देश की खबरें | असम उपचुनाव : सांसदों के कई रिश्तेदार मैदान में, वंशवाद की राजनीति बना अहम मुद्दा
Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. असम में विधानसभा उपचुनाव के दौरान ‘वंशवाद की राजनीति’ एक अहम मुद्दा बनकर उभरा है, क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन से लेकर मुख्य विपक्षी दल तक ने राजनीतिक घरानों से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है और वे इसे लेकर एक-दूसरे पर निशाना भी साध रहे हैं।
गुवाहाटी, नौ नवंबर असम में विधानसभा उपचुनाव के दौरान ‘वंशवाद की राजनीति’ एक अहम मुद्दा बनकर उभरा है, क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन से लेकर मुख्य विपक्षी दल तक ने राजनीतिक घरानों से ताल्लुक रखने वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है और वे इसे लेकर एक-दूसरे पर निशाना भी साध रहे हैं।
बोंगाईगांव से जहां बारपेटा के सांसद फणी भूषण चौधरी की पत्नी दीप्तिमयी असम गण परिषद (एजीपी) के टिकट पर सत्तारूढ़ गठबंधन की उम्मीदवार के रूप में किस्मत आजमा रही हैं, वहीं सामागुरी में विपक्षी दल कांग्रेस ने धुबरी के सांसद रकीबुल हुसैन के बेटे तंजील को मैदान में उतारा है।
बोंगाईगांव और सामागुरी के अलावा असम की धोलाई, सिदली और बेहाली सीटों पर भी 13 नवंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होना है। कांग्रेस राज्य की पांचों विधानसभा सीटों पर उपचुनाव लड़ रही है, जबकि भाजपा ने तीन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि पार्टी ने एक-एक सीट सहयोगी एजीपी और यूपीपीएल के लिए छोड़ी है।
बोंगाईगांव और सामागुरी सीट उनके विधायकों के क्रमश: बारपेटा और ढुबरी से लोकसभा सदस्य चुने जाने के कारण खाली हुई है।
पूर्व मंत्री फणी भूषण चौधरी के नाम असम में सबसे लंबे समय तक विधायक रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। उन्होंने 1985 से इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बारपेटा से सांसद चुने जाने तक बोंगाईगांव विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। वहीं, हुसैन भी कांग्रेस सरकार में मंत्री रह चुके हैं और उन्होंने 23 वर्षों तक सामागुरी विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था।
मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने इस हफ्ते की शुरुआत में सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए प्रचार करते समय सामागुरी से तंजील को टिकट देने के लिए कांग्रेस की आलोचना की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि विपक्षी दल ‘वंशवाद की राजनीति’ के जरिये प्रतिभाशाली युवाओं को राजनीति में शामिल होने से रोक रही है।
शर्मा ने कहा था, “हम सिर्फ कांग्रेस से नहीं लड़ रहे हैं, हम परिवार के नेतृत्व वाले एक मजबूत और भ्रष्ट क्लब के खिलाफ खड़े हैं... क्या कोई बता पाएगा कि तंजील के बाद सामागुरी में विधायक कौन होगा? जाहिर तौर पर उनका बेटा होगा। केवल उनके बच्चे और पोते-पोतियां अगले विधायक होंगे।”
उन्होंने दावा किया था कि सामागुरी ने केवल वंशवादी नेताओं को देखा है, क्योंकि पहले कांग्रेस नेता एवं पूर्व मंत्री नुरूल हुसैन यहां से विधायक थे, फिर उनके बेटे रकीबुल हुसैन ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया और अब तंजील हैं, जो इस विधानसभा सीट पर नजर गड़ाए हुए हैं।
भाजपा ने प्रदेश महासचिव और राज्य युवा इकाई के पूर्व अध्यक्ष डी रंजन शर्मा को सामागुरी से तंजील के खिलाफ अपना उम्मीदवार बनाया है।
वहीं, कांग्रेस ने भी भाजपा पर राष्ट्रीय स्तर से ही वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाया है। उसने एजीपी के बोंगाईगांव से दीप्तिमयी चौधरी को चुनाव मैदान में उतारने को लेकर भाजपा पर निशाना साधा है।
असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने मुख्यमंत्री पर पलटवार करते हुए दावा किया था कि मौजूदा समय में केंद्रीय मंत्रियों सहित कम से कम 30 शीर्ष भाजपा नेता राजनीतिक घरानों से ताल्लुक रखते हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया के बेटे देबब्रत ने सफाई दी थी कि कोई पार्टी किसी भी नेता को जनता पर नहीं थोप सकती है और यह अंततः मतदाताओं के ऊपर है कि वे उन्हें स्वीकार करें या अस्वीकार।
कांग्रेस प्रवक्ता बेदब्रत बोरा ने एजीपी के दीप्तिमयी को बोंगाईगांव से उम्मीदवार बनाने पर सवाल उठाया।
उन्होंने सवाल किया, “अगर चौधरी के बेटे या नयी पीढ़ी के किसी नेता को टिकट दिया गया होता, तो भी जनता उन पर विचार कर सकती थी। लेकिन इतने वर्षों में हमने दीप्तिमयी चौधरी को सार्वजनिक जीवन में कभी नहीं देखा। अब वह सार्वजनिक जीवन में क्या योगदान देंगी?”
कांग्रेस ने बोंगाईगांव में सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी ब्रजेनजीत सिंहा पर भरोसा जताया है।
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