देश की खबरें | डॉक्टरों का आरोप, दिव्यांग पेशोंवरों की नौकरी संबंधी सरकारी आदेशों की अवेहलना कर रहे मेडिकल कॉलेज

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(जीवन प्रकाश शर्मा)

नयी दिल्ली, नौ अप्रैल केरल के एक सरकारी अस्पताल में व्हीलचेयर के सहारे काम करने वाले यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुजीत जोस ‘‘असंवेदनशील और अतार्किक’’ विकलांगता मानदंड के कारण पुडुचेरी के प्रमुख अस्पताल जवाहरलाल स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (जेआईपीएमईआर) में समान नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।

दिव्यांग चिकित्सा पेशेवरों की भर्ती के लिए जेआईपीएमईआर के नए कार्यालय ज्ञापन (ओएम) के अनुसार, यूरोलॉजी (मूत्र रोग) विभाग में किसी भी संकाय के पास बैठने, खड़े होने और अन्य चीजों के साथ चलने की कार्यात्मक क्षमता होनी चाहिए।

यूरोलॉजी प्रशिक्षण के दौरान रीढ़ की हड्डी में चोट से प्रभावित हुए जोस (34) सभी कार्यों को अपने व्हीलचेयर की मदद से करते हैं। कार्यालय ज्ञापन में व्हीलचेयर के सहारे कार्य का जिक्र नहीं किया गया है, जिससे वह पद के लिए अयोग्य हो गए हैं।

कोलम्बिया में सीईएस यूनिवर्सिटी, मेडेलिन से ‘फंक्शनल एंड फीमेल यूरोलॉजी फेलोशिप’ के लिए 2022 में ‘सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल यूरोलॉजी’ से छात्रवृत्ति प्राप्त करने वाले, डॉ. जोस ने कहा, ‘‘मुझे व्हीलचेयर का इस्तेमाल करके यूरोलॉजिकल सर्जरी करने के लिए विशेष प्रशिक्षण मिला है। विकसित देशों में इन नौकरियों के लिए कार्य के संबंध में ऐसे मानदंड नहीं हैं।’’

शारीरिक निशक्तता के कारण जेआईपीएमईआर जैसे राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों में नौकरी के अवसर से वंचित होने वाले जोस अकेले नहीं हैं।

दिव्यांग वरिष्ठ चिकित्सा पेशेवरों ने जेआईपीएमईआर में संबंधित बेंचमार्क विकलांगता और कार्यात्मक जरूरतों के साथ विभिन्न नौकरियों को चिह्नित करने पर गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि कार्यालय ज्ञापन न केवल असंवेदनशील है बल्कि यह कई दिव्यांग डॉक्टरों को नौकरी के अवसरों से वंचित करके मौजूदा कानून का भी उल्लंघन करता है जो पहले से ही प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थानों में संबंधित पदों पर कार्यरत हैं।

जेआईपीएमईआर के निदेशक डॉ राकेश अग्रवाल ने कहा कि जिन डॉक्टरों को लगता है कि वे किसी भी स्थिति के कारण आवेदन नहीं कर सकते हैं, वे संस्थान को अपना प्रतिवेदन दे सकते हैं। डॉ अग्रवाल ने कहा, ‘‘दिव्यांग चिकित्सा पेशेवरों के लिए रोजगार के अवसर विकसित हो रहे हैं। दस साल पहले, हमारे यहां अलग मानदंड थे लेकिन अब चीजें बदल गई हैं।’’

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत काम करने वाले जेआईपीएमईआर ने 18 मार्च को एक कार्यालय ज्ञापन प्रकाशित किया जिसमें उसने 85 विभिन्न पदों को चिह्नित किया, जिसके लिए दिव्यांग चिकित्सा पेशेवरों को सीधी भर्ती दी जा सकती है।

प्रत्येक पद के साथ, इसमें एक ऐसे व्यक्ति की शारीरिक स्थिति का वर्णन किया गया है जो इन कार्यों को कर सकता है। जेआईपीएमईआर का दावा है कि पदों की पहचान, बेंचमार्क विकलांगता और कार्यात्मक आवश्यकताएं दिव्यांग जन के अधिकार अधिनियम (आरपीडीए), 2016 में किए गए प्रावधानों के अनुसार हैं।

हालांकि, चिकित्सा विशेषज्ञों ने 4 जनवरी, 2021 की एक अधिसूचना की ओर ध्यान आकर्षित किया, जिसमें कहा गया है, ‘‘यदि कोई पद पहले से ही बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्ति के पास है, तो यह बेंचमार्क विकलांगता की उस श्रेणी के लिए चिह्नित माना जाएगा।’’

व्हीलचेयर पर आश्रित 32 वर्षीय नोनिता गंगवानी भी समान आधार पर अयोग्य हो गई हैं। वह पिछले ढाई साल से विश्वविद्यालय चिकित्सा विज्ञान महाविद्यालय (यूसीएमएस), दिल्ली के फिजियोलॉजी विभाग में वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर के रूप में काम कर रही हैं।

डॉ गंगवानी के दोनों हाथों और पैरों की 70 प्रतिशत विकलांगता है, लेकिन जेआईपीएमईआर में फिजियोलॉजी विभाग में संकाय पद के लिए डॉक्टरों की न केवल बैठने, खड़े होने और चलने की कार्यात्मक क्षमता की आवश्यकता है, बल्कि एक हाथ, दोनों हाथ, एक पैर, दोनों पैर आदि बेंचमार्क विकलांगता का भी उल्लेख किया गया है।

दिव्यांग चिकित्सा पेशेवरों ने इन शिकायतों को बार-बार उठाया है जब राष्ट्रीय महत्व के अन्य संस्थानों जैसे कि विभिन्न अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने प्रासंगिक अधिनियम और सरकारी अधिसूचना का उल्लंघन करते हुए पदों का विज्ञापन दिया है।

उनका कहना है कि जनवरी 2021 की गजट अधिसूचना में समूह ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और ‘डी’ के लिए केंद्र सरकार के प्रतिष्ठानों में बेंचमार्क दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उपयुक्त 3,566 पदों को चिह्नित किया है। हालांकि, इसमें यह भी कहा गया है कि पदों की सूची अधिसूचित किया जाना केवल सांकेतिक है और संपूर्ण नहीं है।

दिव्यांग स्वास्थ्य पेशेवरों के लिए आवाज उठाने वाले प्रोफेसर सतेंद्र सिंह ने कहा कि ये संस्थान ना केवल 2021 की गजट अधिसूचना की अवहेलना कर रहे हैं, बल्कि अधिसूचना में भी कुछ बड़ी खामियां हैं क्योंकि यह विकलांगता को मानवाधिकार के मुद्दे के रूप में नहीं देखता है। प्रोफेसर सिंह ने कहा, ‘‘एक पैर, एक हाथ, जैसे हमारे शरीर के अंगों का उल्लेख सरासर अपमानजनक और अमानवीय है।’’

आरपीडीए 2016 बेंचमार्क विकलांगता को 40 प्रतिशत और उससे अधिक की विकलांगता के रूप में चिह्नित करता है।

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