नयी दिल्ली, नौ जून राष्ट्रपति चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही अब सबकी निगाहें इस पर है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) देश के शीर्ष संवैधानिक पद के लिए किसे अपना उम्मीदवार बनाती है। शीर्ष संवैधानिक पद के लिए यदि विपक्षी दल अपना उममीदवार उतारते हैं और चुनाव होता है तो भाजपा अपने सहयोगियों के समर्थन से बेहतर स्थिति में नजर आ रही है।
निर्वाचन आयोग ने चुनाव की तारीख 18 जुलाई निर्धारित कीहै और यदि एक से अधिक उम्मीदवार मैदान में होंगे तो फिर मतदान कराया जाएगा। राष्ट्रपति चुनाव में किस गठबंधन का उम्मीदवार जीतेगा, इससे अधिक राजनीतिक विमर्श का विषय यह है कि सत्ताधारी गठबंधन और विपक्षी गठबंधन अपना उम्मीदवार किसे बनाते हैं।
उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत ने पार्टी को और अच्छी स्थिति में ला दिया है। इनमें सबसे अहम उत्तर प्रदेश है क्योंकि यहां के हर विधायक के मत का मूल्य (वैल्यू) अन्य राज्यों के विधायकों की तुलना में सर्वाधिक है।
वर्ष 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले देखा जाए तो भाजपा और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के उसके सहयोगियों के विधायकों में संख्या में कमी आई है लेकिन उसके सांसदों की संख्या में वृद्धि जरूर हुई है।
भाजपा के एक नेता ने कहा कि सत्ताधारी राजग के पास निर्वाचक मंडल के लगभग 50 प्रतिशत मत हैं। उनके मुताबिक राजग को आंध्र प्रदेश की वाईएसआर कांग्रेस और ओडिशा के बीजू जनता दल (बीजद) जैसे गैर-राजग और गैर-संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (गैर-संप्रग) क्षेत्रीय दलों का साथ मिलने की उम्मीद है। भाजपा यह मानकर चल रही है कि तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में सहयोगी रहे अन्नाद्रमुक का भी उसे समर्थन मिलेगा।
पिछला राष्ट्रपति चुनाव 2017 में 17 जुलाई को हुआ था और मतगणना 20 जुलाई को हुई थी। रामनाथ कोविंद ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और विपक्षी दलों की उम्मीदवार मीरा कुमार को हराया था।
कोविंद की उम्मीदवारी की घोषणा से पहले राजनीतिक गलियारों में कई नामों की चर्चा जोरों पर थी लेकिन जब तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद उनके नाम की घोषणा की थी तो सभी आश्चर्य में पड़ गए थे।
केंद्र में सत्ता में आने के बाद विभिन्न मौकों पर नेता के चयन में भाजपा नेतृत्व ने चौंकाने वाले फैसले किए हैं।
राष्ट्रपति के रूप में कोविंद के चयन को कभी भी भाजपा के हिन्दुत्व के विमर्श को आगे बढ़ाने के रूप में नहीं देखा गया बल्कि उस वक्त उसे इस रूप में देखा गया था कि भाजपा ने समाज के एक वंचित व पिछड़े वर्ग के लोगों का दिल जीतने के एक महत्वाकांक्षी अभियान के तहत उनके नाम को आगे बढ़ाया था। इसके बाद हुए चुनावों में भाजपा को लगातार मिली सफलता भी यह दर्शाती है कि वह समाज के उन वर्गों की एक बड़ी संख्या को अपनी ओर करने में सफल भी रही है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना कि यह देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के चयन में भाजपा अपने मुख्य वैचारिक मुद्दों को तरजीह देती है या फिर ऐसे व्यक्ति का चयन करती है जो उसके चुनावी गणित में फिट बैठता हो, या फिर वह उम्मीदवार उसके प्रमुख समर्थकों में हो या फिर वह किसी नए समूह में पार्टी की पैठ को मजबूत करने से प्रेरित हो।
लंबे समय से ये अटकलें है कि भाजपा इस बार जनजातीय समुदाय से किसी व्यक्ति को या फिर किसी महिला को अपना उम्मीदवार बना सकती है।
वैसे भी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उम्मीदवारों के चयन के मामले में परंपरा के विपरित भी फैसले लेता रहा है।
हो सकता है कि वह कोविंद को ही पुन: इस पद के लिए आगे कर दें लेकिन दस्तूर यह भी रहा है कि देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को छोड़कर किसी भी राष्ट्रपति का दो कार्यकाल नहीं रहा है।
भाजपा सूत्रों ने कहा कि उसके वरिष्ठ नेता विपक्ष सहित सभी दलों से संपर्क करेंगे ताकि शीर्ष संवैधानिक पद के लिए आम सहमति बन सके।
मौजूदा आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक भाजपा के कुल 392 सांसद हैं। इनमें राज्यसभा के चार मनोनीत सदस्य शामिल नहीं है क्योंकि वे राष्ट्रपति चुनाव में मतदान नहीं कर सकते। दोनों सदनों के वर्तमान कुल 772 सदस्यों में, भाजपा के पास बहुमत है।
चूंकि लोकसभा में अभी तीन और राज्यसभा में 13 सीट खाली हैं, लिहाजा चुनाव की तारीख तक इन आकंड़ों में बदलाव होना लाजिमी है। सांसदों के मतों के मामले में भाजपा की स्थिति संसद में और मजबूत हो जाती है जबकि जनता दल यूनाईटेड (21 सांसद), राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, अपना दल और पूर्वोत्तर के कई अन्य सहयोगी दलों के मत जुड़ जाएंगे।
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