BJP नेता ने पीएम मोदी से ‘भारतीय नागरिक संहिता’ का मसौदा तैयार करने के लिए आयोग गठित करने की मांग की
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर विकसित देशों में लागू "समान नागरिक संहिता" और गोवा में लागू "गोवा नागरिक संहिता" का अध्ययन करने और "भारतीय नागरिक संहिता" का मसौदा तैयार के लिए एक न्यायिक आयोग गठित करने की मांग की है.
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narenda Modi) को पत्र लिखकर विकसित देशों में लागू "समान नागरिक संहिता" और गोवा में लागू "गोवा नागरिक संहिता" का अध्ययन करने और "भारतीय नागरिक संहिता" का मसौदा तैयार के लिए एक न्यायिक आयोग गठित करने की मांग की है. भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने पत्र में कहा कि कुछ लोग इसका विरोध इसलिए करते हैं, क्योंकि समान नागरिक संहिता का मसौदा सार्वजनिक नहीं है.
उन्होंने कहा, “ समान नागरिक संहिता लागू होने से संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत प्राप्त मूलभूत धार्मिक अधिकार जैसे पूजा, नमाज या प्रार्थना करने, व्रत या रोजा रखने तथा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा का प्रबंधन करने या धार्मिक स्कूल खोलने, धार्मिक शिक्षा का प्रचार प्रसार करने या विवाह-निकाह की कोई भी पद्धति अपनाने या मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार के लिए कोई भी तरीका अपनाने में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होगा. यह भी पढ़े: मोदी सरकार को विधि आयोग ने दिया बड़ा झटका, कहा-समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं
उपाध्याय ने कहा, “ गोवा के सभी नागरिकों के लिए एक 'समान नागरिक संहिता' लागू हो सकती है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक 'भारतीय नागरिक संहिता' क्यों नहीं लागू हो सकती है?”
भारतीय नागरिक संहिता को“ देश की एकता-अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अति आवश्यक” बताते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री से विकसित देशों में लागू "समान नागरिक संहिता" और गोवा में लागू "गोवा नागरिक संहिता" का अध्ययन करने और "भारतीय नागरिक संहिता" का मसौदा तैयार के लिए तत्काल एक न्यायिक आयोग या विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने की मांग की.
बता दें कि केंद्र सरकार ने हाल में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर कर कहा कि वह विधि आयोग की रिपोर्ट मिलने के बाद समान नागरिक संहिता बनाने के मामले पर हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करके इसकी पड़ताल करेगा और यह मामला महत्वपूर्ण और संवेदनशील है तथा इसके लिए देश के विभिन्न समुदायों के पर्सनल लॉ का गहन अध्ययन करने की जरूरत है.
इससे पहले सितंबर 2019 में एक मामले पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने गोवा को ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने के संदर्भ में एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में वर्णित किया था.
(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)