राजनीति के दिग्गज माने जाते हैं Ajay Bhatt, यहां पढ़ें कैसा रहा है उनका अबतक का सफर

उत्तराखंड के दिग्गज नेताओं में शुमार अजय भट्ट पहली बार सांसद बने हैं लेकिन उनके पास लंबा राजनीतिक अनुभव है. इसके साथ ही वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में अपने नेतृत्व में तीन चौथाई से अधिक बहुमत के साथ भाजपा को सत्ता में लाने का श्रेय भी है.

अजय भट्ट (Photo Credits: ANI)

देहरादून, सात जुलाई: उत्तराखंड के दिग्गज नेताओं में शुमार अजय भट्ट पहली बार सांसद बने हैं लेकिन उनके पास लंबा राजनीतिक अनुभव है. इसके साथ ही वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव में अपने नेतृत्व में तीन चौथाई से अधिक बहुमत के साथ भाजपा को सत्ता में लाने का श्रेय भी है. उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में विधायक और मंत्री के अलावा पार्टी में विभिन्न सांगठनिक पदों पर रह चुके भट्ट ने नैनीताल-उधमसिंह नगर लोकसभा क्षेत्र से 2019 में पहली बार संसदीय चुनाव लड़ा और मुकाबले में कांग्रेसी दिग्गज हरीश रावत को करीब तीन लाख चालीस हजार मतों से पटखनी दी, जो प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों के अंतर से दर्ज की गयी जीत थी.

एक मई, 1961 को अल्मोडा जिले के रानीखेत में जन्मे भटट के सिर से पिता का साया बचपन में ही उठ गया था लेकिन उन्होंने सब्जी की छोटी सी दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने के साथ ही अपनी पढ़ाई जारी रखी और एलएलबी तक की शिक्षा प्राप्त कर प्रदेश में एक नामी वकील के रूप में पहचान बनाई. जीवन की शुरूआत से ही भट्ट का राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुडाव रहा और फिर वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए. उन्होंने 1980 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा. उत्तराखंड पृथक राज्य आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भागीदारी निभाई. इससे पहले अयोध्या राम मंदिर आंदोलन के दौरान भी भट्ट ने दो बार गिरफ्तारी दी.

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भट्ट तीन बार विधायक रहे. वर्ष 1996 में वह पहली बार रानीखेत से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए. वर्ष 2000 में उत्तराखंड का गठन होने पर वह भाजपा की नित्यानंद स्वामी और फिर भगत सिंह कोश्यिारी की अंतरिम सरकार में स्वास्थ्य, आबकारी और आपदा प्रबंधन मंत्री भी रहे. इसके बाद वह 2002 में और फिर 2012 में भी रानीखेत से विधायक चुने गए.

हालांकि, 2017 में बतौर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भट्ट के नेतृत्व में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 70 में से 57 सीटों के साथ ऐतिहासिक विजय हासिल की, लेकिन भट्ट को स्वयं रानीखेत सीट से अप्रत्याशित रूप से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन केंद्रीय शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी के जबरदस्त प्रदर्शन का पुरस्कार देते हुए प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल एक साल और बढ़ाकर जनवरी 2020 तक कर दिया.

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