गांवों में किसी अन्य चिकित्सा पद्धति ने आयुर्वेद का स्थान नहीं लिया है: राष्ट्रपति कोविंद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रविवार को आयुर्वेद विशेषज्ञों से रोगों के उपचार एवं महामारी विज्ञान के नए-नए क्षेत्रों में आयुर्वेद की प्रभावशीलता एवं लोकप्रियता को बढ़ाने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत के गांवों में आज भी पारंपरिक आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं और अभी भी किसी अन्य चिकित्सा पद्धति ने इसका स्थान नहीं लिया है.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Photo Credits ANI)

उज्जैन (मप्र), 29 मई : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ram Nath Kovind) ने रविवार को आयुर्वेद विशेषज्ञों से रोगों के उपचार एवं महामारी विज्ञान के नए-नए क्षेत्रों में आयुर्वेद की प्रभावशीलता एवं लोकप्रियता को बढ़ाने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत के गांवों में आज भी पारंपरिक आयुर्वेद चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं और अभी भी किसी अन्य चिकित्सा पद्धति ने इसका स्थान नहीं लिया है. उज्जैन में अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन के 59वें महाधिवेशन का उद्घाटन करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा, ‘‘सचमुच में भारत गांवों का देश है और गांवों में जो पारंपरिक चिकित्सा की व्यवस्था है, वह आज भी आयुर्वेदिक ही है. इसका विकल्प अभी भी किसी भी अन्य चिकित्सा पद्धति में नहीं है. किसी भी चिकित्सा पद्धति ने इसका स्थान अभी तक नहीं लिया है.’’

उन्होंने कहा, ‘‘अनुसंधान से जुड़े हुए लोगों से अपेक्षा है कि रोगों के उपचार एवं महामारी विज्ञान के नए-नए क्षेत्रों में आयुर्वेद की प्रभावशीलता और लोकप्रियता को बढ़ाया जाए.’’ कोविंद ने कहा, ‘‘विश्व भर में अनेक चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं. परंतु आयुर्वेद इनमें सबसे अलग है. आयुर्वेद का अर्थ है ‘साइंस ऑफ लाइफ’ अर्थात आयु का विज्ञान.’’ उन्होंने कहा, ‘‘विश्व में प्रचलित अनेक चिकित्सा पद्धतियों के साथ पैथी शब्द जुड़ा होता है. पैथी अर्थात रोग हो जाने पर उसका उपचार करने की पद्धति. लेकिन आयुर्वेद में स्वास्थ्य रक्षा अर्थात रोग के उपचार के साथ-साथ रोग निवारण पर भी बल दिया जाता है. रोग का मूल कारण ढूंढ़ करके उसे दूर करने का प्रयास किया जाता है. ऐसे सर्वहितकारी आयुर्वेद का परंपरागत ज्ञान हमारे पास है. यह हम सबका सौभाग्य है.’’ यह भी पढ़ें : स्मृति ईरानी दलितों, भूमिहीन मजदूरों के बीच अच्छा काम करने वाली मंत्री हैं- सर्वे

कोविंद ने आगे कहा, ‘‘लेकिन आज का समय शोध और अनुसंधान का, प्रमाणन का और गुणवत्ता का समय है. यह समय आयुर्वेद के लिए ज्ञान को अधिक गहराई से समझने, वैज्ञानिक कसौटी पर कसकर खरा उतरने का तथा वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुसार तकनीकी विश्व को देने का है. ये हम सबके लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है और मुझे विश्वास है कि आप सब लोग मिलकर इस चुनौती को स्वीकारेंगे और इसमें प्रगति करेंगे.’’ उन्होंने कहा कि ये जानकर गौरव होता है कि मॉरिशस सहित विश्व के लगभग 20 देशों में आयुर्वेद में अनुसंधान किया जा रहा है. कोविंद ने कहा कि भारत सरकार द्वारा समय-समय पर भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अनेक उपाय किए गए हैं, लेकिन वर्ष 2014 में पृथक आयुष मंत्रालय की स्थापना के बाद इस कार्य में और तेजी आई है.

उन्होंने आशा जताई कि मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल के मार्गदर्शन और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में चिकित्सा सुविधाओं को प्रदेश में लगातार संबल मिलता रहेगा और यह प्रदेश आयुर्वेद चिकित्सा का गंतव्य बनेगा. कोविंद ने कहा, ‘‘आप सब मिलकर मध्य प्रदेश को भारत का एक आयुर्वेद केंद्र बनाने में मदद करें तो उसका श्रेय आपको और मध्य प्रदेश सरकार को भी जाएगा.’’ उन्होंने कहा कि आयुर्वेद में रोग के उपचार के साथ-साथ रोग के निवारण पर भी बल दिया जाता है. यह समय आयुर्वेद के ज्ञान को अधिकाधिक समझने और तकनीकी मापदंडों को परिमार्जित कर विश्व को देने का है.

कोविंद ने कहा कि आज से हजारों साल पहले चरक संहिता में कहा गया था कि भोजन से पहले हाथ, पैर और मुंह धोना आवश्यक है. उन्होंने कहा कि इससे बीमारियों से भी बचा सकता है और कोविड-19 के दौरान इसके माध्यम से लोगों के जीवन की रक्षा हुई है. उन्होंने कहा कि आयुर्वेद प्रशासन से जुड़े लोगों से यह अपेक्षा है कि आयुर्वेद के संरक्षण और विस्तार के समक्ष नीतिगत बाधाओं को दूर किया जाए और आयुर्वेद के प्रति जनसामान्य में जागरूता बढ़ाई जाए. इसके अलावा, उन्होंने कहा कि आयुर्वेद शिक्षकों से अपेक्षा है कि ऐसे योग्य चिकित्सक तैयार करें जो लोगों को व्यापक तौर पर किफायती उपचार उपलब्ध कराने में अपना अधिक से अधिक योगदान दे सकें.

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