देश की खबरें | इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेरठ से विधायक रफीक अंसारी को राहत देने से इनकार किया

प्रयागराज, आठ मई इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वर्ष 1995 के एक आपराधिक मामले में मेरठ से समाजवादी पार्टी (सपा) विधायक रफीक अंसारी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि 1997 और 2015 के बीच सैकड़ों गैर जमानती वारंट जारी किए जाने के बावजूद वह अदालत में हाजिर नहीं हुए।

न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने रफीक अंसारी की याचिका खारिज करते हुए कहा, ''मौजूदा विधायक के खिलाफ गैर जमानती वारंट की तामील नहीं होना और उन्हें विधानसभा सत्र में हिस्सा लेने की अनुमति देना एक खतरनाक और गंभीर उदाहरण पेश करेगा।''

अदालत ने कहा कि गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे लोगों को कानूनी जवाबदेही से बचने की अनुमति देकर हम कानून के राज के लिए दंडमुक्ति और अनादर की संस्कृति कायम रखने का जोखिम पैदा करते हैं।

मेरठ से मौजूदा विधायक रफीक अंसारी ने मेरठ के अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एमपी-एमएलए) की अदालत में लंबित एक आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी।

अंसारी के खिलाफ 1995 में मेरठ के नौचंदी थाना में मामला दर्ज किया गया था।

जांच के बाद 22 आरोपियों के खिलाफ पहला आरोप पत्र दाखिल किया गया और इसके बाद याचिकाकर्ता अंसारी के खिलाफ एक पूरक आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिसे अदालत ने अगस्त, 1997 में संज्ञान में लिया।

चूंकि अंसारी अदालत में हाजिर नहीं हुए, इसलिए 12 दिसंबर, 1997 को एक गैर जमानती वारंट जारी किया गया। इसके बाद, 101 गैर जमानती वारंट जारी किए गए और अदालत में हाजिर नहीं होने पर रफीक को भगोड़ा घोषित करने की कार्यवाही की गई। उसके बाद भी अंसारी अदालत में पेश नहीं हुए।

सुनवाई के दौरान अंसारी के वकील ने मूल आरोप पत्र से 22 आरोपियों को पहले ही बरी किया जाने के आधार पर उनके मुवक्किल के खिलाफ आपराधिक मुकदमा रद्द करने की मांग की।

अदालत ने इस पर कहा कि किसी भी आरोपी के खिलाफ एक आपराधिक मुकदमा में दर्ज साक्ष्य उसके दोषी होने तक ही सीमित होता है और इसका सह आरोपियों पर कोई प्रभाव नहीं होता।

अदालत ने कहा कि सह आरोपियों के बरी होने को उन आरोपियों के खिलाफ मुकदमा रद्द करने का आधार नहीं बनाया जा सकता जिन्होंने मुकदमे का सामना ही नहीं किया है।

अदालत ने 29 अप्रैल को दिए अपने निर्णय में अंसारी की याचिका खारिज करते हुए आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव को भेजने का निर्देश दिया ताकि उसे विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके।

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