नयी दिल्ली, तीन सितंबर विदेशों में खाद्य तेलों के दाम मजबूत होने के बीच बीते सप्ताह देश के तेल-तिलहन बाजारों में लगभग सभी खाद्य तेल-तिलहनों के थोक भाव में मजबूती का रुख देखने को मिला।
बाजार सूत्रों ने कहा कि अगस्त माह के दौरान विदेशों में खाद्य तेलों के दाम लगभग तीन प्रतिशत मजबूत हुए हैं, क्योंकि मलेशिया और अमेरिका में मौसम की स्थिति को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है और इस संबंध में आगामी मौसम की रिपोर्ट आने पर ही स्थिति साफ होगी। उन्होंने कहा कि प्रमुख तेल संगठन इंदौर स्थित ‘सोपा’ ने भी सोयाबीन उत्पादक राज्यों में शुष्क मौसम के बीच सोयाबीन की उत्पादकता प्रभावित होने की आशंका जताई है और कहा है कि सितंबर में होने वाली बरसात उत्पादन की स्थिति को तय करेगी।
मौसम विभाग का अनुमान है कि सितंबर के महीने में बरसात बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि सस्ते आयातित तेल की वजह से तेल-तिलहन बाजार की धारणा कमजोर बनी हुई है और देशी तिलहन किसानों की फसल मंडियों में खप नहीं रही है। देश की तेल पेराई मिलों को थोक में दाम घटाकर अपने खाद्य तेलों को बेचना पड़ रहा है और उन्हें 4-5 रुपये किलो का नुकसान सहना पड़ रहा है। देश के तिलहन किसानों को भी सरसों और सूरजमुखी तिलहन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी कम दाम मिल रहे हैं। उपभोक्ताओं को भी लगभग 100 रुपये लीटर के थोक भाव वाला सरसों तेल लगभग 150 रुपये में मिल रहा है। इसी प्रकार बंदरगाह पर 76 रुपये लीटर वाला आयातित सूरजमुखी तेल उपभोक्ताओं को 140-145 रुपये लीटर मिल रहा है जबकि इस तेल का दाम लगभग 105 रुपये लीटर बैठना चाहिये। तो ऐसी स्थिति में देश में खाद्य तेलों के सस्ते आयात का क्या मायने रह जाता है?
सूत्रों ने कहा कि लगभग 10 लाख टन सोयाबीन की पेराई के बाद करीब 1,75,000 टन सोयाबीन तेल की महीने में आपूर्ति संभव होती है। मौसम की मौजूदा स्थिति को देखते हुए सोयाबीन अगर उपलब्ध नहीं हुआ, तो सोयाबीन तेल का उत्पादन भी कम होगा। देश में मूंगफली और बिनौला की उपलब्धता पहले ही नगण्य रह गयी है। ऐसे में सोयाबीन, मूंगफली और बिनौला की कमी को सूरजमुखी तेल पूरा कर रहा था। उल्लेखनीय है कि सूरजमुखी तेल की कमी को सोयाबीन पूरा नहीं कर सकता। इसलिए त्योहारों के दौरान देश में ‘सॉफ्ट आयल’ (नरम तेल) की आपूर्ति और जुलाई-अगस्त में आयात के लिए हुए लदान का विवरण कम से कम तेल संगठनों को सरकार के सामने रखना चाहिये।
सूत्रों ने कहा कि कुल मिलाकर आगे जाकर देश के तेल-तिलहन क्षेत्र का भविष्य अच्छा नजर आता है और अगर यह आशंका अगले चार-पांच साल में सही साबित हुई तो उसकी जवाबदेही कौन लेगा यह स्पष्ट नहीं है।
सूत्रों ने कहा कि आबादी बढ़ने के साथ देश में खाद्य तेलों की औसत मांग हर वर्ष लगभग 10 प्रतिशत बढ़ रही है। ऐसे में देशी तेल-तिलहन की खेती और उत्पादन में वृद्धि होनी चाहिये था लेकिन सरकारी आंकड़ों से पता लगता है कि मूंगफली, कपास (बिनौला), सूरजमुखी आदि तिलहन खेती का रकबा घटा है।
पिछले सप्ताहांत के मुकाबले बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 40 रुपये मजबूत होकर 5,650-5,700 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का भाव 25 रुपये बढ़कर 10,675 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 10-10 रुपये की मजबूती के साथ क्रमश: 1,780-1,875 रुपये और 1,780-1,890 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।
समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और लूज का भाव 125-125 रुपये की मजबूती के साथ क्रमश: 5,205-5,300 रुपये प्रति क्विंटल और 4,970-5,065 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
सोयाबीन दिल्ली और सोयाबीन इंदौर तेल के दाम क्रमश: 35 रुपये और 50 रुपये की मजबूती के साथ क्रमश: 10,160 रुपये और 10,075 रुपये रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए, जबकि सोयाबीन डीगम तेल का भाव 8,350 रुपये प्रति क्विंटल पर अपरिवर्तित रहा।
माल की नहीं के बराबर उपलब्धता के बीच समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन, मूंगफली गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड के भाव क्रमश: 50 रुपये, 50 रुपये और 15 रुपये की मजबूती के साथ क्रमश: 7,815-7,865 रुपये, 18,600 रुपये और 2,725-3,010 रुपये प्रति टिन पर बंद हुए।
समीक्षाधीन सप्ताह के दौरान विदेशों में दाम मजबूत होने से कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का भाव 60 रुपये की बढ़त के साथ 8,210 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 85 रुपये बढ़कर 9,385 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला का भाव समीक्षाधीन सप्ताहांत में 100 रुपये की बढ़त दर्शाता 8,550 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
माल की कमी और मजबूती के आम रुख के अनुरूप बिनौला तेल का भाव भी 75 रुपये की बढ़त के साथ 9,100 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।
राजेश
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