देश की खबरें | बिलकीस बानो मामला: उच्चतम न्यायालय ने दोषी के जुर्माना जमा करने पर सवाल उठाया

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में दोषी ठहराये गये लोगों में से एक के ऐसे समय जुर्माना जमा करने पर बृहस्पतिवार को सवाल उठाया, जब सजा माफी को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई जारी है।

नयी दिल्ली, 31 अगस्त उच्चतम न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में दोषी ठहराये गये लोगों में से एक के ऐसे समय जुर्माना जमा करने पर बृहस्पतिवार को सवाल उठाया, जब सजा माफी को चुनौती देने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई जारी है।

दोषी रमेश रूपाभाई चंदना की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ को बताया कि दोषियों ने मुंबई में निचली अदालत का रुख किया है और उन पर लगाया गया जुर्माना जमा कर दिया है।

पीठ ने कहा, ‘‘क्या जुर्माना जमा न करने से छूट पर कोई असर पड़ता है। क्या आपको आशंका थी कि जुर्माना जमा न करने से मामले के गुण-दोष पर असर पड़ेगा। पहले आप अनुमति मांगते हैं और अब बिना अनुमति के आपने जुर्माना जमा कर दिया है।’’

अदालत के सवाल का जवाब देते हुए लूथरा ने कहा कि जुर्माना जमा न करने से छूट के फैसले पर कोई असर नहीं पड़ता है, लेकिन उन्होंने अपने मुवक्किल को जुर्माना जमा करने की सलाह दी थी।

अधिवक्ता ने कहा, ‘‘मेरे अनुसार, इसका कोई कानूनी परिणाम नहीं है। लेकिन चूंकि विवाद उठाया गया था...इसलिये विवाद को टालने के मद्देनजर, हमने अब जुर्माना जमा कर दिया है।’’

दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने संबंधी जनहित याचिकाएं दाखिल करने वालों में से एक ने दलील दी है कि दोषियों की समय से पहले रिहाई अवैध है, क्योंकि उन्होंने अपनी सजा पूरी तरह से नहीं काटी है।

यह भी दलील दी गई कि क्योंकि दोषियों ने 34,000 रुपये की जुर्माना राशि का भुगतान नहीं किया, इसलिए उन्हें अतिरिक्त सजा काटनी होगी, जो उन्होंने नहीं काटी है।

लूथरा ने शीर्ष अदालत की पीठ को सूचित किया कि दोषियों ने जुर्माना जमा करने की अनुमति के लिए एक आवेदन दायर किया था क्योंकि ऐसी आशंका थी कि सत्र अदालत जुर्माना स्वीकार नहीं कर सकती है।

अधिवक्ता ने कहा, ‘‘हमने जुर्माना जमा करने के संबंध में कुछ आवेदन दायर किए थे। उन्होंने सत्र अदालत का रुख किया है और उसने अब जुर्माना स्वीकार कर लिया है। मैंने उन्हें सलाह दी है कि ऐसा करना उचित है।’’

शीर्ष अदालत में जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, लूथरा ने मामले में अपने मुवक्किल को दी गई छूट का बचाव करते हुए कहा कि सुधार आपराधिक न्याय प्रणाली का अंतिम उद्देश्य है।

मामले में सुनवाई अनिर्णायक रही और 14 सितंबर को फिर से सुनवाई होगी।

उच्चतम न्यायालय ने मामले में 17 अगस्त को गुजरात सरकार से कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को सजा में छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए और प्रत्येक कैदी को सुधार तथा समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर दिया जाना चाहिए। वहीं, गुजरात सरकार ने 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो सामूहिक बलात्कार मामले के सभी 11 दोषियों की समय-पूर्व रिहाई के अपने फैसले का बचाव किया था।

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