ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि वह 2025 के लिए नए अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या को 2,70,000 तक सीमित करेगा, क्योंकि सरकार रिकॉर्ड माइग्रेशन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है.ब्रिटेन और कनाडा की तरह ऑस्ट्रेलिया भी अपने यहां माइग्रेशन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है और इसके लिए विदेशों से आने वाले छात्रों की संख्या को सीमित करने का फैसला किया गया है. मंगलवार को उसने कहा कि 2025 में दो लाख 70 हजार से ज्यादा छात्रों को वीजा नहीं दिया जाएगा.
कोविड के बाद से अंतरराष्ट्रीय छात्रों को कई तरह की छूटें दी गई थीं लेकिन पिछले एक साल में ऑस्ट्रेलिया ने कई कड़े निर्णय लिए हैं. शिक्षा मंत्री जेसन क्लेयर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हमारे विश्वविद्यालयों में आज महामारी से पहले की तुलना में लगभग 10 प्रतिशत अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्र हैं, और निजी व्यावसायिक और प्रशिक्षण संस्थानों में उनकी संख्या लगभग 50 फीसदी अधिक है."
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नई सीमा के तहत अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या विश्वविद्यालयों के लिए 1,45,000 और व्यावहारिक और स्किल-आधारित पाठ्यक्रमों के लिए 95,000 तक सीमित की जाएगी, जो लगभग 2023 के स्तर के आसपास है.
क्लेयर ने कहा कि सरकार विश्वविद्यालयों को उनकी विशेष नामांकन सीमा के बारे में सूचित करेगी. इस फैसले का विश्वविद्यालयों ने विरोध किया है. बड़े विश्वविद्यालयों की संस्था ‘यूनिवर्सिटीज ऑस्ट्रेलिया‘ ने कहा कि सरकार का यह कदम इस क्षेत्र पर "हैंड ब्रेक" लगाने जैसा होगा.
नाखुश हैं विश्वविद्यालय
यूनिवर्सिटीज ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख प्रोफेसर डेविड लॉयड ने एक बयान में कहा, "हम प्रवासियों की संख्या को नियंत्रित करने के सरकार के अधिकार को स्वीकार करते हैं, लेकिन यह किसी भी एक क्षेत्र की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए, विशेष रूप से एक ऐसा क्षेत्र जो आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण है, जैसे शिक्षा."
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा ऑस्ट्रेलिया का चौथा सबसे बड़ा निर्यात उद्योग है. 2022-2023 वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का योगदान 36.4 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग दो हजार अरब रुपये था.
लेकिन सर्वेक्षणों से पता चला है कि प्रवासियों की बढ़ती संख्या से लोगों में चिंता है. एक सर्वे के मुताबिक मतदाता बड़े पैमाने पर विदेशी छात्रों और कामगारों की आमद से चिंतित हैं, जो हाउसिंग मार्किट पर अधिक दबाव डाल रहे हैं. इस कारण माइग्रेशन एक साल के अंदर चुनावी मुद्दों में से एक बन सकता है.
30 सितंबर 2023 तक के वर्ष में नेट माइग्रेशन 60 फीसदी बढ़कर रिकॉर्ड 5,48,800 हो गया था. इनमें बहुत बड़ी संख्या भारत, चीन और फिलीपींस से आए छात्रों की थी. 2022-23 में देश में आए कुल प्रवासियों की संख्या 5,18,000 थी.
ब्रिटेन और कनाडा की तर्ज पर छात्रों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए पिछले कुछ महीनों में ऑस्ट्रेलिया ने कई कड़े कदम उठाए हैं. पिछले महीने विदेशी छात्रों के लिए वीजा फीस को दोगुने से भी ज्यादा बढ़ा दिया गया था. साथ ही, उन नियमों में खामियों को खत्म करने का वादा किया था, जिनसे अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अपने रहने की अवधि को लगातार बढ़ाने की अनुमति मिल रही थी.
छात्रों का नया रिकॉर्ड
इस साल अंतरराष्ट्रीय छात्रों का कुल नामांकन आठ लाख को पार कर जाने की संभावना जताई गई है जो 2019 की तुलना में 17 फीसदी ज्यादा है.
2024 में कुल नामांकनों की संख्या 2,89,230 है, जो इस अवधि के लिए एक रिकॉर्ड है और 2019 के 2,49,261 नामांकनों से 16 फीसदी अधिक है. यह रिकॉर्ड आंकड़ा बताता है कि ऑस्ट्रेलिया के प्रति अंतरराष्ट्रीय छात्रों का आकर्षण न केवल वापस आया है, बल्कि नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है. इसकी एक वजह कनाडा और ब्रिटेन द्वारा अंतरराष्ट्रीय छात्रों को कम वीजा दिया जाना भी है.
ऑस्ट्रेलिया पढ़ने जाने वाले छात्रों में 21 फीसदी चीन से आते हैं. उसके बाद भारत (16 फीसदी), नेपाल (8 फीसदी), फिलीपींस (5 फीसदी) और वियतनाम (5 फीसदी) का नंबर है. व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण क्षेत्र में सबसे बड़ी वृद्धि देखने को मिली है, जहां नामांकन 2019 के बाद से 46 फीसदी बढ़ गए. उच्च शिक्षा में भी दाखिले बढ़े हैं लेकिन 2019 के स्तर से उनकी वृद्धि केवल 1 फीसदी की रही है. अंग्रेजी भाषा के पाठ्यक्रमों में दाखिले में 7 फीसदी वृद्धि हुई है, जबकि स्कूलों और अन्य पाठ्यक्रमों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों के दाखिलों में लगभग 25 फीसदी की गिरावट हुई है.
नए नियमों का भारतीय छात्रों पर बड़ा असर पड़ सकता है, जिनके लिए विदेशों में पढ़ने के कई मौके कम होंगे. ऑस्ट्रेलिया भारतीय छात्रों में सबसे लोकप्रिय जगहों में से एक है और बीते सालों में उनकी संख्या लगातार बढ़ी है. 2019 में लगभग 90 हजार भारतीय छात्र पढ़ने के लिए ऑस्ट्रेलिया गए थे लेकिन 2024 में उनकी संख्या एक लाख 18 हजार को पार कर चुकी है.
रिपोर्टः विवेक कुमार (रॉयटर्स)