देश की खबरें | निर्धारित अवधि के अंदर आरोपपत्र का निचली अदालत के संज्ञान नहीं लेने पर आरोपी जमानत का हकदार नहीं:न्यायालय

Get Latest हिन्दी समाचार, Breaking News on India at LatestLY हिन्दी. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कोई आरोपी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत इस आधार पर जमानत पाने का हकदार नहीं है कि निचली अदालत ने 60 या 90 दिन की निर्धारित अवधि से पहले जांच एजेंसी द्वारा दाखिल आरोपपत्र का संज्ञान नहीं लिया है।

नयी दिल्ली, सात फरवरी उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कोई आरोपी आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत इस आधार पर जमानत पाने का हकदार नहीं है कि निचली अदालत ने 60 या 90 दिन की निर्धारित अवधि से पहले जांच एजेंसी द्वारा दाखिल आरोपपत्र का संज्ञान नहीं लिया है।

शीर्ष अदालत ने कानूनी रूप से यह महत्वपूर्ण टिप्पणी एक फैसले में की है, जिसके जरिए आदर्श क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी के निदेशक मुकेश मोदी और राहुल मोदी को दी गई जमानत निवेशकों के 200 करोड़ रुपये की हेराफेरी करने से जुड़े मामले में निरस्त कर दी है।

गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) ने अपनी अपील में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत को इस आधार पर चुनौती दी थी कि निचली अदालत ने सीआरपीसी के तहत निर्धारित सांविधिक अवधि के अंदर दाखिल आरोपपत्र का संज्ञान नहीं लिया था।

उल्लेखनीय है कि सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत कोई आरोपी सांविधिक जमानत पाने का हकदार है, बशर्ते कि जांच एजेंसी 60 या 90 दिनों की निर्धारित अवधि के अंदर आरोपपत्र दाखिल करने में नाकाम हो जाए।

उच्च न्यायालय ने सांविधिक जमानत के प्रावधान का लाभ प्रदान किया था। अदालत ने कहा था कि यह लाभ ऐसे मामलों में दिया जा सकता है जिनमें आरोपपत्र पर निचली अदालत ने विचार नहीं किया हो।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने इस मुद्दों पर कई फैसलों का हवाला दिया और उच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया।

मामले में आरोपी पिता-पुत्र को उच्च न्यायालय द्वारा 31 मई 2019 को दी गई जमानत को एसएफआईओ ने चुनौती दी थी।

(यह सिंडिकेटेड न्यूज़ फीड से अनएडिटेड और ऑटो-जेनरेटेड स्टोरी है, ऐसी संभावना है कि लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है)

Share Now

\