जांच बृहस्पतिवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दी और कहा कि चुनाव के बाद हुई हिंसा के शिकार हुए लोगों की शिकायत दर्ज नहीं होने के आरोप “निश्चित और सिद्ध” हैं. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कई जनहित याचिकाओं पर एकमत से निर्णय दिया. इन याचिकाओं में चुनाव बाद हुई कथित हिंसा की घटनाओं पर स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया गया था. अदालत ने अन्य सभी मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित करने का भी आदेश दिया.
विशेष जांच दल में पश्चिम बंगाल कैडर के भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी सुमन बाला साहू, सौमेन मित्रा और रणवीर कुमार शामिल होंगे. न्यायाधीशों की इस पीठ में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल के साथ न्यायमूर्ति आई पी मुखर्जी, न्यायमूर्ति हरीश टंडन, न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति सुब्रत तालुकदार शामिल थे. इस पीठ ने कहा, “सभी मामले जहां, समिति की रिपोर्ट के अनुसार, किसी व्यक्ति की हत्या तथा बलात्कार या बलात्कार का प्रयास जैसे महिलाओं के विरुद्ध अपराध हैं, उन्हें जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जाएगा.” पीठ ने एनएचआरसी समिति को मामलों के दस्तावेज तत्काल सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया. पीठ सीबीआई और एसआईटी की जांच की निगरानी करेगी. पीठ ने दोनों एजेंसियों को छह सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. यह भी पढ़ें : अफगानिस्तान पर लिखा भुज एक्ट्रेस प्रणिता का पोस्ट हुआ वायरल
अदालत ने कहा कि एसआईटी का कामकाज उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश देखेंगे जिसके लिए उनकी सहमति जानने के बाद अलग से आदेश जारी किया जाएगा. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराना आवश्यक है और इसके लिए सीबीआई ही ऐसी एजेंसी हो सकती है. पीठ ने कहा कि राज्य सरकार कथित हत्याओं के कुछ मामलों में भी प्राथमिकी दर्ज कराने में विफल रही. पीठ ने कहा, “इससे पता चलता है कि जांच को एक विशेष दिशा में ले जाने की मानसिकता थी.” अदालत ने कहा, “ऐसी परिस्थितियों में किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से जांच कराने से सभी संबंधित लोगों में विश्वास जगेगा.” अदालत ने कहा कि पुलिस द्वारा शुरुआत में बहुत से मामले दर्ज नहीं करने और अदालत के दखल या समिति के गठन के बाद ही कुछ मामले दर्ज करने के आरोप सही पाए गए हैं.