देश की खबरें | 2002 के दंगों में बड़ी साजिश का आरोप बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है: एसआईटी ने न्यायालय

नयी दिल्ली, 25 नवंबर विशेष जांच दल (एसआईटी) ने बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि 2002 के गुजरात दंगों में एक बड़ी साजिश के आरोप को यह दावा करके ‘‘बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है’’ कि तत्कालीन राज्य सरकार में निचले स्तर से लेकर उच्च स्तर तक कई व्यक्तियों की ‘‘मिलीभगत’’ थी।

एसआईटी ने न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ को बताया कि उसने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री से लेकर अन्य सभी की जांच पड़ताल की है। एसआईटी ने यह भी कहा कि उसने जकिया जाफरी द्वारा दायर शिकायत में उठाये गए सभी मुद्दों पर काफी समय लगाया है जिन्होंने दंगों के दौरान बड़ी साजिश का आरोप लगाया है।

अहमदाबाद में 28 फरवरी, 2002 को गुलबर्ग सोसाइटी में हिंसा के दौरान जान गंवाने वाले कांग्रेस नेता एहसान जाफरी की पत्नी जकिया जाफरी ने दंगों के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती दी है।

एसआईटी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा, ‘‘मैं जो कहने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि यह कहकर इसे बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया है कि राज्य सरकार में निचले स्तर से उच्चतम स्तर तक, राजनीतिक वर्ग में हर कोई, राज्य प्रशासन में हर कोई, पुलिस हर किसी की मिलीभगत थी।’’

रोहतगी ने पीठ से कहा कि ‘‘राज्य प्रायोजित घटनाओं’’ के आरोप लगाए गए थे। उन्होंने कहा, ‘‘इसका असर देखिये। इसलिए मैंने कहा है कि यह मामला गड़बड़ा गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘राज्य प्रायोजित से आपका क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह है कि प्रशासन के लोगों, राजनीतिक वर्ग ने इन दंगों को प्रायोजित किया।’’

उन्होंने दलील दी कि किसी बड़ी साजिश के आरोप को प्रमाणित करने के लिए कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि एसआईटी ने सभी पहलुओं की जांच पड़ताल की, प्रासंगिक सामग्री की जांच की और उसके बाद निचली अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट दायर की।

उन्होंने दलील के दौरान कहा, ‘‘एसआईटी ने मुख्यमंत्री से लेकर नीचे तक, कैबिनेट के प्रमुख लोगों, मुख्यमंत्री, शीर्ष पुलिस अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों सहित सभी की जांच की …. यह सब किया गया। ऐसा नहीं है कि उन्होंने (एसआईटी) मुख्यमंत्री या किसी और से पूछताछ नहीं की।’’

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि राज्य में हिंसा के दौरान सेना की तैनाती में अनुचित देरी का आरोप उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि सेना को उसी दिन बुलाया गया और तैनात किया गया और यह साजिश के आरोपों को ध्वस्त करता है, चाहे वह राजनीतिक वर्ग की हो, राज्य सरकार या पुलिस द्वारा।

उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने ऐसा क्यों नहीं किया, सरकार ने इसे स्थानांतरित क्यों नहीं किया, ये अपराध या साजिश नहीं है। लेकिन फिर भी, इस एसआईटी ने इन सभी मुद्दों पर काफी समय दिया। उन्होंने यह कहकर एक भी मुद्दा नहीं छोड़ा कि यह हमारे दायरे से बाहर है।’’

सुनवाई के दौरान, पीठ ने रोहतगी से पूछा कि क्या याचिकाकर्ता ने निचली अदालत में चल रही सुनवायी में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि मुकदमे के दौरान जकिया जाफरी से अभियोजन पक्ष के एक गवाह के तौर पर जिरह की गई थी। पीठ ने रोहतगी से कहा कि अगर उनके सबूत उपलब्ध हैं तो इसे रिकॉर्ड में रखा जा सकता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने पीठ को यह भी बताया कि एसआईटी ने जिन 275 लोगों से पूछताछ की उनमें से 19 गुलबर्ग मामले में अभियोजन पक्ष के गवाह थे। रोहतगी ने शीर्ष अदालत में जिरह के दौरान पीठ को बताया कि जकिया जाफरी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ शिकायत के मुद्दे पर जोर नहीं दिया है।

पीठ ने जकिया जाफरी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से इस बारे में पूछा।

सिब्बल ने कहा, ‘‘सभी मामलों जिनमें आगे की जांच की आवश्यकता है, मैंने आपके समक्ष पढ़ा है।’’ सिब्बल ने कहा, ‘‘मैंने जानबूझकर तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ किसी भी आरोप का कोई हिस्सा नहीं पढ़ा है।’’ उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता 27 फरवरी की बैठक को लेकर आगे की जांच के लिए नहीं कह रही हैं।

रोहतगी ने कहा कि अदालत इस पर ध्यान दे सकती है कि शिकायत में तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोप या जो क्लोजर रिपोर्ट में दर्ज किया गया और निचली अदालत द्वारा स्वीकार किया गया उस पर प्रहार नहीं किया जा रहा है।

इस पर सिब्बल ने कहा, ‘‘इस पर आगे की जांच के लिए दबाव नहीं डाला जा रहा है।’’

सिब्बल ने कहा, ‘‘कल, अगर कोई अन्य सबूत सामने आता है, तो मुझे नहीं पता। यह इस देश का कानून है कि अगर कल कोई और नया सबूत सामने आये जो आज उपलब्ध नहीं है, तो कुछ भी हमेशा के लिए बंद नहीं होता है। देखिए सिख दंगों में क्या हुआ।’’ सिब्बल ने कहा कि वह इस पर याचिकाकर्ता की ओर से लिखित बयान देंगे।

जकिया जाफरी के वकील ने पहले दलील दी थी कि 2006 की उनकी शिकायत यह थी कि ‘‘एक बड़ी साजिश थी जिसमें नौकरशाही की निष्क्रियता, पुलिस की मिलीभगत, भड़काऊ भाषण और हिंसा को बढ़ावा दिया गया था।’’

गोधरा ट्रेन घटना के एक दिन बाद हुई हिंसा में मारे गए 68 लोगों में पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे। 8 फरवरी, 2012 को, एसआईटी ने मोदी, अब प्रधानमंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों सहित 63 अन्य को क्लीन चिट देते हुए एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि उनके खिलाफ ‘‘मुकदमा चलाने योग्य कोई सबूत नहीं है।’’

जकिया जाफरी ने 2018 में शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर करके गुजरात उच्च न्यायालय के 5 अक्टूबर, 2017 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें एसआईटी के फैसले के खिलाफ उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।

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