J&K Year Ender 2024: अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव, छह साल बाद बनी निर्वाचित सरकार

जम्मू कश्मीर को छह साल बाद 2024 में, एक निर्वाचित सरकार मिल गई, लेकिन राज्य का दर्जा बहाल होना मुश्किल है. सुरक्षा मोर्चे पर हालात तसल्ली के लायक नहीं कहे जा सकते क्योंकि आतंकवादी हमलों का सिलसिला थमा नहीं है.

श्रीनगर, 1 जनवरी : जम्मू कश्मीर को छह साल बाद 2024 में, एक निर्वाचित सरकार मिल गई, लेकिन राज्य का दर्जा बहाल होना मुश्किल है. सुरक्षा मोर्चे पर हालात तसल्ली के लायक नहीं कहे जा सकते क्योंकि आतंकवादी हमलों का सिलसिला थमा नहीं है. जम्मू कश्मीर में 10 वर्षों के अंतराल के बाद हुए विधानसभा चुनावों में कई चीजें पहली बार हुईं. संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधान निरस्त होने के बाद और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू कश्मीर में पहली बार चुनाव हुए. उग्रवाद के सिर उठाने के बाद पहली बार हुए इन चुनावों में प्रतिबंधित सामाजिक-धार्मिक दल जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया. यह ऐसा पहला चुनाव था जिसमें एक दल ‘नेशनल कॉन्फ्रेंन्स’ ने अपने दम पर लगभग बहुमत हासिल किया. उसने 90 सदस्यीय विधानसभा में 42 सीटें जीतीं.

नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला, जम्मू कश्मीर के चौथे ऐसे नेता बन गए हैं, जिन्होंने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है. उनके अलावा उनके दादा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला, पिता फारूक अब्दुल्ला और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के मुफ्ती मोहम्मद सईद ने यह उपलब्धि हासिल की थी. जम्मू में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, उसने क्षेत्र की 43 में से 29 सीट जीतीं. जम्मू क्षेत्र में अपने प्रदर्शन में सुधार की उम्मीद करने वाली कांग्रेस, हिंदू बहुल इलाकों में एक भी सीट नहीं जीत सकी. उसने घाटी में पांच और मुस्लिम बहुल राजौरी इलाके में एक समेत कुल छह सीट प्राप्त की. मुख्यधारा की पार्टियों में पीडीपी का प्रदर्शन सबसे खराब रहा और उसे मात्र तीन सीट मिलीं, जबकि 2014 के चुनावों में उसे 28 सीट प्राप्त हुई थीं. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती को परिवार के गढ़ बिजबहेड़ा से चुनावी राजनीति में उतारने का प्रयास भी विफल रहा. जम्मू में, भाजपा की तत्कालीन जम्मू कश्मीर इकाई के अध्यक्ष रविंद्र रैना को हार का सामना करना पड़ा. एक समय पर उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार माना जा रहा था. यह भी पढने : राजस्थान के दौसा में एक बाघ के हमले में महिला सहित तीन लोग जख्मी

विधानसभा चुनावों में उन इलाकों में भी भारी भागीदारी देखी गई, जो चुनाव बहिष्कार के लिए जाने जाते हैं. यहां पूर्व अलगाववादी कई नेताओं या उनके रिश्तेदारों ने चुनाव लड़ा. अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के खिलाफ नाराजगी से नेशनल कांफ्रेंस को फायदा मिला. 2014 में उसकी मात्र 15 सीट थीं, जो इस बार बढ़कर लगभग तीन गुना हो गई. अपने चुनावी वादों पर कायम रहते हुए, नेशनल कांफ्रेंस सरकार ने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने का प्रस्ताव पारित किया और इसके बाद विशेष दर्जा बहाल करने के लिए विधानसभा में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया. भाजपा ने इस प्रस्ताव के पारित होने पर विधानसभा में हंगामा किया. इस साल की शुरुआत में लोकसभा चुनावों में घाटी में कुछ चौंकाने वाले नतीजे सामने आए, लेकिन जम्मू की दो सीटों पर जीत तय मानी जा रही थी. केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह और उनके भाजपा सहयोगी जुगल किशोर शर्मा दोनों ने लगातार तीसरी बार लोकसभा में जीत दर्ज की.

सबसे बड़ा झटका उमर अब्दुल्ला का बारामुला से जेल में बंद नेता शेख अब्दुल राशिद के हाथों हारना था. स्थानीय कद्दावर नेता सज्जाद गनी लोन भी हार गए, क्योंकि राशिद के बेटों ने "अपने पिता को फांसी से बचाने" के लिए भावनात्मक अभियान चलाया. पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती को भी झटका लगा, जो लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव हार गईं. इस बार वे एक प्रमुख गुज्जर नेता एम ए अहमद लारवी से हार गईं, जो अनिच्छुक उम्मीदवार थे, लेकिन नेशनल कॉन्फ्रेंस के शीर्ष नेतृत्व की इच्छा के आगे झुक गए. नेशनल कॉन्फ्रेंस के आगा रूहुल्लाह भी लोकसभा के लिए चुने गए. उन्होंने आतंकवाद के आरोपी पीडीपी नेता वहीद पारा को श्रीनगर से हराया. नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा. पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद अब अपनी अलग पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन पार्टी पहले से ही बिखरती दिख रही है. डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी ने घोषणा की थी कि पूर्व मुख्यमंत्री आज़ाद अनंतनाग-राजौरी से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. हालांकि, उन्होंने कुछ ही दिनों में अपने कदम वापस खींच लिए.

अस्वस्थता के कारण आजाद ने विधानसभा चुनावों के दौरान शायद ही कभी प्रचार किया और उनकी पार्टी एक भी सीट जीतने में विफल रही.

वर्ष के दौरान जम्मू कश्मीर में सुरक्षा स्थिति कुल मिलाकर शांतिपूर्ण रही, हालांकि आतंकियों ने कुछ हमले भी किए. आतंकवादियों ने जम्मू के उधमपुर, कठुआ, पुंछ और राजौरी जिलों में हमले किए. इसके अलावा उन्होंने कश्मीर में सुरक्षा बलों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर भी हमला किया. सबसे घातक हमला कश्मीर के गंदेरबल जिले के गगनगीर में एक सुरंग निर्माण स्थल पर हुआ, जिसमें छह प्रवासी मजदूर और एक स्थानीय डॉक्टर सहित कुल सात लोग मारे गए.

Share Now

\